मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

हम होंगे कामयाब-(राजीव सुमन और संजीव चंदन)


राजीव सुमन और संजीव चंदन को देखकर पता नहीं क्यों बहुत दिनों से "जाने भी दो यारो" फिल्म के दोनों पात्र बार-बार मन में कोंधने लग जाते हैं.जो संघर्ष,विरोध के साथ-साथ सच की लडाई लडते हुए भ्रष्ट-व्यवस्था की भेंट चढ जाते हैं,क्योंकि सत्ता में बैठे लोगों की घुसपैठ काफी गहरी और मजबूत होती है.जिसका इस्तेमाल करते हुए वह अपने खिलाफ चलने वाले हर मामले को मैनेज करना जानते है और करते भी है. क्या मैत्रेयी पुष्पा भी मैनेज हो गई है ? क्या वर्धा के अलावा भी विभूतिनारायण की पहुंच हिन्दी के हर विभाग में है,नहीं है तो क्यों नहीं राजीव सुमन को पीएच.डी में दाखिला मिला.क्यों वह केवल यहीं एक मात्र लडाई करने के लिए संघर्ष कर रहा है ? क्या हमारे केवल उसके साथ इस लडाई में साथ भर होने से मामला निपट जाता है ? राजीव सुमन की मनोस्थिति क्या होगी,इस पर किसी ने विचार किया है? बहुत बार राजीव अपने को अकेला भी महसूस करता होगा.कहां है,वो सभी लोकतांत्रिक विभाग जो उसे दाखिला देंगे या उसे सभी ने अयोग्य घोषित कर दिया है ? है कोई जो राजीव को ठोस जमीन मुहैया करा सके ताकि वह इस लडाई को और अधिक मजबूती के साथ लड सके.अन्यथा हम एक व्यवस्था के खिलाफ खडे होने वाले को केवल एक तमगे में तब्दील करने के अलावा कुछ नहीं कर रहे है.वैसे ही हम व्यवस्था के खिलाफ खडे होने का साहस नहीं कर पाते(इतने मुखर रूप में)अगर यहीं परिणीति रहीं तो ये दोनों मात्र नारों में तब्दील होने के अलावा कुछ नहीं रहेंगे.क्या हम इतनी ही इमानदारी से इनके साथ है,जितनी इनकी उम्मीदें है,मुझे तो बिल्कुल उलट लगता है.

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