शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

महेंदी में घुला प्रेम-रंग

 महेंदी में घुला प्रेम-रंग

यूं तो तुम मैं में,मैं तुम में,,
दोनों घुल रहे है2003 से ही,
पर थोड़ा-थोड़ा करके ही सही,
पर घुल रहे है निरंतर.
भले ही दुनिया तुम्हारे हाथों जितनी
नरम और गरमाहट भरी न हो,
पर मैंने जैसे ही कहा कि हां मैं
तुम्हे महेंदी लगाउंगा,
तुम्हारे चेहरे पर एक अजीब-सी खुशी ,
सिमटती हुई तुम्हारी बांहों में फैल गई.
तुम्हारा बार-बार यूं मुझे देखना,
तुम्हारी आंखों से टपकना-झलकना,
अनसोची,अनचाही सी यह खुशी,
कि मैं महेंदी लगा रहा हूं तुम्हे,
बार-बार रोमांचित किए जा रहा था तुम्हे,
मानो तुम्हे यकीन ही नहीं हो रहा था,
क्या सचमुच यह छोटी-सी बात इतनी बड़ी बात बन गई हो.
शायद महेंदी का रंग प्रेम के रंग में घुलमिल कर ही निखरा हो,
कितनी शिद्दत से हमने तय किया कि कौन-सा डिजाइन बनाना है,
जितनी शिद्दत से मैं बनाता चला गया,उससे कहीं ज्यादा तुम घुलती चली गई.
बार-बार तुम्हारा यूं लिपट कर कहना कि ऐसा तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था,
सोचा तो मैंने भी नहीं था,
बस यूं ही मन किया कि मैं खुद तुम्हे महेंदी लगाऊ,
और लग गई महेंदी,
बस महेंदी के रंग में घुल गया प्रेम-रंग.

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