पुरस्कार वापसी--परसाई के वंशज
साधो के बच्चे माधो,
सवाल के बजाय एक तो तुम ये लत्ते (कपड़े) फाड़ने पर मत उतरा करो माधो ।
देखो बात तो तुम्हारी भी सही है कि अखलाक की मौत पर इतना हो हल्ला हुआ था तो अब मालदा के मामले पर चुप्पी क्यों ? सवाल इधर से हो या उधर से । सवाल सवाल ही रहता है । सवाल में अंदर बवाल कितना घुसा है ? यह भी एक सवाल है । क्या तुमने अपने आप से यह सवाल किया । किया नहीं है तो अब कर लो । कोई घणी देर थोड़े ही हुई है ।
मैं एक लेखक हूं और मेरी भी एक राजनीति है । किसी पार्टी का भोंपू नहीं हूं कि गाहेबगाहे बजता फिरूंगा ।
मैं तुम सज्जनों से भी अनुरोध करता हूं कि अपने संघी लेखकोंं की एक बैठक करो और पुरस्कार वापसी का ऐलान करो । तब देखना मैं भी तुम्हारे साथ तुम्हारी आवाज में आवाज मिलाता मिलूंगा ।जिस तरह तुम सब कह रहे थे कि अखलाक के मामले में कि यह सब कांग्रेस के द्वारा प्रायोजित है । जब वो लोग प्रायोजित कर सकते है, तो तुम भी तो कर सकते हो ।
भीड़ चाहे हिंदुओं की हो या मुसलमानों की । वो ससुरी पागल ही होती है । जब तक धर्म की दुकानें बंद नहीं हो जाती माधो ये बवाल यूं ही कटते रहेंगे । कभी इधर से तो कभी उधर से ।
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