तेरे प्यार में न जाने कितने चक्कर लगाए थे तेरी गली के,
कितनी गजलें सुनी थी एक खत लिखने के लिए,
तेरे मना करने पर भी लिखी थी-जगजीत की गजल,
'प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है,
नए परिंदों को उड़ने में वक्त तो लगता है,'
कितनी मुश्किलों से पहुंचा पाया था वो खत तुझ तक,
कितना डर-डर के जाया करता था तेरी गली में,
हर मौके को भुनाया करता था तेरी झलक पाने को,
यूं बस मुस्कुरा कर,कर देती थी अलविदा,
अगले दिन नई उम्मीदों के साथ जूट जाया करता था तेरी गली में,
हर कोई देखता था तुझे और मुझे घूर कर,
पर हम फिर भी देखते थे एक-दूसरे को प्यार से,
उस गली का एकाध लौंड़ा भी मुझे तुझे चाहता था,
जो मुझे पीटवाने की फिराक में हरदम रहता था,
पर मैं फिर भी तेरी गली के चक्कर यूं ही काटा करता था,
उन दिनों न फोन थे,न मिलने की जगह,न ही बात करने का मौका,
हमने प्यार किया बस आंखों ही आंखों में,
कई बार इशारे भी किए,
कितनी तेजी से धड़कता था दिल,जब तुम हंसती थी,
मुंह फेरती हुई-सी,
तुम्हारी दोस्त भी देख रही अक्सर हमारे प्यार को,
कैसे वो धकेलती थी तुम्हे मेरे से मिलने को,
पर हम कभी मिल नहीं पाएं...
न बात कर पाएं...
पर तुम बदनाम कर दी गई,
देखने भर-से,
मुझे लोग देखते थे मर्द वाली नजर से,
और मैं सिर झुका कर निकल जाता था,
तुम में खोया -खोया सा,
थोड़ा रोया-रोया सा.
कितनी गजलें सुनी थी एक खत लिखने के लिए,
तेरे मना करने पर भी लिखी थी-जगजीत की गजल,
'प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है,
नए परिंदों को उड़ने में वक्त तो लगता है,'
कितनी मुश्किलों से पहुंचा पाया था वो खत तुझ तक,
कितना डर-डर के जाया करता था तेरी गली में,
हर मौके को भुनाया करता था तेरी झलक पाने को,
यूं बस मुस्कुरा कर,कर देती थी अलविदा,
अगले दिन नई उम्मीदों के साथ जूट जाया करता था तेरी गली में,
हर कोई देखता था तुझे और मुझे घूर कर,
पर हम फिर भी देखते थे एक-दूसरे को प्यार से,
उस गली का एकाध लौंड़ा भी मुझे तुझे चाहता था,
जो मुझे पीटवाने की फिराक में हरदम रहता था,
पर मैं फिर भी तेरी गली के चक्कर यूं ही काटा करता था,
उन दिनों न फोन थे,न मिलने की जगह,न ही बात करने का मौका,
हमने प्यार किया बस आंखों ही आंखों में,
कई बार इशारे भी किए,
कितनी तेजी से धड़कता था दिल,जब तुम हंसती थी,
मुंह फेरती हुई-सी,
तुम्हारी दोस्त भी देख रही अक्सर हमारे प्यार को,
कैसे वो धकेलती थी तुम्हे मेरे से मिलने को,
पर हम कभी मिल नहीं पाएं...
न बात कर पाएं...
पर तुम बदनाम कर दी गई,
देखने भर-से,
मुझे लोग देखते थे मर्द वाली नजर से,
और मैं सिर झुका कर निकल जाता था,
तुम में खोया -खोया सा,
थोड़ा रोया-रोया सा.
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