-"कितना खतरनाक होता है,हमारे सपनों का मर जाना"(पाश)पर हालिया घटना क्रम को देखते हुए कहने का मन करता है कि कितना अच्छा होता है,हमारे सपनों का मर जाना.क्या हम गाँधी,नेहरू,अंबेड़कर,लोहिया आदि के सपनों का भारत गढ़ रहे है ? क्या यही होगा हमारे सपनों का भारत ? सपनों को इस कदर बेकदर और वाहियात अवधारणा में बदल दिया जाना,सच में बहुत खतरनाक स्थिति को बयां करता है.विज्ञापनों और राजनीतिक पार्टियों द्वारा तो हमेशा से ही सपने दिखाएं जाते रहे है,परंतु सपनों के पागलपन की चरम सीमा इस घटना में साफ झलकती है.सपना,जिसमें लालसा,लालच,स्वार्थ और कामचोर होने की प्रवृति अपने शिखर पर है और समाज की सारी व्यवस्थाएं इस पूरी प्रक्रिया में मशगूल है,मूल चिंता यही है.वरना व्यक्तिक स्तर पर सपनों में जीना आम बात है.राजनैतिक पार्टियां और मीडिया दोनों ही अपनी भूमिका को भूल कर लगी है,इस सपनों के खेल में मनोरंजन को गढ़ने में.मानो होड़ लगी है कि कौन सबसे ज्यादा मनोरंजन कर सकता है.
उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले में भारतीय पुरातत्व विभाग का दल उस छुपे हुए ‘खज़ाने’ को ढूंढने के लिए खुदाई शुरू कर चुका है, जिसके अस्तित्व पर खुद विभाग को भी शक है.टीवी,ट्वीटर के इस युग में तमाम मीडिया इस खोजबीन में सबसे ज्यादा मशगुल दिखता है..दर्जनों पुरातत्वविद और उनके सहायकों समेत स्थानीय सरकारी अमला एक साधु को आए सपने के आधार पर सैकड़ों साल पुराने राजाराव रामबक्श के किले के खंडहर पर खुदाई कर रहा है, जो एक पुरातन टीले में तब्दील हो चुका है.इस पूरे मामले में केंद्रीय कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री चरण दास महंत की भूमिका की सबसे ज़्यादा चर्चा है.क्या ये महज़ इत्तेफ़ाक है कि शोभन सरकार को खज़ाने का सपना आने के बाद 22 सितंबर को चरण दास महंत और उनकी पत्नी उन्नाव के उस इलाके में गए और शोभन सरकार से मुलाकात की.
पूरे घटना क्रम को देखते हुए मृगदीप सिंह लांबा की फिल्म "फुकरे" अनेक संदर्भों- अर्थों में जीवंत हो उठती है.
फुकरे का तात्पर्य बिना मेहनत किए अधिक से अधिक पाने की लालसा और ऊंचे सपने देखना। सब कुछ शॉर्ट कट से हासिल करना.क्या हमारा पूरा समाज इसी अवधारणा पर जी रहा है या इसी प्रक्रिया में है. शॉर्टकट का रास्ता लुभावना जरूर लगता है क्योंकि कम समय और मेहनत में मंजिल करीब दिखाई देती है.
सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले दो छात्र हनी (पुलकित सम्राट) और चूचा (वरुण शर्मा) .इन दोनों को एक अजीबो-गरीब वरदान प्राप्त है। चूचा रात में सपना देखता है और सुबह हनी को बताता है। हनी सपने का विश्लेषण कर ये पता कर लेता है कि आज लॉटरी में कौन सा नंबर खुलेगा और हमेशा उसका विश्लेषण सही बैठता है।क्या वह बाबा समाज में चूचा का किरदार निभा रहा है और सरकारी तंत्र हनी की भूमिका में आ गई है.
कॉलेज जाने की जुगाड़ में उन्हें एक ऐसे शख्स पंडित जी का पता चलता है जो पेपर लीक करता है। केंद्रीय कृषि एवं खाद्य प्रसारण राज्य मंत्री चरण दास महंत भी पंडित के किरदार में फीट बैठता है
लेडी गैंगस्टर भोली पंजाबन (रिचा चड्ढा) के किरदार को मीडिया पूरी संजीदगी के साथ दिन-रात लाइव -कवरेज के माध्यम निभा रहा है. इस पूरे घटना-क्रम का स्क्रीनप्ले अच्छे से लिखा गया है और पूरी प्रक्रिया में मनोरंजन के डोज लगातार मिलते रहेंगे.
क्या सारी व्यवस्थाएं इसी फुकरे पन पर आधारित है ? फुकरापन इन व्यवस्थाओं के गहरे अंतःस्थल में हमेशा से ही बैठा है,समय-समय पर वह सतह पर भी आ ही जाता है.या सतही सोच और रणनीति इस तरह के समाज का निर्माण करती है.जिसकी अपनी कोई ठोस जमीनी हकीकत ही नहीं है.
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