सोमवार, 12 अगस्त 2013

सरकार मां कैसे बन सकती है ?

देर रात को शादी में खाना परोसने के साथ-साथ  बर्तन साफ करने के बाद अपनी मजूरी लेकर  लौटते हुए बच्चों को पुलिस चोर और आवारा बना कर सुधारगृह में डालती नहीं फेंक देती है.सुधारगृह भी फुटपाथ और रेलवे स्टेशनों से ज्यादा फरक में नहीं दीखता.एक लड़का और एक लड़की दोनों को उसमें डाल दिया जाता है.लड़की की मां जब अपनी बेटी को छुड़वाने के लिए आती है तो-उसे यह कह कर कि तुम वेश्यावृति में शामिल हो इसलिए सरकार तुम्हारी बेटी का पालन-पोषण करेगी.तब नायिका कहती है कि -'सरकार  मां कैसे  बन सकती है ?'
1988 मे मीरा नायर की फिल्म 'सलाम बॉम्बे' की नायिका का यह सवाल आज 2013 मे ं भी उसी तरह अपने जीवंत रूप में खड़ा है.भारतमाता की जय,वंदेमातरम के नारों के बीच यह सवाल-कि जो सरकार ऐसी परिस्थितियों को नहीं बदल सकी,जिसमें स्त्री और उस की देह का शोषण न हो,बच्चें आवारा बनने पर मजबूर न हो,तंत्र किसी भी तरह से उनका शोषण न कर सके.बनिस्पत इसके सरकार ऐसी परिस्थितियों को बढ़ावा देने में ही अहम भूमिका निभाती है.तब कैसे कोई सरकार मां की भूमिका का निर्वाह कर सकती है.बिना जिम्मेदारी की भूमिका का अभिनय सरकार आजादी के बाद से निरंतर कर रही है.अभिनय में इजाफा भले ही हो गया हो, पर जिम्मेदारी का निरंतर ह्रास ही हुआ है.सरकार की संजीदगी पर उठे सवाल आज भी यूं दी दर-दर भटक रहे है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें