शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

नशा मुक्ति केन्द्र

बेरोजगारी लंबे समय से पीछा ही नहीं छोड़ रही थी.तब एक रसूकदार अफसर रिश्तेदार ने जुगाड़ लगाकर किसी एनजीओ की मदद से नशा मुक्ति केन्द्र खुलवाया.अब इसी से गुजर-बसर कर रहा था.पैसे तो खूब है इस काम में,पर झंझट भी बहुत है.कुछ की नजर में यह भले का काम है,तो कुछ की में आफत का काम.पर जो भी हो जसबीर के लिए तो अब यहीं काम उसका जीवन बन गया था.
फोन की घंटी बजती है.
जसबीर-हैलो,कौन ?
औरत-जी,नशा मुक्ति केन्द्र से बोल रहे है.
-हां.
-जी,मैं कालीरामणा मौहल्ले से बोल रही हूं.मेरा पति रोज पी कर आ जाता है और मार-पीट करता है.अब  भी  पी कर आए हुए है.आप उस की शराब छुड़वा दो.
-हां, ठीक है.पता लिखवाओ.
-पान्ना कालीरामणा,राधा मन्दिर के पास.मुकेश मांगे का.
-अभी आते है.
उसने अपने तीन साथियों को साथ लिया और चल निकले हीरो होड़ा पर.दो हीरो होंडा हमेशा तैयार रहती थी.इसी काम के लिए.
-हां भाई मुकेश कौन-सा है.
-हां मैं हूं,के था.
-पकड़ लो.यही है.
-छोड़ साले.तुम कौन हो.मुझे कहां ले जा रहे हो.
-पहले चल तो सही.तब बताएंगे.
उन्होंने सारे पान्ने के बीचोबीच उसे घसीटना शुरु कर दिया और पकड़ कर होंडा पर बीच में बैठा लिया.यूं तो मुकेश बस में नहीं आता,पर उसने कुछ ज्यादा ही पी रखी थी.इसलिए वह आसानी से पकड़ में आ गया.और वो उसको नशा मुक्ति केन्द्र ले गए.इस बीच जब मुकेश हाथा-पायी पर उतर आया था,तब उन्होंने उसे सही समार दिया था.चोट खाया मुकेश इस अपमान के घूंट को पी गया.वहां ले जाकर भी उन्होंने मुकेश की एकबार फिर धुनाई कर दी.जिस कारण मुकेश का नशा भी ढिला हो गया.नशा कम होने और पिटाई के दंश में मुकेश को रात बर नींद भी नहीं आई.सवेरे उसके दोस्तों ने उसे आकर छुड़वा लिया.काफी जैक लगाने पर ही केन्द्र का मालिक माना,क्योंकि उसके छोड़ देने से उसकी कमाई पर असर पड़ता था.इस तरह नशेड़ियों के परिवार वालों से वह महीने के हिसाब से 1000-2000 रु भी ले लेता था.वही उसकी असली कमाई थी.पर समाज में रहना था तो कुछ रसूक बना कर भी चलने पड़ते थे. बहरहाल मुकेश को छुड़ कर जब ले जा रहे थे.तब.
मुकेश- सालो से पीटाई का बदला लेना पड़ेगा.पहले लुगाई को जा कर देख लू.घणी सयाणी बनती है.
दोस्त-हां.सालों को एक दिन बुला लेते है,फोन करके .
घर जाकर मुकेश ने बच्चों को धकेलते हुए अपनी पत्नी की जमकर पीटाई की तथा पीने के लिए घर से निकल लिया.एक पव्वा खरीदा और गटक गया.कुछ दिन बाद दोस्तों ने सलाह मिलाकर  नशा मुक्ति केन्द्र में फोन मिलाकर कहा कि उसका भाई मां-बाप को रोज तंग करता है.उसे ले जाइए.और पता पान्ने से थोड़ी-दूर की बस्ती किशनपुरा का दे दिया और घात लगाकर इंतजार करने लगे.तभी उधर से दो बाईक की लाइट दिखी.
एक ने कहा-लो आ गए,अपने-अपने डंडे तैयार कर लो.
उनके आते ही डंडों की बरसात हो गई और वो बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचा कर वहां से भाग निकले.अपनी बाइक वहीं पर छोड़ गए.उन्होंने उनकी बाइक को आग के हवाले कर दिया तथा वहां से निकल गए.इस घटना के बाद केन्द्र संचालकों ने निर्णय लिया कि रात के समय नहीं जाएंगे.एक दिन जसबीर घुमता-फिरता अहाते(शराब पीलाने की सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त दुकान या जगह) के पास से गुजर रहा था.सोचा क्यों न यहीं पर किसी शराबी को समझाया जाएं कि शराब पीना सेहत और परिवार दोनों के लिए बुरा है.इस विचार में वह अहाते के अंदर प्रवेश कर गया.सामने की मेज पर एक गिलास,थोड़ी बची-खुची दही,नमकीन का पैकेट लुढ़का हुआ पड़ा था और रॉयल स्टैग का अध्धा आधे से ज्यादा बचा हुआ था.गौर करने पर देखा कि वह तो उसका थोड़ बहुत परिचित बल्लू लैब(खून टैस्टकरने वाली) वाला था.वह भी उसके पास जाकर बैठकर गया.हाल-चाल पूछा.बल्लू ने तभी एक ओर गिलास देने के लिए आवाज लगाई.पर उसी समय जसबीर ने उसे रोका,कि वह तो नहीं पीता.
बल्लू-पीता नहीं तो फिर जीता कैसे है ?
जसबीर-नहीं यार,पीने से शरीर और पैसे दोनों का नुकसान होता है.मेरी मानो तो तुम भी छोड़ दो.
बल्लू-ले दे कर एक यही तो अैब करता हूं,इसे भी छुड़ा दो.आदमी में एकाध अैब तो होना ही चाहिए.
जसबीर-नहीं होना चाहिए.परिवार से बड़कर कुछ नहीं होता.
बल्लू-अरै,हॉफ मुरगा भी लाइए.तू भी खावैगा के.
जसबीर-नही .मैं नहीं खाता-पीता.
वह यह बात कह कर निकल गया.पर वह इधर कई  दिनों से लगाे पास आकर बैठने लगा.दोनों में अच्छी खासी दोस्ती भी बढ़ गई.बल्लू को भी खरचा न कराने वाले दोस्त से कोई परेशानी नहीं थी.
रोज इधर-उधर की बातें होती और दोनों चले जाते.एकदिन बल्लू ने दो गिलास मंगवा लिए.शुरु में तो जसबीर ने मना किया.पर थोड़ी देर में बोला.
जसबीर-यार बल्लू,मैं पी नहीं रहा हूं.बस चैक कर रहा हूं.ऐसा इसमें क्या है,जो तुम छोड़ नहीं सकते.
बल्लू-ठीक है.चैक करने के लिए पी ले.
दोनों ने चार-चार पैग लगाए.उसके बाद बल्लू ने मुरगा खाने के लिए पूछा.
बल्लू-मुरगा भी खा के देख ले.
जसबीर-हां यार,पी तो ली है.वो भी खा लेता हूं.(नशा चढ़ने लग गया था)
दोनों पी-खाकर घर निकल गए.पर यह सब अब रोज होने लगा.एकदिन तो दोनों ने नशा मुक्ति केन्द्र में ही शराब की बोतल मंगा ली.
जसबीर-अरे मनोज,देख अपनादोस्त आया है बल्लू.उसके लिए एक रॉयल स्टैग की बोतल और थोड़ी दही,आलू भुजिया,अर वे हरे चने भी ले आइयो.दो सोढे की बोतल और एक डिब्बी गोल्ड-फ्लैक छोटी.जा जल्दी आइयो.
बल्लू और जसबीर ने खूब जम कर पी.यह दौर रोज ही चलने लगा.

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