गुरुवार, 7 जनवरी 2016

समालखा3

#समालखा3

समालखा में लाख खामियां हो । मेरे दिल का एक बड़ा हिस्सा हमेशा वहीं रहता है और एक पैर दिल्ली में तो दूसरा समालखा में । इन दो पैरों के बीच में कहीं मैं रहता हूँ । इस आवाजाही की जिंदगी से जीवन में गति का अहसास बना रहता है।

वहां एक हिस्सा बिल्कुल गांव जैसा है जहां मैं रहता हूँ। और एक हिस्सा शहर जैसा है जहां बाज़ार पलता है । इन दोनों ने छोटी-छोटी कलोनियों को अवैध सन्तानों की तरह पैदा किया है और उसी तरह उनका पालन पोषण कर रही है ।

पैसे वालों की अवैध सन्ताने अच्छे से पोषित हो रही है और गरीब वाली खुदा के भरोसे जी रही है।

बन्दर इस रुकी हुई जिंदगियों के बीच अपनी उपस्थिति को बरकरार रखे हुए है। रेलवे स्टेसन और बस स्टैंड को जोड़ने वाली समालखा की लाइफ लाइन कहीं जा सकती है ।जिसके उत्तर में एक विकसित दुनिया है और दक्षिण में कम विकसित। पूर्व में बस स्टैंड है तो पश्चिम में रेलवे स्टेसन ।रेलवे स्टेसन के पीछे एक अजीब किस्म की दुनिया है। जिसे बदनाम या अपराधिक दुनिया के लेबल से नवाजा जाता है और बस स्टैंड के पीछे की दुनिया पंचवटी कहलाती है। समालखा की काफी महंगी होने की पर्ची इसी के नाम कटी है।

पंचवटी से समालखा में प्रॉपर्टी की आधिकारिक और जमीनी शुरुवात मानी जा सकती है ।जहां से इस उद्योग ने पसरना शुरू किया और अब एक माफिया की तरह राजनीति से लेकर व्यापार तक की साठ गांठ तक पहुंच गया है ।

वैसे पंचवटी और लाइन पार में बस एक ही छोटा सा फर्क है..... 
लाइन पार लेबल लगे हुए दबंग हैं और पंचवटी में सफेदपोश....

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