बुधवार, 6 जनवरी 2016

बिल्लू का गुल्लक

#बिल्लू_का_गुल्लक

एक बर की बात सै । एक म्हारा दोस्त फेकण तै नहीं हटै था। उसकी बकबक सुण कै सारे भीत हो लिए थे। पर ओ कोणी मान्या ।

म्हारे में था तो वो सब तै सुथरा। इस मारे भी म्हारी सबकी उसनै देख कै जल्या करदी । उसनै छोरी भी घणी लैन दिया करदी ।

या हे मरोड़ उसनै इतना बुलवा री थी ।कहण लाग्या इसा है भाई गुड़ पै तै माखी (मक्खी) आया ए करै सै । एक म्हारा सब तै भुंडा दोस्त भरया पड्या था । ओ बोल्या-माखी तो गू पै भी खूब बैठे । सुथरे आळे का मुंह खुला का खुला रह गया । म्हारे सब के पेट फुटगे हंस हंस कै ।
हजारी जवाबी भी एक बड़ी खूबी मानी जाती है हरियाणे की ।

सब नै राम-राम

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें