सोमवार, 2 दिसंबर 2013

गितवाड़े से लौटी माँ

माँ री !
जब से तुम गितवाड़े से आई हो,
पता नहीं तुम्हे क्या हो गया,
कुछ उखड़ी-उखड़ी सी लगती हो,
क्या वहां किसी ने कुछ कह दिया,...
या किसी लुगाई ने कुछ बता दिया,
तुम किस का दर्द सुनकर आई हो,
या अपने किस दर्द को दबा रही हो,
बताओ ना माँ,
तुम इतनी चुप क्यों हो.
तुमने आज वहां से आने में भी देर लगा दी,
ना तुम आज खुश-खुश लौटी वहां से,
वरना तुम तो रोज ऐसे आती थी,
मानो सारा जहर निकाल कर आई हो,
पर आज तुम कुछ जहर साथ लाई हो.
किसकी लड़की का दुःख सुन कर आई हो,
या किसी मार खाई औरत का दर्द सुन आई हो.
बताओ ना माँ !
 

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