मंगलवार, 5 जनवरी 2016

बिल्लू का गुल्लक

यह फेसबुक और सेल्फ़ी फोबिया का दौर है । दौर बदलते चले गए और बदलते दौर के साथ फोबिया के दोरे भी पलटते रहे।

लुकम-लुकाई(छुपम छुपाई) बचपन का फोबिया रहा । फिर पकड़म-पकड़ाई का दौर आया । गाम की थली (रेत के टीले) पर फ़िल्म बनाने का दौर आया । गोलियां (कंचे) खेलने का दौर आया । घोड़ी आळे घोड़ी आळे कित्थू का दौर आया । बित्ती डंडे का दौर आया । पीठो खेलने का दौर आया । का डंडा खेलने का दौर आया।

क्रिकेट खेलने का जनून सबसे लम्बा चला । कबड्डी का दौर भी खूब चला । ताश नशा बनकर जीवन में उतरा ।

शराब और सिगरेट जीवन का हिस्सा बनती चली गयी । इनके साथ प्रेम और सेक्स के लिए भटकने का दौर जीवन का अंग बनकर साथ चलता-पलता गया ।लड़ाई-झगड़े भी होते ही रहे बचपन से लेकर अब तक ।

प्रेम में डूब जाने के बाद पढ़ने का दौर आया ।

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