हाँ ,पहले जरूरी सूचना या है (कृपया डरे जरुर )कि कहानी के साथ किसी भी प्रकार कि (शारीरिक या मानसिक )छेड़ -छाड़ न करे .नहीं तो धारा 375 के तहत सजा हो सकती है .यदि गवाहों ने साथ दिया तो .वरना ...आप कि इजाजत हो तो कहानी शुरू करे ,नहीं भी है तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ता .
(कहानी वास्तविक है या नहीं .यह तो भई विक्की (विवेकानन्द ) ही जानते है कि छात्रों कि विश्वविद्यालय की समीक्षा के साक्षात गवाह है .उनके अगल -बगल में बैठ कर धुंआ उड़ाते छात्र ,जो अपनी सेहत तो दूर रही ,उनकी सेहत का भी मजाक उड़ाते हैं .वैसे कहानी कोरी दिमागी खुरापात ही है .ऐसा प्रोफेसर साहब चुपचाप 'सर्किट 'भाइयों से कहेंगे . इसका अंदाजा आपको अंदाजे -बयाँ से ही लगाना पड़ेगा यदि आप 'सर्किट 'की कटेगरी के नहीं है तो .)
विभाग कि जाँच -पड़ताल से ही विश्वविधालय कि दशा -दिशा का हलफनामा बयान हो जाएगा .
आप कहेंगे कि वो तो' अधुरा' सच होगा .
जब एक व्यक्ति के गुण -अवगुण का सरली करण करके पूरी जाति का सूचक बना दिया जाता है तब .खैर
छोड़िए, जिरह फिर कभी ...
एक्सक्यूज मी सर
हाँ बोलिए
सर मैं यहाँ एम.फिल . में दाखिला लेने के लिए आया हूँ ,क्या प्रक्रिया हैं ,कैसे होगा
ऐसा है भई कि हर संस्था कि तरह यहाँ पर भी कुछ दृश्य -अदृश्य नियम कानून है जो उनको फुलफिल करता
हो ,वहीं दाखिला ले सकता है तथा जिन्दगी में भी सफलता प्राप्त कर सकता हैं .
जैसे
रामदेव थोड़े ही हूं जो कुछ नुस्खे बताये और सब समस्याओं का समाधान हो जायेगा .पूरी प्रक्रिया को समझना पड़ेगा .उस प्रक्रिया में अपने को परख कर देखना ,खरे उतरते हो कि नहीं (सोने कि तरह यहाँ पर विद्यार्थियों को जांचा -परखा जाता हैं | फिजिकल ,मेडिकल कि जगह मानसिक ,व्यवहारिक आदि कसोटियों पर खरा उतरना पड़ता हैं .तब जाकर कहीं इस एकेडमिक लाइन में 'स्पेस ' बना पाओगे .
अच्छा ,आपकी जाति क्या है ?
उससे क्या फर्क पड़ता है . जाट हूं
अरे यार ,तुम तो अनफिट हो .
नहीं ,मैं बिलकुल ' फिट ' हूं
फिट हो ये भी एक दिक्कत है
क्यों ?
तुम ज्यादा फिट हो
कैसे ?
पहलवान लगते हो ,भले ही तुम पहलवान होते ,पर लगना नही चहिए .
तुमसे पूछा जा सकता है कि पहलवान हो क्या ?
अब तुमसे इन लोगों को कोई पिटवाना थोड़े ही है ,खुद पीटने का डर हमेशा बना रहेगा .
पर सुना है , यहाँ पर मार्क्सवादी विचारधारा को 'फोलो ' करने वाले सर है ,जो कि समाज में समानता ,भाई-
चारा और स्वतंत्रता का सपना देखते -दिखाते हैं .
तो कुछ हो सकता है क्या ?
यदि तुम पंडित होते तो तुमसे समानता और भाई -चारे का बर्ताव होता .
जहाँ तक स्वतंत्रता का प्रश्न है उसकी कुछ सीमाएं हैं -
दूसरे टीचरों कि गतिविधियों को फ -टीचरों को बताने के लिए स्वतंत्र हो .
छात्र -छात्राओं पर टिका टिप्पणी के लिए स्वतंत्र हो .
गुरु के हर कर्म माफ़ करने का भाव रखने के लिए स्वतंत्र हो .
आओ ,विभाग के दर्शन कर लो .
बाहर इतनी भीड़ क्यों हैं ?
ज्ञान बंट रहा है काफी हद तक . ज्ञान का उत्पाद हो रहा है ,दुकानदारी इससे बढती है
ये सभी भी अपनी अपनी प्रतिभा को' शो 'कर रहे है
ये शो आफ जारी है ......जारी रहेगा .........इससे गुरुओं कि प्रासंगिकता हमेशा बनी रहेगी ?
गुरु घंटाल बिन ज्ञान न होए ?
यही है राईट च्वाइस .
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