#गालियां_भी_समझनी_पड़ती_है
गालियां गाम के जीवन का अहम हिस्सा होती है और सहज अभियक्ति का भी । एक किस्सा अचानक से याद आ गया तो सोचा अभी शेयर कर दूँ । बाद में हो सकता है फ़िसलकर कहीं गहरे चला गया तो पता नहीं कब बाहर निकल पायेगा ।
हुआ यूँ अक मैं और मेरा भाई गली में क्रिकेट खेल रहे थे ।हमारी दो पड़ोसन आपस में झगड़ने लगी । दोनों एक दूसरे को गन्दी-गन्दी गालियां देने लगी ।हम दोनों भाइयों को शुरू में तो खूब मजा आया । गालियों से ज्यादा इस बात पर आ रहा था कि उन दोनों के परिवार से हमारी नहीं बनती थी । गाम में नहीं बनने का मतलब यह होता है कि उनसे खूब झगड़ा हुआ है ।
गालियों के बीच एक ने अजीब गाली दी जो हमारे पल्ले ही नहीं पड़ी । उसने कहा भाई रोई रण्डी तू तो पैसेंजर रेल हो री । हम दोनों भाई एक दूसरे की तरफ देखते हुए समझने की कोशिश करने लगे कि इसका क्या मतलब है ? आज वो बात कैसे अचानक से याद आई यह भी गहरी जिज्ञासा बन गयी मेरे लिए ।
यह भी एक सीरीज ही है ।जिसमें आपको गाम की लड़ाई और उनके साहित्यिक प्रयोग आपसे साझा करूँगा ।
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