शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

पैंतरा-पिटारा-प्रगतिशीलता

जमूरा-उस्ताद आपने पिटारे पर प्रगतिशीलता क्यों लिख लिया.
उस्ताद-इसमें प्रगतिशीलता के सारे पैंतरे एक साथ रख लिए है.
जमूरा-क्यों ?
उस्ताद-आजकल भीड़ इन्हीं के नाम पर इकट्ठी होती है,इसलिए.न जाने कब कौन-सा पैंतरा फैंकना पड़ जाएं.एक जगह रहने पर सुविधा होती है तथा सामूहिकता वाला पैंतरा भी फिट बैठ जाता है.पॉलिटिकली भी करैक्ट हो जाते है.सर्वगुण सम्पन्न जैसा भाव भी बना रहता है.
जमूरा-पर उस्ताद पिटारे में तो ओर भी बहुत कुछ रखा है आपने.
उस्ताद-चुप रह.इस तरह की बातें खुले आम नहीं कहा करते.समय विचार लेना भी जरूरी होता है.नहीं तो मूरख बनने में देर नहीं लगती.और एक बार जो तुम पिछड़ गए तो फिर पिछड़ों की अगुवाई कैसे करोगे.
जमूरा-उस्ताद पैंतरा क्या होता है ? डॉ.हरदेव बाहरी के शब्दकोश में तो पैंतरा-(पु.)-तलवार आदि चलाने,कुश्ती आदि में पहले वाली मुद्रा से दूसरी ओर अधिक उपयुक्त मुद्रा में आना,चालाकी से भरी हुई कोई चाल या पैर का निशान-बताया गया है.तथा पैंतरेबाज-जो हथियार आदि चलाने की सही ढञंग जानता हो,या जो समयानुसार रंग-ढंग बदलना जानता हो.
उस्ताद-(सोचते हुए-हरदेव बाहरी किस तरफ का है-कुछ याद न आने पर) अरे उसको छोड़ो,   यह वह शब्द-खेल है,जो अनेक-अर्थी होने के कारण कभी पकड़ में नहीं आएगा.जैसे ही पकड़ो गे ,यह तुरंत छि-टक कर अपना खोल बदल लेगा.इसमें सबको फिट भी किया जा सकता है और अनफिट भी किया जा सकता है.
जमूरा-फिट-अनफिट से मतलब.
उस्ताद-अपनी तरफ करना या दूसरी तरफ--दुश्मन खेमे में शामिल करना.
जमूरा- पर उस्ताद दुश्मनी करना तो ठीक नहीं होता.
उस्ताद-पागल इसे पक्षधरता कहते है.अपने-पराएं के भेद पर आधारित होती है.जो गरीब,निसहाय,शोषित,कमजोर आदि आदि है उनके पक्ष में.जो इनका पक्ष नहीं धरता-उठाता वहीं अपना दुश्मन है.यानी वो अपना विपक्ष है.उससे ही समाज को मुक्त करना है.ऐसा कहते रहना ही हमारा धरम है.धरम को नहीं छोड़ना चाहिए.
जमूरा-पर उस्ताद धरम से ज्यादा तो महत्वपूर्ण करम है.
उस्ताद-विरोध की संस्कृति को हम जिंदा रख कर उसी धरम के करम में लगे हुए है.और हां तू इस तरह के सवाल अकेले में ही किया कर.सामूहिक मंच पर एकजुटता नजर आनी चाहिए.नहीं तो दुश्मन अपने को कमजोर मानेगा.कमजोर होना हमें बिल्कुल पसंद नहीं है.हमें मजबूत दिखना चाहिए.अपनी कमजोरियों को छुपा कर ऱखना ही समय की मांग है.
जमूरा-उस्ताद फिर इस पिटारे की क्या जरूरत है ?
उस्ताद-पैंतरों को हमेशा पिटारे में ही रखना चाहिए.खुले आम कर देने पर इनमें जर लग सकता है.वैसे भी खुले रखूंगा तो क्या तू मुझे अपना उस्ताद मानेगा.नहीं ना.बस इन्हें पिटारे में रखने से ही हमारी बूझ होती है.नहीं तो हर कोई प्रगतिशील हो जाएगा तो फिर अलग और विशेष क्या रहेगा.हमारी तो अहमियत ही खतम हो जाएगी.हम विशिष्ट कैसे रहेंगे.कौन अगुवाई करेगा.विरोध की संस्कृति को आगे कौन ले कर जाएगा.
जमूरा-तो क्या उस्ताद, मैं हमेशा जमूरा ही बना रहूंगा और आप उस्ताद ही.या कभी आप भी जमूरे बन सकते है और मैं उस्ताद.
उस्ताद-चल भाग यहां से,तुझ पर भी दुश्मनों का रंग चढ़ कर बोलने लग गया.साला अपनी औकात ही भूल गया.मत भूल क्या-क्या नहीं किया मैं ने तेरे लिए.गद्दार कहीं के.कौन तुझे साथ में बैठाना  पसंद करता था.पर मैं ने तुझे साथ बैठाया-खिलाया.पर साले तू उस लायक ही था.जहां से उठ कर आया है चला जा वहीं पर.गंदी नाली के कीड़े.
ऐसा मन ही मन सोचता उस्ताद उसे छोड़ कर आगे बढ़ गया.अपने प्रगतिशीलता के पिटारे में पैंतरों को समेट-लपेट कर.किसी दूसरे जमूरे की तलाश में.

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