क्या राज्यपाल को सत्ता परिवर्तन के बाद हटाना उचित है ? संवैधानिक और कानूनी तौर पर भले ही
राज्यपाल को बदला जा सकता हो,परंतु नैतिक आधार पर इस तरह की कार्यवाही गलत ही मानी
जाएगी ।क्योंकि राज्यपाल उस राज्य का प्रथम नागरिक होता है,इसलिए उसकी गरिमा को आप
इस तरह के कदम उठा कर ठेस पहुंचाएंगे । जबकि हटाये जाने का कोई ठोस कारण न हो तो यह
कार्यवाही बिल्कुल ठोस नकारात्मक एवं प्रतिक्रियावादी ही मानी जानी जाएगी । या उन
पर दबाव बना कर इस्तीफा दिलवाना ताकि अपने चहेते को उस पद पर बैठाया जा सकें । इस बदले
की कार्यवाही के पीछे का सीधा-साधा गणित समझ से परे है,क्योंकि राज्यपाल का पद न तो
तथाकथित राजनीति के अनुसार ‘मलाईदार’ है
और न ही शक्ति-सम्पन्न ही ।
राज्यपाल की नियुक्ति से पहले सम्बन्धित राज्य के मुख्यमंत्री से विचार विमर्श
किया जाता था । यह प्रथा 1950 से 1967 तक अपनायी गयी, लेकिन 1967 के चुनावों में जब कुछ राज्यों में गैर
कांग्रेसी सरकारों का गठन हुआ, तब इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया और मुख्यमंत्री से विचार
विमर्श किए बिना राज्यपाल की नियुक्ति की जाने लगी। इस तरह के प्रयास नकारात्मक
राजनीति के उदाहरण ही बन सकते है ।बहरहाल सत्ता और राजनीति का कॉरपोरेट के साथ
गलबहियां करने से नैतिकता को तो कब का तांक पर रख दिया गया है,इस तरह के नकारात्मक
कदम किसी भी दल के लिए उसकी नकारात्मक और प्रतिक्रियावादी सोच के नमूने के अलावा
कुछ ओर नहीं हो सकते । इस तरह के कदमों की जितनी निंदा की जाएं कम है ।
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