शुक्रवार, 8 जनवरी 2016

परसाई के वंशज

नास्तिक के पेट का दर्द-परसाई के वंशज

आज नास्तिक कुछ परेशान से बैठा था। मैंने हाल चाल जानना चाहा पर उसकी रोनी सूरत देखकर मेरी ज़बान ने बैक गेर लगा दिया । चुपचाप बैठा नास्तिक उछलते-कूदते आस्तिक से ज्यादा जहरी हो जाता है।

वह किसी आयोजन या समारोह का कार्ड भी हाथ में लिए हुए था। जिस पर उनका नाम भी लिखा था। शायद आयोजन में जाने को लेकर संशय हो । यह पढ़कर मेरी हिम्मत बढ़ गयी । दिमाग को गैरेज में लगाकर मैंने जबान की क्लिच छोड़ दी और पहला गेर लगते ही शब्द निकला-किस संशय में हो महाराज आज ? यूँ उदास होना नास्तिक का लक्षण नहीं है। यह कहते हुए मैंने चुटकी ली ।ताकि गम्भीरता का घड़ा फूटे और नए शब्द जीवन का आगाज हो ।

मौन को जेब में रखते हुए नास्तिक बोला-पूरे अख़बार में आज एक भी ऐसी ख़बर नहीं जो धर्म से जुड़ी हो । क्या इस देश से धर्म की मूर्खताएं खत्म हो गयी है ? ये अख़बार सबसे पहले बिकने को तैयार रहते है। एक भी ऐसी ख़बर नहीं जिसे मैं आज शेयर कर सकूँ । पुराणी खबर तो मैं शेयर कर ही चुका हूँ ।धर्म की मूर्खताओं पर लगातार हमला होते रहना चाहिए । हद है नीचता की एक भी ख़बर नहीं । एक नहीं दोनों अख़बार में नहीं है ।
हाँ ये तो है । आप फेसबुक पर देखिए वहाँ शायद आपको मिल जाये।

हाँ ।अब यही करना पड़ेगा ।अख़बार वाली ख़बर लगाने पर मामला सॉलिड हो जाता है। फेसबुक की कई बार ख़बर झूठी होती है। इसलिए मैं तो अख़बार पर ज्यादा यकीन करता हूँ ।

जनाब नास्तिकों को एकजुटता की सख्त जरूरत है।

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