मंगलवार, 5 जनवरी 2016

मेट्रो की मशीन और तगाजगीर

मेट्रो की मशीन और तगाजगीर

मेट्रो स्टेसन में घुसने से पहले जो चैकिंग होती है उसी समय मशीन में सामान भी चैक होता है । सुबह और शाम के समय तो उसमें सामान डालने की इतनी मारा-मारी होती है कि कुछ दो छः बिलांग से ही बैग फेंक कर मारते है । उनकी फुर्ती और जज़्बे को देखकर ही यह शब्द दिमाग में अंकुरित हुआ-तगाजगीर ।

गाम के परिवेश से जिंदगी के अनुभव का ज़खीरा लिए घूमता हूँ तो पहला विचार मन में यह आया कि इन लोगों से गंडासे (चारा काटने की मशीन) में कुछ काटने को कह दिया जाये तो हो सकता है ये अपना हाथ भी कटवा लें । इतनी हड़बड़ी यह भी दर्शाती है कि कहीं तो कुछ गड़बड़ है । यह गड़बड़ कोई आम-सी गड़बड़ नहीं है । इस पर अध्ययन होना चाहिए । कौन करेगा यह भी एक तरह का प्रश्न ही है । किसी को यह फालतू का काम लग सकता है । अब तो लगने लगा है फालतू काम ही असली काम है और असली काम के नाम पर बस धोखा हो रहा है। शोध करना जब मजबूरी और विवशता हो तो घण्टा शोध होगा । मैं खुद इस तरह के घण्टा काम करके उक्ता गया हूँ । कुछ मन का करना चाहता हूँ । सोचता रहता हूँ। करता मैं भी कुछ नहीं । सफलता-असफलता के फेर में लगता है मैं भी उलझने लगा हूँ ।

सफलता-असफलता तो लगी ही रहती है ।

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