सोमवार, 7 अक्टूबर 2013

राख तले जतन से रखी आग


                           

पाखीपत्रिका के संपादक  प्रेम भारद्वाज हाल-फिलहाल के दिनों में  विवादों और लोकतांत्रिक निर्णयों के लिए काफी चर्चा में रहे.पत्रकारिता और सामाजिक-वैचारिक आंदोलनों में सक्रिय भूमिका के साथ रचनात्मक लेखन में भी निरंतर सक्रिय रहे है.  प्रेम भारद्वाज का कहानी संग्रह-इंतजार पांचवें सपने का सामयिक बुक्स प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है.इस संग्रह में छोटी-बड़ी कुल बारह कहानियां हैं-शहर की मौत,जड़ें,फौंटेसी,क्या वह पागल था ?,बथान,दंगे में फूल,अपराध बोध,धंधा,मोहभंग,...लेकिन आसमान चुप है,बीच का रास्ता,इंतजार पांचवें सपने का .
शहर की मौत कहानी डाक्युमैंट्री शैली में शहर की मौत का विवरण प्रस्तुत करती है,जो खेल के मैदान से लेकर चाची की दुकान तक पसरा पड़ा है.जहां संवेदनाएं निरतंर कुचली जा रही है.फैंटेसीकहानी प्रेम की सहजता को महत्व देती है.क्षेत्रीयता  के नाम पर होने वाली हिंसा और राजनीति पर करारा प्रहार करती हुई कहानी क्या वह पागल था ?” दलित लखिया का प्रेम-प्रसंग और नक्सली-समस्या के महीन रेसों में बुनी बथानकहानी अपने शिल्प और संवेदना दोनों ही स्तरों पर इस संग्रह की सर्वश्रेष्ठ कहानी है.दंगे में फूल सांप्रदायिक दंगों में बिछड़े बच्चे की कहानी है,जो पुलसिया-तंत्र की संवेदनहीनता के साथ-साथ दंगाइयों की अमानवीयता को शहर के कालिख-चेहरे के साथ उजागर करती है.अर्थी का धंधा करने वाला इंसान किस तरह अपनी मानवीयता खोकर मौत की प्रार्थना करता हुआ अपनी पत्नी की मौत पर सहजता से व्यवहार करता है.धंधा कहानी धंधे के अमानवीय पक्ष को प्रस्तुत करती है.नसरीन जिससे प्रेम करती थी,वह भी सांप्रदायिक निकला.इसी लिए वह उससे मिले बिना ही उसे छोड़ कर चली गई.बाबरी मस्जिद गिरने की खुशी प्रेमी के चेहरे पर देख कर नसरीन के भीतर की प्रेम-इमारत भी ढ़ह गई.लेकिन आसमान चुप है धार्मिक-उन्माद के अंदरूनी चेहरे को उजागर करती है.आलोक धन्वा की कविताओं से सराबोर कहानी इंतजार पांचवें सपने का सोम दा के क्रांतिकारी जीवन और उसकी गुमशुदगी के बीच  की विभिन्न प्रक्रियाओं का विश्लेषण करते है और स्वार्थ से भरे लोगों की पड़ताल करते हुए सपनों के मारे जाने की चिंता व्यक्त करते है.
अखबारों के पन्नों के बीच दबी हुई खबरें,टी.वी.की चिल्लाहट के बीच दब चुकी आवाजें,अगर कहीं बची हुई है तो, वह है साहित्यिक-संसार. जहां पर उन सभी खौलते-बोलते सवालों को,संवेदनाओं को,अंतर्विरोधों को,अपने समय की पीड़ाओं को और उज्ज्वल भविष्य की कामनाओं को जीवंत रूप में बचाएं हुए है.यह प्रयास है चीजों को बेतरतीब होने की यथास्थिति से बाहर निकालने का.गुमशुदगी के विज्ञापन में बदलते समाज के पलायन,मोहभंग,मेंटल-सेटलमेंट,हत्या-आत्महत्या,नक्सली वारदातें,साम्प्रदायिकता जैसे सवालों को अनेक सिरों से पारिभाषित करने की बजाय उनके कारणों-प्रभावों की पड़ताल करता हुआ, सन्नाटे के बीच मूकदर्शक बनने की प्रक्रिया के खिलाफ चहल-कदमी है.
तेज रफ्तार भरी जिंदगी के बीच लेखक इन तमाम सवालों को इनके संदर्भों के साथ छोटे-छोटे ब्यौरे के रूप में पाठक के सामने ताजगी के साथ रखता है.पाठक अपने आस-पास की जिदंगी में पसरे इन तमाम अनुभवों को गाहे-बेगाहे महसूस किए बिना नहीं रह सकता.महसूस करने के साथ-साथ अनदेखी के आलम से बाहर निकाल कर अपने परिवेश के प्रति जागरूक करने का अथक प्रयास इन कहानियों की ऊर्जा है.आम आदमी किस तरह तमाम-तंत्रों की रणनीतियों का शिकार बन रहा है,उसके जन-जीवन को कैसे तबाह-तबदील किया जा रहा है,इसकी पड़ताल गहरे सरोकारों के साथ लेखक ने अपने लेखन के जरिये की है.विकास के मॉडल को गहराई की जगह खाई में बदल देने के परिणाम फुटनोट की तरह जगह-जगह दर्ज हुए है,जो हाशिए पर धकेल दिए गए समाज की पीड़ाओं को संजीदगी के साथ टटोलने की जिम्मेदारी का अहसास कराते है.
ये कहानियां पाठक को मोहजाल में फंसाती नहीं बल्कि सामाजिक-प्रक्रियाओं में धीरे-धीरे शामिल करते हुए जागरूक-नागरिक के रूप में सचेत करती है तथा अपनी जिम्मेदारी एंव भूमिका के प्रति सोचने पर भी मजबूर करती है.यहीं से लेखन की शक्ति अपनी सार्थकता सिद्द करती है.चमक-दमक के दौर में जहां चमड़ी-दमड़ी का पाठ हर तरफ सीखाया जा रहा हैं,उसी  का प्रतिवाद बिना किसी शंखनाद के "इंतजार पांचवे सपने का" कहानी-संकलन करता है.आईस-पाईस के खेल की सहजता और अपना-पन इन कहानियों की बनावट में मौजूद है,जो एकल होते समाज की संरचना में एक गंभीर दस्तक की तरह है.ये दस्तक समाज की जड़ों में सामाजिकता की तलाश तो है ही,अपने बालकपन के खेलों को समाज से बाहर कर देने की पीड़ा का भी दस्तावेज है.टी.वी. भले ही भावुकता को बाजार में तबदील कर रहा हो,पर इन कहानियों में भावुकता सामाजिक सरोकारों के साथ मिलकर दादी-नानी की कहानियों की याद ताजा करती है.
   कहानियों के लिए पाठक न ग्राहक है,न कहानी केवल सौदा है. अगर वहां मौजूद है तो सिर्फ रिश्ता.इस रिश्तों को जोड़ती-मजबूत बनाती चाची की चाय की गरमाहट आप के साथ हमेशा मौजूद रहेगी.इस गरमाहट में ही पेड़-पौधे,घास,गंगा,नदी-नाले,मैदान,खेत-खलियान,गली-मुहल्ले,गांव-शहर आदि के बदलते समीकरणों को पहचाना जा सकता है.अतिवाद से लैस विचारों के बीच लेखक की मुख्य चिंता यही है कि-क्या सचमुच बीच का कोई रास्ता नहीं होता. संस्मरण और सचेत नागरिक की भूमिका के लिबास में पत्रकारिता को संजोए हुए 'इंतजार पांचवे सपने का' कहानी-संकलन अपनी सहजता में गंभीर मुद्दों को समेटे हुए है. ये कहानियां सनसनी को जन्म नहीं देती,बल्कि सनसनी और सन्नाटे के मौजूदा दौर में राख तले जतन से रखी गई आग की तरह है.
(यह लेख 29 सितंबर 2013 के प्रभात खबर में छपा है)

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