रविवार, 22 सितंबर 2013

घरेलु-हिंसा

स्त्री के शोषण,अत्याचार,अन्याय और उसके प्रति होने वाली हिंसा आदि के इतने आयाम है कि सारी उमर अगर इसी पर लिखूं तो ये जिंदगी छोटी पड़ेगी.इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्त्री कैसी परिस्थितियों में अपना जीवन यापन करती है.आक्रामक नजरिये से कई बार सोचता हूं कि अगर मेरे परिवार और रिस्तेदारी की सभी स्त्रियों के जीवन को देखूं तो सभी मरदों को जेल में होना चाहिए था.घरेलु-हिंसा न करने वाला कोई मरद कम-से-कम मुझे अपने परिवार और रिश्तेदारी में नजर नहीं आता.

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