रविवार, 8 मई 2016

पॉपुलर हरियाणवी गीत : बनती भाषा, बदलती ज़ुबान



पॉपुलर हरियाणवी गीत अपनी भाषा,विषय-वस्तु और प्रस्तुति के स्तर पर पारंपरिक लोकगीतों और सांग-रागनियों से बिल्कुल अलग है । इस भिन्नता को उभारने में सबसे अहम भूमिका निभाई है- बाजार( कैसेट/सीडी/डीवीडी) ने । पारंपरिक मौखिक गेय साहित्य मनोरंजन,शिक्षा और समाज के सुख-दुःख आदि को अभिव्यक्त करने का सामूहिक माध्यम रहा है । डॉ. परमानंद के शब्दों में कहें तो—भाषाएं लोक-व्यवहार का दर्पण होती है ।[i] परंतु बाजार के दखल ने इसे सामूहिक और व्यक्तिगत दोनों रूपों में उपलब्ध कराया है,जो कि धीरे-धीरे मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक धरातल पर विमर्श का हिस्सा बनकर  उभर रहा हैं । विकल्प के तौर पर शुरू हुए इन पॉपुलर हरियाणवी गीतों का व्यावसायिक पक्ष भी बेहद महत्वपूर्ण है।  दूसरी ओर ये राग-रागनियां और पॉपुलर गीत  छोटे से छोटे गांव, कस्बे, शहर और महानगर आदि में  (कैसेट/सीडी / डीवीडी/मोबाईल-चिप/पैन-ड्राइव आदि) हर जगह उपलब्ध है । इसके अलावा यह किसी घर की बैठक, पब्लिक ट्रांसपोर्ट ,शादी-ब्याह, स्कूल-कॉलेज-यूनीवर्सिटी आदि के सांस्कृतिक कार्यक्रमों, सरकारी कार्यक्रमों और रैलियों आदि में सुनने को मिलते हैं । यानि इनकी डिमांड और सप्लाई का गुणा-गणित लिखित साहित्य की तुलना में कहीं ज्यादा सटीक है । इन सब परिस्थितियों को देखते-समझते हुए कुछ सवाल स्वाभाविक रूप से उठते हैं जैसे-
आखिर इतने व्यापक जनसमूह तक की पहुंच वाले गीतों की उपेक्षा क्यों ? क्या यह उपेक्षा समाज,संस्कृति और भाषा की उपेक्षा नहीं है ? क्या हरियाणवी गीत लिखना-गाना और सुनना, शिक्षक-साहित्यकार-बौद्धिक-आलोचक आदि  की नज़र में असभ्य एवं असांस्कृतिक कर्म है ?  जबकि सांस्कृतिक जगत में गीत-संगीत उच्च-कोटि पर विराजमान हैं, तब हरियाणवी गीत उपेक्षित होने के साथ-साथ खारिज़ की श्रेणी में क्यों हैं ? हालांकि लोकगीत,सांग-रागिनी आदि को सांस्कृतिक धरोहर माना जाता हैं,परंतु इन पॉपुलर हरियाणवी गीतों को फूहड़ और असभ्य की श्रेणी में डाल दिया गया हैं । जबकि इनमें समाज जैसा है वैसा अभिव्यक्त हुआ है,भले ही जैसा होना चाहिए वैसा स्वर कम ही है । पॉपुलर हरियाणवी गीतों का हरियाणवी  भाषा की प्रसिद्धि एवं लोकप्रियता में महत्वपूर्ण योगदान हैं ।  ऐसे में यह सवाल उठता है कि हरियाणवी भाषा को समृद्ध कौन कर रहा है ? यह पॉपुलर हरियाणवी गीत या शिष्ट लिखित साहित्य ? दरअसल जिस परंपरा से साहित्यकार अपने को जोड़ते है, वह भी अपने समय का लोकप्रिय मौखिक गेय (पॉपुलर) साहित्य रहा है ।हरियाणवी सिनेमा और गीत-संगीत हरियाणवी लोक-समाज के मनोरंजन,शिक्षा और ज्ञान-अनुभव के सबसे प्रमुख माध्यम आरंभ से रहे हैं और आज भी उसी तरह बने हुए है ।इसका तात्पर्य यह हुआ कि हरियाणा में आज भी पढ़ने-लिखने से ज्यादा श्रव्य-दृश्य माध्यमों की पकड़ कहीं अधिक गहरी हैं ।
लोकभाषा के रूप में हरियाणवी निरंतर गतिशील रही है और मौखिक परंपरा से होते हुए लिखित एवं श्रव्य-दृश्य ( आडियो-वीडियो) माध्यमों के जरिए एक सवैंधानिक भाषा का दर्जा प्राप्त करने के संघर्ष में सक्रिय है । इस आंदोलन में सक्रिय विद्वानों ने हरियाणवी को हिन्दी की सहभाषा[ii] के रूप में स्वीकार किए जाने पर बल दिया है तथा खड़ी बोली को हरियाणवी का शहरी संस्करण[iii]  माना है । भाषाएं भले ही चलती-ढलती अपनी ही चाल में हो,पर जब तक उनको विकसित और समृद्ध होने के अवसर उपलब्ध नहीं होंगे,तब तक वह उस गति से विकसित नहीं हो सकती ; जो उन्हें होना चाहिए । सरकार की नीतियां और उपेक्षाओं ने हरियाणवी को विकसित होने से रोका है ।  डॉ. राहुल सांकृत्यायन की समझ इस मामले में बिल्कुल साफ थी कि – जनपदीय बोलियां सजीव भाषाएं हैं,उनके बोलने वाले कर्मठ किसान-मजदूर हैं, आज भी उनमें लोक-साहित्य की रचना हो रही है । अतः जब हम इस असंख्य जनता को शिक्षित बनाने की बात करें तब हमें यह भी सोच-समझ लेना चाहिए कि इन जनपदीय भाषाओं का विकास करना है ताकि वे भविष्य में जनपदीय पार्लियामैंटों में बोली जाएं,कचहरियों में लिखी जाएं,प्राइमरी पाठशालाओं से लेकर विश्वविद्यालयों तक शिक्षा का माध्यम बनें । उनमें पत्र-पत्रिकाएं निकलें,फिल्में तैयार हों और उनके अपने रेडियो स्टेशन हों ।[iv] वर्तमान समय में जनसंचार के विभिन्न माध्यमों में हरियाणवी की बढ़ती हुई दखल इस आंदोलन का सकारात्मक पहलू है ।
बदलती जुबान – पॉपुलर हरियाणवी गीतों की भाषा,विषय-वस्तु और प्रस्तुति को लेकर ही सबसे ज्यादा सवाल उठते रहे है और इसी आधार पर इन्हें साहित्य की श्रेणी से बाहर रखा गया है । जबकि साहित्य और समाज का संबंध द्वंद्वात्मक होता है । दोनों ही एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं । कौन-किसको-कितना प्रभावित करता है, यह शोध का विषय हो सकता है ?
पॉपुलर हरियाणवी गीत केवल मनोरंजन का साधन एवं माध्यम भर नहीं रह गए है,बल्कि सत्ता-विमर्श और वर्चस्व की रणनीति का अहम् हिस्सा बनने लगे हैं । मनोरंजन की जमीन पैदा कर रहे इन पॉपुलर हरियाणवी गीतों में सांस्कृतिक बहुलता के साथ-साथ विभिन्न मुद्दे,संघर्ष,धारणाएं आदि के अनेक पाठ उभर रहे हैं,जिनका विश्लेषण लोकवृत्त(पब्लिक-स्फेयर) के आधार को ध्यान में रखकर किया जा सकता है,जिसमें एक खास वर्चस्व की राजनीति और विचारधारा भी शामिल है ।संस्कृति की चर्चा चाहे जिस भी रूप में हो,जिस किसी भी काल-खंड की हो,सत्ता से जोड़कर देखे बिना इसका विश्लेषण किया जाना संभव नहीं है । सांस्कृतिक अध्ययनों में भाषा का अध्ययन काफी महत्वपूर्ण माना जाता है । क्योंकि भाषा एक निश्चित परिप्रेक्ष्य को जन्म देती है और उसके इर्द-गिर्द उन आयामों का विस्तार करती है, जिससे कि प्रस्तुति की बहुलता के बावजूद आशय और स्वयं के परिप्रेक्ष्य को लेकर एकरूपता बनी रह सकें । इन पॉपुलर हरियाणवी गीतों की भाषा का जो रूप उभरकर सामने आता है,उसमें हरियाणवी समाज की मानसिकता,सामाजिकता और यूथ-संस्कृति की वो झलक मिलती है,जो हरियाणवी पर की जाने वाली अकादमिक विमर्श की बहस के बाहर निकलती जान पड़ती है । हिंग्लिश भाषा और संस्कृति पर तो फिर भी अध्ययन और चर्चाएं शुरू हो गई है, पर हरिंग्लिश( अंगरेजी मिक्स हरियाणवी) भाषा और संस्कृति(कल्चर) पर अभी कम ही चर्चाएं शुरू हुई है ।
हरिंग्लिश भाषा  पॉपुलर हरियाणवी गीतों के साथ-साथ लोक-विमर्श का हिस्सा बनकर उभर रही है । भाषाई साम्राज्य के नाम पर इस स्वाभाविक बदलाव को दरकिनार नहीं किया जा सकता । जो कि हर भाषा का स्वभाव होता है,जिसे कबीर भासा बहता नीर कहते हैं । एक तरह से हरियाणवी मनोरंजन और बाजार के सहारे नई चाल में चलनी-ढलनी शुरू  हुई है,इसकी झलक इन सलोगनों में साफ दिखती है- हरियाणवी मनोरंजन का दूसरा नाम,’ ‘ताऊwood’, ‘ताऊ हरियाणवीआदि ।हरिंग्लिश का चलन  साफ तौर पर दो तरह से देखा जा सकता है-
एक हरियाणवी वाक्यों के बीच अंगरेजी के शब्द -रोमन लिपि  और देवनागरी लिपि दोनों में होते हैं,उदाहरण स्वरुप-
शीर्षक में सीधे-सीधे अंगरेजी के शब्द ( रोमन में)—( yaar के ठाठ, total talli roula 2, rukka पडग्या, warning, awaraa boys, love in metro, गाल मैं dhooma ठा दयांगे,and band, yaran ki yaari,baby जी तेरी mast जवानी, दे दे kiss मरजाणी,) nokia 1100, यारा की full बदमाशी,तेरी चाल में attitudeघणा, देसी boss, खेत में duty,तेरा pizza hut ते wait करां, purpose in sony kudi, warning दे दी सालां तै,long drive, krezy हो गया, the king of Haryana आदि ।
दूसरी तरह की हरिंग्लिश जिसमें पॉपुलर हरियाणवी गीतों के वाक्यों के बीच में अंग्रेजी के शब्दों का देवनागरीकरण- शीर्षक में सीधे-सीधे अंगरेजी का देवनागकरीकरण-(एंडी छोरा,रिस्की यार, इडियट छोरी, टांका फिट छोरी हिट, जिंस वाली गर्लफ्रेंड, डिफाल्टर, सॉलेड बॉडी, टांका फिट भाभी हिट, ) गीत-गौरी हाई लेवल, कह गया हैलो-हैलो जान,जमाना मॉर्डन सै, देशी डयूड, नंबर वन हरियाणा,एंड-बैंड तेरे कई-कई फ्रैंड, मेरा टैम आन दे, आशिकी का बीमा,स्मार्ट फोन,पंडित ब्यॉज,डार्लिंग कह दे आई लव यू ,हरियाणे का सैंपल, आदि ।
इन गीतों में एक फर्क साफ दिखता है कि गाते वक्त  टॉन और शब्दों का उच्चारण हरियाणवी में होता है,जबकि लिखने के स्तर पर हिंदी का इस्तेमाल किया जाता है जैसे-मेरा टैम आन दे (लिखित रूप) उच्चारित रूप-मेरा टैम आण दे,जमाना मॉडर्न है(लिखित) उच्चारित रूप- जम्माना मॉडरन सै । अतः यह कहा जा सकता है कि आज भी हरियाणवी मौखिक रूप में अपने अस्तित्व को बचाएं हुए है,जबकि लिखित रूप में हम अभी भी अभ्यस्त नहीं हुए है ।मेरा खुद का अनुभव यह कहता है कि मैं हरियाणवी बोलने में जितनी सहजता महसूस करता हूं, उतनी लिखने में नहीं । हालांकि इस बीच कई गीतों की भाषा बेहद फूहड़ व भद्दी भी लगती है जैसे- एक बहन की टकी ने कर दी भड़क,भैण की दीनी,इश्क भैण का दीना,और इसके साथ-साथ द्विअर्थी गीत( मेरी ले लिए) भी भले ही कम मात्रा में हो,इनकी भी अपनी एक पुरानी परंपरा रही है,जिसे नंबरी रागणियां कहा जाता है । उनमें तो सीधे-सीधे स्त्री-विरोधी वक्तव्य होते है,जिन्हें अश्लील भाषा के अंतर्गत रखा जाता है ।
 पॉपुलर हरियाणवी गीतों को केवल ग्रामीण परिवेश के दर्शक-श्राताओं से जोड़कर नहीं देखा जा सकता ।  ये गीत अब गांवों के साथ-साथ शहरी युवाओं की भी ज़ुबान ( हट ज्या ताऊ पाच्छै नै,नाचण दे जी भर कै नै)पर चढ़े हुए हैं,जिनमें पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच अंतराल,संवादधर्मिता और टकराव को भी दर्शाया गया है ।मैंडम बैठ बलैरो मंजीजा मन्नै ब्याह मैं के देगा, धारे पहुंच्या इंगलैंड आदि ऐसे ही गीत हैं,जिनका कि मनोरंजन के बहाने बनती-बदलती सामाजिक-आर्थिक संरचनाओं के लिहाज़ से अध्ययन किया जा सकता है ।पॉपुलर हरियाणवी गीतों पर अपनी परंपरा के सामाजिक-सांस्कृतिक उद्देश्य  के साथ-साथ पंजाबी पॉप के रिमिक्स का तड़का और हिन्दी फिल्मी गीतों की धुन का असर(परोड़ी) साफ दिखता है और इनमें हरियाणवी ज़ुबान के साथ अंग्रेजी, हिन्दी व राजस्थानी आदि भाषाओं के शब्दों का प्रचलन हाल के वर्षों में बढ़ता हुआ नज़र आ रहा है ।
भूमंडलीकरण के वैश्विक प्रभाव और कामोन्मादी-लाभोन्मादी अर्थात् मुनाफे की संस्कृति ने समाज,संस्कृति और भाषा सब को प्रभावित किया हैं । इन पॉपुलर हरियाणवी गीतों में रुढिवादिता को बढ़ावा देने वाले और यथास्थिति को बनाए रखने वाले ठोस भारतीय एवं हरियाणवी मूल्यों की भी अभिव्यक्ति हुई हैं, जिसमें जाति-व्यवस्था की कट्टरता के साथ-साथ स्त्री को संपत्ति समझने के पूर्वग्रहों और धारणाओं को मजबूती प्रदान की है ।जबकि बाजार की नज़र में स्त्री उपभोग की वस्तु है,इन गीतों(तेरी सैक्टर 15 में कोठी रोला पतली कमर का’ ‘तेरे रेट बढ़गे साड़ी में पटोला’ ‘total talli roula 2’ ‘टांका फिट भाभी हिट छः भाई एक लुगाई आज्या डेट पे,तू एक नंबर की छोरी सै,तू बोतल बरगी दिख्खै सै/तेरा यार शराबी सै सिप-सिप करकै पीऊंगा/ तेरी ब्यूटी नै/जणू बाळक नळकी गेल्या चूसै फ्रूटी नै) की भाषा,विषय-वस्तु और प्रस्तुति का विश्लेषण करते हुए यह कहा जा सकता है कि इनमें स्त्री विज्ञापन और उसकी संपूर्ण देह उपभोग की वस्तु की तरह प्रस्तुत हुई है  । परंपरा और संस्कृति के नाम पर यहां दुहाई देने वाली पीढ़ी भी सवालों के घेरे में हैं । स्त्री वस्तु हो या संपत्ति, दोनों की सोच-व्यवहार में वह इंसान तो कतई नहीं है ।
हरियाणवी समाज की संरचना में जातिगत भेदभाव ( जाट्टा का छोरा,मस्त गुजर्र, इन राजपूत के छोरया का  पूरी दुनिया मं रूक्का सै,बागड़ की गजब लुहारी,डीजे पै नाच ले लुहारी,छोरा रोड़ा का आदि) से लेकर स्त्री दमन विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त हुए हैं । स्त्री के पहनावे को लेकर लिखे गए गीतों से इस बात को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है- ओ तेरी के आधा गात उगाड़ा कर री ।  इसी तरह पितृसत्तात्मक ढांचे के अंतर्गत पनपती पुरुषवादी मानसिकता जिसमें स्त्री के प्रति पारंपरिक सोच को बढ़ावा देते गीत काफी संख्या में है जैसे- तू डबल फेश की लाईट,गंडा पाड़ खेत ते बाहर,लुहारी-लुहारी,तेरे रेट बढ़गे, साड़ी में पटोला, रोला पतली कमर का, टांका फिट भाभी हिट,टांका फिट छोरी हिट,छोरी मेरठ की हुई जवान,तेरी लांडी कुडती,छः भाई एक लुगाई, मैं मोलड़ गैल्या ब्याहदी, सुन मैडम नखरे आली,boby कट, मेरे आलू बुखारे ओ, ना औल्हा ना ढाटा,तू के जिंदल कै ब्याह राखी सै, मैं पहरेदार तेरा,तेरा देखन जोगा attitude kude,’आदि है ।छोरे तन्नै देख मारै किलकीहरियाणवी समाज में आम बात है,जबकि यह पूरी तरह से स्त्री विरोधी कर्म है ।
हरियाणवी समाज में एक तरफ स्त्री-शिक्षा में बढ़ोतरी हुई है,दूसरी तरफ उसके अधिकारों को सीमित भी किया जा रहा है । इन्हीं पॉपुलर गीतों में स्त्री के प्रति सकारात्मक संदेश देने वाले गीत भी है जैसे –करो पढ़ाई बहन मेरी और परिवार में बहु का शिक्षित एवं जागरूक होना भले पुरुष-समाज को खटकता हो पर जैस-जैसे बहुएं आर्थिक रूप से सक्षम होती जा रही हैं,वैसे-वैसे उनकी जकडबंदी भी कम होती जा रही हैं- जमाना बहुआं का,हो या बहु की संदूक में बंदूकजो कि अधिकारों के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल की गई है । इसके साथ-साथ सामाजिक संदेश- चौबीस घंटे खेले ताश, मोटे खर्चे,आदि के जरिए उस खास वर्ग पर चोट की है,जो सुबह-शाम ताश खेलते है और घर और खेत का काम बहु-बेटियां करती है तथा साथ में बढ़ती महंगाई से बढ़ते खर्च की ओर भी संकेत किया गया है ।
अतः हरियाणवी की मौखिक परंपरा को आरंभ  में कैसेट उद्योग में स्थान मिला तथा तकनीकी और ढांचागत परिवर्तनों से काफी बदलाव आएं । कैसेट संस्कृति ने मौखिक परंपरा की विषय-वस्तु और प्रस्तुति को अपने नियमों के अनुसार बदलना शुरू किया । कैसेट के माध्यम से सुनना दरअसल सार्वजनिक उपभोग का व्यक्तिगत उपभोग में रूपातंरण कहा जा सकता है ।जो अब ऑडियो माध्यम से विजुअल माध्यम में बदलता जा रहा है ।[v]पॉपुलर हरियाणवी भाषा हिन्दी की बोली(मानी जाती है) के अंतर्गत बोलियों(अहीरवाटी,मेवाती,ब्रजभाषा,कौरवी,बांगड़ी और बांगरू)[vi]के राजनीतिक-खेल  से अलग अपना स्वतंत्र अस्तित्व विकसित और समृद्ध करती जा रही है । देश की जनसंख्या का करीब 2% और करीब 3 करोड़ के आस-पास इसको बोलने वालों की संख्या मानी-बताई जाती है । जबकि इसका प्रचार-प्रसार हाल के वर्षों में बढ़ता हुआ दिखता है । हिन्दी सिनेमा में तन्नू वेड्स मन्नू रिटर्न्स,मटरू की बिजली का मंडोला,NH10,किल-दिल,खाप,गुड्डू रंगीला, दंगल आदि के अलावा टीवी सीरियल में ना आना इस देश लाडो आदि ने हरियाणवी भाषा के प्रचार में अहम् भूमिका निभाई है ।अतः हरियाणवी के भाषा बनने की प्रक्रिया में पॉपुलर हरियाणवी गीतों की भूमिका को भी नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता और जो समाज की ज़ुबान को बदल और अभिव्यक्त दोनों कर रहे है ।



[i] डॉ. रेखा शर्मा,हरियाणा के लोकगीतों में भक्ति-भावना,हरियाणा साहित्य अकादमी,पंचकुला,प्रथम संस्करण-2005,उद्धृत,डॉ. पूर्णचंद शर्मा, हरियाणवी और उसकी बोलियों का अध्ययन(1998),पृ-26
[ii] रामनिवास मानव,हिंदी की सहभाषा : हरियाणवी, साहित्य अकादमी,दिल्ली,प्रथम संस्करण-2012,पृ-18
[iii] रामनिवास मानव,हिंदी की सहभाषा : हरियाणवी, साहित्य अकादमी,दिल्ली,प्रथम संस्करण-2012,पृ-16
[iv] डॉ. रेखा शर्मा,हरियाणा के लोकगीतों में भक्ति-भावना,हरियाणा साहित्य अकादमी,पंचकुला,प्रथम संस्करण-2005,उद्धृत,डॉ. पूर्णचंद शर्मा, हरियाणवी और उसकी बोलियों का अध्ययन(1998),पृ-25-26

[v] मीडिया नगर-03,नेटवर्क संस्कृति,2007,वाणी प्रकाशन,दरियागंज,नई दिल्ली,110002
[vi]रामनिवास मानव,हिंदी की सहभाषा : हरियाणवी, साहित्य अकादमी,दिल्ली,प्रथम संस्करण-2012,पृ-22

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