होशियार कभी नहीं रहा। खासकर पढ़ने में। तो होशियार बच्चों के माँ-बाप कैसे टिप्स देते होंगे इसका मुझे अनुभव नहीं। पर कमजोर को दिए जाने वाला ज्ञान जरूर याद है।
बेटा। सबसे पहले पेपर को शुरू से लेकर आखिर तक दो बार पढ़ना। ये मत करना कि पहले सवाल को पढ़कर उसका जवाब लिखने मत बैठ जाना।
पहले सारे सवाल पढ़ो। फिर जो सबसे अच्छे से आता हो उसका जवाब दो। घर वालों को भी पता होता था कि सभी सवालों के जवाब इसको बढ़िया से नहीं आते होंगे।
मैं तो दो क्या तीन बार पढ़कर भी यह तय नहीं कर पाता था कि सबसे बढ़िया जवाब किसका आता है मुझे। हारकर जिस भी सवाल को उत्साह और जोश के साथ शुरू करता। एक पेज खत्म होते-होते सारा उत्साह सिमट जाता और जोश पेन के अंदर कहीं घुस जाता। तब लगता यार गलत सवाल पर हाथ डाल दिया। किसी बाकि बचो में से किसी एक सवाल को उठाता।
घर वालों की इस हिदायत को अमलीजामा पहनाने के लिए सवाल को पूरा पेपर पर लिख देता था ताकि सवाल को ठीक से समझ सकूँ। सवाल तो ठीक समझ आ जाता पर जवाब आस पास भी नहीं फटकता था।
वो मेरे सभी साथी जो उन दिनों के कलमघीस थे अब पता नहीं क्या कर रहे होंगे? मैं आजकल उन दिनों नहीं लिख पाये शब्दों और सवालों के जवाब लिखने में लगा हूँ। ऑउट डेटेड होना मेरी फिदरत रही है। समय से दो कदम पीछे चलना अब मेरा हुनर बन गया है। हारना मेरे जीवन का अंग। हताशा और निराशा जब मन करता है मेरे गले आ लगती है।
मैं अपना अनलिखा लिख रहा हूँ।
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