शनिवार, 7 मई 2016

कुछ तो सरम करो

शादी को हुए तीन दिन और चार रात हुई थी। गर्मियों के दिन थे तो दिन भले ही तीन हुए थे पर चार रातों से लंबे ही बीते थे। रात की गर्मजोशी में उन दोनों के बीच कुछ-कुछ कहासुनी हर रोज हो रही थी। उन्हें लगता था उनकी बातें उन चार दिवारों तक ही सिमटकर रह जाती होंगी। झगड़ा होने का कारण कोई बड़ा कारण तो बिल्कुल नहीं था, ऐसा वो लड़की समझ रही थी और लड़का झगड़े के कारण को जीवन-मरण का प्रश्न बनाए हुए था।
शादी के बाद वह कमरा भर नहीं रहा था बल्कि बैडरूम हो गया था। शादी से पहले उस कमरे में एक तकत पड़ा था और कोने में स्टूल पर छोटा रंगीन टीवी। बैडरूम होते ही उसमें एक डबलबैड, ड्रैसिंग टेबल और बड़ा-सा एलइडी टंग गया था। नई दुल्हन की तरह कमरा महकने-चहकने लगा था। हर कोई दबी नज़र से उस बैडरूम की तरफ देख भर लेता था। पहले की तरह उसमें आवाजाही पर पूरी तरह बैन लग गया था। उस कमरे से आती हल्की सुंगध सबका ध्यान अपनी और खींचती थी।
लड़के की मां ने कई बार सोचा उस कमरे में टहलने का और देखने का। पर उसे कोई सॉलिड से बहाना नहीं मिल रहा था। कमरे के दरवाजे के दूसरी तरफ की खिड़की में कुलर चल रहा था। मां को लगा कुलर चल रहा है कि नहीं इसी बहाने मैं टहल आती हूं। जैसे ही वह कमरे की तरफ जाने लगी लड़के के बाप ने उसे रोक दिया-तू के करैगी उड़ै। रहण दें। इब मत न्यूए मुंह ठा के बड़या कर। छोरा ब्याह दिया सै तन्नै इब। लड़के की मां ने पलटकर जवाब दिया-मैं तो कुल्लर देखण जाऊं थी अक सही चाल रहया सै अक नी। मन्नै के पड़ी सै भीतर जाण की।
 मन ही मन मां ने सोचा आज भर की देर है। कल से लड़का अपनी डयूटी बजाने लगेगा। फिर तो उसका ही राजकाज चलना है घर पर। यह सब सोचते-सोचते उसकी चाल कब बदल गई उसे पता ही नहीं चला। बल्कि बदलने से ज्यादा यह कहना ठीक रहेगा कि उसकी बैक आपकी भासा में बोले तो पिछवाड़ा हद से ज्यादा लरजने लग गया था। लड़के के बाप ने गौर किया कि उसकी लुगाई की चालढाल भी नई नवेली दुल्हन की तरह की हो गई है और वह भी अब सुबह उठते ही सबसे पहले नहा धोकर नए कपड़े जांच लेती है। इतना तो दो बहनों के बीच कंपीटिसन नहीं चलता होगा जितना सास-बहु में छिड़ गया था। लड़के के नौकरी पर जाते ही उसकी मां ने सबसे पहले ड्रैसिंग टेबल को सिरे से खंगाल डाला। खंगालना नहीं कंगाल करना ज्यादा सही शब्द रहेगा। सामान के नाम पर अब उसमें कुछ बिंदियों के पैकट और एक लिपिस्टिक पड़ी थी। वह भी हनुमान-क्लर था इसलिए शायद छोड़ दी गई थी। आँख में डालने वाली आई-लाइनर शायद पैन समझकर छोड़ दिया गया था। परफ्यूम की महक भर कमरे में रह गई थी। वह कपड़े सुखाने के बाद नीचे अपने कमरे में आई और ड्रैसिंगटेबल को खुला देखकर हैरान रह गई। उसने जैसे ही उसका ददरवाजा खोला सामने में चूड़िया हिलने लगी और उनकी खनखन की आवाज़ में सारा मामला उसे समझ आने लगा। उसकी सास आज और दिनों के मुकाबलें ज्यादा प्यारी और मीठी बातें कर रही थी। उस मीठेपन का जहर उसकी आंखों के सामने तैर रहा था।
वह निढ़ाल होकर बिस्तर पर गिर गई। बिस्तर पर गिरने से पहले उसने अपना दुपट्टा सिर से उतारकर साइड में फेंक दिया था। उसका छितराया हुआ बदन मानो टूट कर बिखर गया था। उस बिखरने में एक तरतीबपन बना हुआ था।
उसकी आंखें जब खुली तो देखा उसका देवर कमरे से वापिस लौटने के लिए मुड़ रहा था। वह झट से उठी और अपना दुपट्टा ढूंढने लगी। उसको लग तो काफी देर से रहा था कि उसके कमरे में कोई और भी है। पर उसने अब तक किसी और को अपने कमरे में देखा ही नहीं था तो उसे लगा उसे भ्रम हुआ है। अब उसे ऐसा लग रहा था कि उसका देवर काफी देर से उसे ही देख रहा था। उसके जगने पर ही वह वापिस मुड़ा है। वह कमरे में करने क्या आया था?
वह यह सब सोच ही रही थी कि तब तक मां ने कमरे में घुसते ही डांटना शुरू कर दिया-तेरी तो कती शर्म भाग री सै। छोरे नै तेरे तै चाय बणान की कही तो तू आपणा दुपट्टा उतारने लगी। रात भर में आपने लोग के साथ तेरी आग नी बुझती के। जो छोट्टे छोरे पै नज़र ला री सै। इतना सनते ही उसकी आंखों से आंसू छलकने लगे। और वह अपने घूंघट से अपने आंसुओं को रोकती हुई बोली-मम्मी जी! मैं तो सो रही थी जब मुकेश आया। मुझे तो पता बी नहीं चला था। आंख खुली तो मैंने उसे जाते हुए देखा। कमरे से बाहर जाते हुए मां बड़बड़ाते हुए बोली-तेरे जैसी खूब देखी है मन्नै। रहण दे तू। घणी सफाई ना देवै। आण दे राकेश नै। ओ ए तेरी खबर लेवैगा।

मां के कमरे से बाहर जाते ही उसके दिमाग में राकेश का डर घर करने लगा। कहां तो वह सोच रही थी कि उनको कैसे बताएगी कि मां ने उसकी ड्रैसिंगटेबल से सारा समान निकाल लिया। कहां अब यह नई आफत उसके गले पड़ गयी है। पहली रात को हुआ झगड़ा बी खत्म नहीं हुआ था। वह सोचने लगी कि- क्यों ही उसने उस रात को उनको यह कहा था कि क्या मैं आपको तुम कह लूं। कहने को तो क्या ही बात थी। पर राकेश ने जैसे रिएक्ट किया था। वह उसका वह रूप देखकर हैरान हो गयी थी। उसकी बात अब भी उसके कानों में गूंज रही थी कि- तू के सोच्चै सै अक तू मेरे तै घणी पढ़-लिख री सै तो मेरी कती इज्जत ए कोनी करैगी। यो शहरी डरामा यहां नहीं चलेगा। लुगाई नै आपणी औकात कभी नहीं भूलनी चाहिए। वह बैड से उठकर सीधे मुंह धोने चली गई। वहां से फेसवास भी गायब मिला। उसकी जगह पर लाइफबुआय का आधे से ज्यादा घिसा हुआ साबुन रखा हुआ था। उसने मरे मन से मुंह धोया और तोलिये से चेहरा कम आंसू पोछने लगी। पोछते हुए उसकी नज़र सुबह टांगी ब्रा और पैंटी पर गयी। वो भी वहां से गायब थी। उसने कितने दिन पैसे इकट्ठे करके उन्हें खरीदा था। खरीदते वक्त और उससे पहले से उनको लेकर उसने क्या-क्या सपने देखे थे। वो सपने सच होने से पहले चोरी होने की बात तो उसके सपने में भी कभी नहीं आ सकती थी।

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