प्यारी बेटी तुम्हें,
इन कट्टरता-भरे पारिवारिक माहौल में,
जिनमें पुरुष-मानसिकता लबालब भरी है,
उस समाज के बीच,
जो घृणा,अन्याय,भेदभाव,हिंसा आदि की बुनियाद पर खड़ा हैं.
इन तमाम कठिनाइयों के बीच,
हर संभव माकुल,
और समानता-भरा माहौल,
बराबरी का हक,
तुम्हारे अधिकार,
सब कुछ तुम्हें मिल सके,
यहीं प्रयास करेंगे.
ना तुम आन हो,
ना तुम बान हो,
ना तुम शान हो,
तुम भी इंसान हो.
इन कट्टरता-भरे पारिवारिक माहौल में,
जिनमें पुरुष-मानसिकता लबालब भरी है,
उस समाज के बीच,
जो घृणा,अन्याय,भेदभाव,हिंसा आदि की बुनियाद पर खड़ा हैं.
इन तमाम कठिनाइयों के बीच,
हर संभव माकुल,
और समानता-भरा माहौल,
बराबरी का हक,
तुम्हारे अधिकार,
सब कुछ तुम्हें मिल सके,
यहीं प्रयास करेंगे.
ना तुम आन हो,
ना तुम बान हो,
ना तुम शान हो,
तुम भी इंसान हो.
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