प्रेम में अँधा होना
मुझे प्रेम का सबसे लुभाने वाला पक्ष यही लगता है। प्रेम में अँधा हो जाना। जो प्रेम में अँधा नहीं हुआ उसके प्रेम में अधूरापन रहेगा और अंधापन जितना बढ़ता जायेगा प्रेम उतना ही गूढ़ होता जायेगा।
जिसने भी यह टिप्पणी प्रेम पर की है। उसे प्रेम की गहरी समझ है तभी उसने अँधा कहा,बहरा य गूंगा नहीं कहा।
जाति,धर्म,लिंग आदि तमाम धारणाएं हमारी आँखों के जरिये ही पुष्ट होती है और जब हम प्रेम करते है तो इन आँखों को बन्द कर देते है।
कोई कितना भी समझा लें हम नहीं मानते। हम इन तमाम आँखों को बन्द करके अपने आप पर विश्वास करते हुए आगे बढ़ते है।
मन की आँखों पर यकीन हमें सब कुछ दिखाने लगती है।
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