मेहनत मजदूरी करके एक-एक पाई जोड़ी.बढ़ती महंगाई को देखकर सोचा कि हर रोज दो किलो दूध मोल लेना पड़ता है.इससे तो बढ़िया है क्यूं न एक गाय ही खरीद ली जाए.गाय खरीद लाए.25000 कीमत की.न अमेरिकन थी,न देसी बल्कि दोगली थी.हाईब्रिड.गाय खरीदी थी तो उसके खाने की व्यवस्था भी करनी थी.मोल का तूड़ा,मोल की खल,मोल की ज्वार.धीरे-धीरे सब कुछ सामान आने लगा.आने में पैसे तो लगने ही थे.पर उम्हाया बड़ी चीज है.उमाहे में तकलीफ नजर नहीं आई.
सुबह शाम दुध निकालने पड़ोसन आ जाती.खुद भी सीखने लगे दुध निकालना.पर गाय है कि दुध ही न निकालने दे.सोचा शुरु -शुरु में जगह बदली है तो कुछ दिन में एडजैस्ट हो जाएगी.पर दिन बीतते चले गए.वह एडजैस्ट नहीं हुई.कइयों ने राय दी की जहां से लाए हो वापस कर आओ.पर नहीं.दिन कटते रहे . मुश्किलें बढ़ती गई.दुध भी कम होता चला गया.कम से मना होता चला गया.नजर उतारी गई.टोक भी उतारी गई.पर दुध वही रहा.सलाह देने वाले बढ़ते गए.दुध घटता रहा.किसी ने सलाह दी ताबीज,गंड़ा बनवा लो.इस पर भी अमल किया गया.मसजिद से बनवा कर लाया गया.गाय के कमरे में लगा दिया गया.
उर्दू में लिखा गया था.भाषा समझ नहीं आती.पर अंधविश्वास किसी भाषा,किसी धर्म की बेड़ियों में जकड़ा नहीं होता. अंधविश्वास का कोई धर्म नहीं होता.न किसी धर्म का आधार अंधविश्वास ही होते है.पर लोगों ने अपनी नादानगी को छिपाने या मुंह फेरने की आदत को अंधविश्वासों की गोद में बैठा दिया.सो लगा दिया गया.गाय ने तो उसकी तरफ देखा तक नहीं.उसे क्या पता जिस ने वो बनाया है वो गाय का मीट खाता भी है नहीं.पर जो बनवा कर लाई.उसका पति तो केवल मुर्गे ही खाता है.पत्नी भले ही अंडे के नाम से भी चिड़ती हो.पर इन सबसे क्या.परिवार धार्मिक न कह कर अंधविश्वासी तो था ही.मेहनती भी था.इस पर डाउट नहीं किया जा सकता.गाय पर कोई असर न होते देख डॉ. को बुलाया गया.दवा चली .असर कुछ हुआ नहीं.डॉ. अपने पैसे बना कर चलता बना.डॉ. कम तिकडमी ज्यादा था.तुक्केबाज किस्म का लग रहा था.कह रहा था कि इंसान तो फिर भी बीमारी बता देता.पर जानवर की बीमारी तो दवा के असर होने पर ही पता चलती है.जिस दवा का असर हो जाए समझो वही बीमारी थी.
आस-पड़ोस के छोटे-मोटे पशुओं के जानकार भी तुजर्बें के साथ अपने-अपने अनुभव और अपने पर बीती बातों का चिट्ठा खोल कर चले जाते.उनकी बताई तरकीबे भी नागवार गुजरी.अंत में फैसला लिया गया.गाय को दान दे कर पुन कमा लिया जाए.पैसे तो आनी-जानी चीज है.भाग में ही नहीं थी गाय की सेवा करनी.जितनी लिखी उतनी तो कर ही ली.लगभग 30000 का नुकसान बैठ गया.पंड़ित से पूच्छा पडवा कर देख लिया .किसी ने कुछ खिला दिया है.जिस कारण दुध नहीं दे रही.अब इसकी जांच शुरु हो गई.सभी पड़ोसियों को शक की निगाह से देखा जाने लगा.किसी की नजरों में ही दोष निकाला जाने लगा.पूरे आस-पड़ोस का पोस्टमारटम कर दिया गया.पशुओं के पूरे इतिहास को खंगाल दिया गया जो इस तरह की बुरी नजरों के शिकार बने थे.
यह सब तो ठीक था.पर गाय दुध एक ही टाइम देने लगी.वो भी बड़ी मुश्किलों से.गाय अब महंगी भी लगने लगी.बिचौलिए को पकड़ा गया.उसका ही कसूर था.उस पर भरोसा किया गया था.जानकारों ने बताया कि यह गाय राह चलती गाय है.पालतु नहीं है.पालतु होती तो ऐसा नहीं करती.मतलब बछड़े को ही दुध पीलाना पसंद करती है.नहीं तो ल्योटी को उपर खींच लेती है.दुध उतरता ही नहीं.चालाक गाय है.पालतु गाय को आदत होती है दुध निकलवाने की.पर आवारा गाय हमेशा सारा दुध अपने बछड़े को ही पीलाती है.
सारा मामला ठगी का था.ब्यात के नजदीक आई गायों को कुछ लोग पकड़ लेते है.बच्चा होने पर उन्हें अच्छे दामों पर बेच देते है.यह बात पता चलते ही बिचौलिए को बुरा-भला सुनाया गया.पर उसकी जेब में पैसे पहुंच चुके थे तो उसे उनकी बातें ज्यादा बुरी नहीं लगी.गाय को गऊ माता मानने वाले परिवार ने अपना गुस्सा गाय पर लट्ठों के जरिए उतारा.गाय पर सारी भड़ास निकाल दी गई.
निर्णय लिया गया कि गाय को गऊशाला में धोड़ दिया जाए.गऊशाला वाले भी गाय को फ्री में नहीं लेते.उन्हें भी पैसे देने पड़ते है.बेचने की सोची.पर सोचा हम क्यों किसी से ठगी करे.गाय गऊशाला पहुंचा दी गई.गली में घुमती गायों के बीच रह रह कर उन्हें आज भी अपनी उस गाय की याद से ज्यादा 25000 रु की आती है.
उर्दू में लिखा गया था.भाषा समझ नहीं आती.पर अंधविश्वास किसी भाषा,किसी धर्म की बेड़ियों में जकड़ा नहीं होता. अंधविश्वास का कोई धर्म नहीं होता.न किसी धर्म का आधार अंधविश्वास ही होते है.पर लोगों ने अपनी नादानगी को छिपाने या मुंह फेरने की आदत को अंधविश्वासों की गोद में बैठा दिया.सो लगा दिया गया.गाय ने तो उसकी तरफ देखा तक नहीं.उसे क्या पता जिस ने वो बनाया है वो गाय का मीट खाता भी है नहीं.पर जो बनवा कर लाई.उसका पति तो केवल मुर्गे ही खाता है.पत्नी भले ही अंडे के नाम से भी चिड़ती हो.पर इन सबसे क्या.परिवार धार्मिक न कह कर अंधविश्वासी तो था ही.मेहनती भी था.इस पर डाउट नहीं किया जा सकता.गाय पर कोई असर न होते देख डॉ. को बुलाया गया.दवा चली .असर कुछ हुआ नहीं.डॉ. अपने पैसे बना कर चलता बना.डॉ. कम तिकडमी ज्यादा था.तुक्केबाज किस्म का लग रहा था.कह रहा था कि इंसान तो फिर भी बीमारी बता देता.पर जानवर की बीमारी तो दवा के असर होने पर ही पता चलती है.जिस दवा का असर हो जाए समझो वही बीमारी थी.
आस-पड़ोस के छोटे-मोटे पशुओं के जानकार भी तुजर्बें के साथ अपने-अपने अनुभव और अपने पर बीती बातों का चिट्ठा खोल कर चले जाते.उनकी बताई तरकीबे भी नागवार गुजरी.अंत में फैसला लिया गया.गाय को दान दे कर पुन कमा लिया जाए.पैसे तो आनी-जानी चीज है.भाग में ही नहीं थी गाय की सेवा करनी.जितनी लिखी उतनी तो कर ही ली.लगभग 30000 का नुकसान बैठ गया.पंड़ित से पूच्छा पडवा कर देख लिया .किसी ने कुछ खिला दिया है.जिस कारण दुध नहीं दे रही.अब इसकी जांच शुरु हो गई.सभी पड़ोसियों को शक की निगाह से देखा जाने लगा.किसी की नजरों में ही दोष निकाला जाने लगा.पूरे आस-पड़ोस का पोस्टमारटम कर दिया गया.पशुओं के पूरे इतिहास को खंगाल दिया गया जो इस तरह की बुरी नजरों के शिकार बने थे.
यह सब तो ठीक था.पर गाय दुध एक ही टाइम देने लगी.वो भी बड़ी मुश्किलों से.गाय अब महंगी भी लगने लगी.बिचौलिए को पकड़ा गया.उसका ही कसूर था.उस पर भरोसा किया गया था.जानकारों ने बताया कि यह गाय राह चलती गाय है.पालतु नहीं है.पालतु होती तो ऐसा नहीं करती.मतलब बछड़े को ही दुध पीलाना पसंद करती है.नहीं तो ल्योटी को उपर खींच लेती है.दुध उतरता ही नहीं.चालाक गाय है.पालतु गाय को आदत होती है दुध निकलवाने की.पर आवारा गाय हमेशा सारा दुध अपने बछड़े को ही पीलाती है.
सारा मामला ठगी का था.ब्यात के नजदीक आई गायों को कुछ लोग पकड़ लेते है.बच्चा होने पर उन्हें अच्छे दामों पर बेच देते है.यह बात पता चलते ही बिचौलिए को बुरा-भला सुनाया गया.पर उसकी जेब में पैसे पहुंच चुके थे तो उसे उनकी बातें ज्यादा बुरी नहीं लगी.गाय को गऊ माता मानने वाले परिवार ने अपना गुस्सा गाय पर लट्ठों के जरिए उतारा.गाय पर सारी भड़ास निकाल दी गई.
निर्णय लिया गया कि गाय को गऊशाला में धोड़ दिया जाए.गऊशाला वाले भी गाय को फ्री में नहीं लेते.उन्हें भी पैसे देने पड़ते है.बेचने की सोची.पर सोचा हम क्यों किसी से ठगी करे.गाय गऊशाला पहुंचा दी गई.गली में घुमती गायों के बीच रह रह कर उन्हें आज भी अपनी उस गाय की याद से ज्यादा 25000 रु की आती है.
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