
दोस्त,तुम कितने अलग-थलग हो सबसे,
खासकर साहित्य पढ़ने-पढ़ाने वालों में,
बहुत कम लोग तुम्हें समझते है,
नहीं तो अक्सर लोग तुम से चिड़ते ही हैं,
पता नहीं किस मिट्टी के बने हो तुम,
दुनिया जहान के दुःख तुम कितनी खामोशी से
सहन कर जाते हो,
तुम जैसा व्यक्तित्व कम-से-कम हरियाणा में मुझे
नहीं मिला कोई,
जो साहित्य केवल पढ़ता नहीं,जीता भी हो,
और जिसे पढ़ने की भूख पेट की भूख से ज्यादा हो,
जो अक्सर कम पैसे होने के कारण दिल्ली के संडे बाजार में
अक्सर किताबें खोजता मिलेगा,
या राजघाट के किनारे किसी पेड़ की छाव में
दुनियादारी की कमीनगियों से दूर
गांधी से बातें करता हुआ मिलेगा ।
अक्सर लोग पी कर रो देते है,
तुम भी रो देते हो,
पर तुम औरों से अलग हो,
क्योंकि तुम अपने दु-खों के कारण नहीं
बल्कि किसी और के दुःख देखकर रोते हो,
देखी है मैंने तुम्हारी वो पीड़ा,
जब तुमने किसी शव को चूहे से
कुतरते देखा था
और दहाड़े मार-मारकर रोएं थे तुम
सबने तुम्हे पागल समझा था ।
मधुशाला की कितनी ही पंक्तियां तुम अक्कसर
गुनगुनाने लगते हो ।
बहुत ही भावुक किस्म के इंसान हो,
पर अक्सर लोग तुम्हारी सहजता को तुम्हारी
कमजोरी मानकर तुम्हें ठग लेते है
और अपने चतुर होने का वो लोग ढिंढोरा पीटते है ।
मुझे बहुत अच्छा लगता है तुम्हारे साथ रहना
समय बिताना
कितने कम समय में हम इतने अच्छे दोस्त बन गए थे कि
लोगों को लगता था कि हम सगे भाई है,
पर उनको भी सही ही लगता था,
हम दोनों की मां भले ही अलग-अलग हो,
पर साहित्य और संवेदना ने हम दोनों को सींचा है,
दोस्त,बस एक शिकायत रहती है तुमसे
इतना पढ़ते हो
पर लिखते नहीं हो,
लिखा करो दोस्त
बहुत बड़ा खजाना है तुम्हारे पास दुनियादारी का
उसे सौंप जाओ आने वाली पीढ़ियों को
ताकि सनद रहे
कि जिंदादिली केवल किताबी बातें-भर नहीं है,
उन्हें शिद्दत से जीया भी जा सकता है ।
बाकी की बातें फिर कभी...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें