अब जब भी तुम से मिलता हूं,
तुम्हे एक अजीब से ,
सम्मोहन से घिरा पाता ह.
जीने के लपलपाती,
तुम्हारी आंखें,
मुझसे लिपटती हुई-सी जान पड़ती है.
तुम्हारे होठ,कान, सभी,
निरंतर कर्मरत रहना चाहते है,
अक्सर तुम खोमाशी से,
सिहर उठती हो,
कोलाहल तुम्हें अजीब-सी,
संतुष्टि देता है.
तुम्हे एक अजीब से ,
सम्मोहन से घिरा पाता ह.
जीने के लपलपाती,
तुम्हारी आंखें,
मुझसे लिपटती हुई-सी जान पड़ती है.
तुम्हारे होठ,कान, सभी,
निरंतर कर्मरत रहना चाहते है,
अक्सर तुम खोमाशी से,
सिहर उठती हो,
कोलाहल तुम्हें अजीब-सी,
संतुष्टि देता है.
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