मंगलवार, 5 जनवरी 2016

प्रेम कहानी

#हमारी_प्रेम_कहानी

पूनम और मैं जब दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से एम.ए.कर रहे थे । पहले साल हम दोनों के बीच कोई परिचय नहीं था। दूसरे यानी अंतिम साल में सभी को एक ऑप्शन खुद चूज करना पड़ता है।

यह बात 2003 की है । उन दिनों रीतिकाल और नाटक के अच्छे दिन चल रहे थे। बाकि के राम भरोसे चल रहे थे । समय और डिमांड के हिसाब से ज्यादातर नाटक और रीतिकाल को चूज करने में अपना भविष्य साफ देख रहे थे ।

हिन्दू कॉलेज के बच्चे रामेश्वर राय जी के आक्रांत वातावरण में आधुनिक कविता की तरफ कदम बढ़ा रहे थे। उन दिनों उनके लिए वो अंधे की लाठी थे । मुझ जैसे भी कई थे जो केवल अपनी पसन्द की वजह से आधुनिक कविता ले रहे थे। फैकल्टी का कोई सेलेब्रेटी टीचर उन दिनों आधुनिक कविता ऑप्शन की क्लास नहीं लेता था। डीयू के कुछ कॉलेज से हमें यदाकदा कुछ टीचर आ जाते थे । आधुनिक कविता ऑप्शन में उन दिनों दिक्कतें भी ज्यादा थी । 1850 से लेकर अद्यतन (वर्तमान)तक की कविता के साथ सभी विचारधाराएँ भी शामिल कर दी गयी थी । न तो मटेरियल मिलता था और न उन दिनों की जीवनबूटी अशोक प्रकाशन इस पर कोई गाइड निकालता था। उन दिनों गूगल बाबा का भी अता-पता नहीं था।

मैंने तो यही ऑप्शन लिया और पूनम ने भी यही ले लिया ।क्योंकि वो हिन्दू कॉलेज से थी । उससे पहली मुलाकात या फॉर्मल बातचीत तभी हुई थी । मेरी दोस्त ने ही हम दोनों के बीच दोस्ती कराई थी । एक महीने के बाद पूनम ने ऑप्शन बदल लिया ।

किस्मत जैसे शब्द पर यकीन नहीं करता हूँ पर इत्तेफाक गजब का था । उस महीने की दोस्ती ने भूमिका बना दी हमारे जीवन की । ऐसा लगता है उसका ऑप्शन केवल मुझसे मिलने का बहाना भर था।

2003 से शुरू हुई दोस्ती आज भी जारी है ।

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