बुधवार, 16 अक्टूबर 2013

जब देखो,तब तुम--लप्रेक (पहला प्रयास)


अरे यार सनोली,जब भी तुम घर से निकलती हो,निकलते ही तुम अपने कानों में लीड लगाकर गाने सुनना शुरू कर देती हो.बोर नहीं होती तुम.हर समय गाने सुन-सुन कर.तुम्हारा जी नहीं मचलता.कितना अजीब लगता है.हर समय कानों में लीड लगा कर रखना.ऊपर से कान खराब होने का डर.नहीं पकंज,मुझे बिल्कुल अजीब नहीं लगता.हर समय लीड लगाकर घूमना.अब तो ऐसी आदत पड़ गई है न, कि इसके बिना ज्यादा अजीब लगता है.पर मैं तो तुम्हे जितना जानता हूं,तुम गाने सुनने से ज्यादा देखना पसंद करती हो.वो भी इसलिए कि तुम देखना चाहती हो कि कैसी ड्रैस पहनी है,क्या क्लर है,क्या डिजाइन है.गला कैसा है,प्रिंट कैसा है,वगरैह-वगरैह.हां यह तो है कि मैं गाने सुनने से ज्यादा देखना पसंद करती हूं,पर क्या करू पकंज,रास्ते से जब भी आती-जाती हूं या बस में  या मैट्रो में सब जगह फबतियां कसने वालों की कमी थोड़े ही है.बस उनकी बकवास से बचने के लिए यह तरीका सबसे बढ़िया है.करते रहे बकवास मुझे सुनाई ही नहीं देती.वरना दिमाक खराब कर देते थे.घर पर आकर भी चैन नहीं मिलता था.अब रिलिफ महसूस करती हूं.

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