रविवार, 8 मई 2016

अख़बारवाला-1


                                                               
उनके घर वो लगभग 6:20 के आस-पास रोज अख़बार डालने से पहले अपनी साईकिल की घण्टी बजाता। उसको ये सख्त चेतावनी पूजा के पापा ने दे रखी थी कि अखबार हाथ में पकड़ा कर जाना है, जमीन पर नहीं फेंकना है, क्योंकि विद्या को ज़मीन पर फेंकना उसका अपमान करना हैं। पण्डित जी पुराने संघी होने के साथ-साथ विद्या की खूब इज्जत और पूजा करते थे। इसीलिए उन्होंने अपनी बड़ी बेटी का नाम श्रद्धा और दूसरी बेटी का नाम पूजा रखा था। तीसरे नम्बर के बेटे का नाम उज्ज्वल। बड़ी बेटी की शादी कई साल पहले हो चुकी थी।
पूजा घर पर रहकर ही बी.ए. करने के बाद बी.एड. कर रही है,क्योंकि उसके पापा को लगता है कि समय बहुत खराब है। लड़कियां न रस्ते में सुरक्षित है और न स्कूल-कॉलेज में। शिक्षक भी गिद्ध होते जा रहे हैं। इन विचारों को पुख्ता करते दस-बीस उदाहरण उनके पास कई साल से जमा है, जिनका बही खाता वो कभी भी खोलकर बैठ जाते हैं । उनको इस बात की तसल्ली है कि पैसे भले ही थोड़े ज्यादा लगते हैं पर लड़की साफ-सुथरी रहेगी तो रिश्ते में दिक्कत नहीं आएगी। साफ-सुथरी से उनका तात्पर्य बेदाग होना है। बेदाग का सामाजिक मतलब है किसी से चक्कर न चलना। मतलब शादी से पहले किसी से किसी भी प्रकार के कोई संबंध न रखना। मतलबी दुनिया में आप किसी बात के जितने चाहे मतलब निकाल सकते हैं। मतलब कभी न खत्म होने वाला शब्द है।
 रिश्ते की जब भी बात चलती वो उस वक्त भी इस बात पर खासा जोर दिया करते हैं कि लड़की की सारी पढ़ाई-लिखाई घर पर रहते ही हुई है। ताकि लड़के वाले लड़की के कैरेक्टर को लेकर अपने दिमाग का ज्यादा टरैक्टर न चलाए। बात को कई जगह चली पर न तो चल पाई और न दौड़ पाई। हर बार यह कहकर भगवान की तरफ देखने लगते कि जहां संजोग लिखा है रिश्ता वही होकर रहेगा। हम सब तो बस जरिया है। करने वाला तो परमात्मा ही है। परमात्मा की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। हम तो ठहरे आम इंसान।
इसी तरह बस जीवन बसर हो रही थी। इसी बसर में थोड़ा बदलाव तब आया। जब केंद्र के बाद हरियाणा में भी भाजपा की सरकार आई, तब से वो नियमित रूप से शाखा में भी जाने लगे हैं । बन्द पड़ी हुई शाखा खिल खिलाने लगी है । खिलखिला तो उस समय भी खूब रही थी, जब उसे बन्द करना पड़ा था । बन्द कुछ बदमिजाज़ किस्म के लड़को की वजह से करनी पड़ी थी । वो रोज चिल्ला-चिल्लाकर कहते थे कच्छाधारी आगे । जाट बहुल एरिया होने की वजह से उनका कुछ किया भी नहीं जा सकता था । सरकार और पुलिस भी हाथ खड़े कर लेती थी। कौन लड़े-झगड़े ? पर अब कानून सरकार से दो कदम आगे दौड़ने लगा है । इसलिए अब शाखा भी नियमित हो गयी है ।
सुबह का अख़बार पकड़ने की ड्यूटी पण्डित खुद निभाया करते थे पर अब शाखा में आने वालों की संख्या बढ़ गयी थी । जिसके कारण उत्साह में शाखा का समय आधे घण्टे से बढ़ाकर एक घण्टा कर दिया। जिस कारण अख़बार की जिम्मेदारी अब पूजा को सौंप दी । इसमें भी उन्हें दो फायदे नजर आएं । एक तो पूजा जल्दी उठने लगेगी और दूसरा सूर्य नमस्कार कर लिया करेगी ताकि उसका तन और मन स्वच्छ रहे ।
कुछ दिन दोनों की केवल नजरें टकराती रही। फिर हंसी भी भिड़ने लगी।
सुभाष भी अब एक नहीं तीन घण्टियाँ बजाने लगा और उसने पूजा के चक्कर में नई साईकिल खरीद ली । जो मोडर्न भी थी । अब वह सुबह नहा धोकर आने लगा । पूजा हंसी से मुस्कुराहट के दौर में प्रवेश पा चुकी थी। पूजा की मुस्कुराहट उसकी ऊपर की आमदनी हो गयी थी। जिसकी उसे लत लग गयी थी। पूजा भी उससे खुलकर हंसी मजाक भी करने लगी थी । हंसी मजाक के केंद्र में अख़बार हमेशा रहता था । सारी खींचतान अख़बार तक ही सीमित थी। सुभाष ने उसके सामने नम्बर बनाने के चक्कर में कई बार नया फोन निकाला और जेब में डाल लिया। पर पूजा की तरफ से कोई पहल नहीं हुई । वह भी डर के कारण कुछ ज्यादा बढ़ नहीं पाया ।
कुछ दिन जब वह अख़बार का बिल देने आया तो उसने हिम्मत करके बिल पर अपना फोन नम्बर भी लिख दिया।
नम्बर कागज के टुकड़े से होता हुआ सीधे वेट्सएप से जुड़ गया। उसी के जरिये सुभाष को उसका नाम पता चला। अख़बार बाँटना अब उसके लिए रोजगार और उत्साह दोनों तरह का फायदा करने लगा। कई महीने बात करने के बाद उन्होंने बाहर मिलना तय किया।
आज वो उससे मिलने आई तो सुभाष भी अपने दोस्त से बाइक मांगकर लाया था । दो हेलमेटों में ढकी बाइक कई घण्टों तक गलियों और सड़कों के फेरे लगाने में लगी रही।
क्या खायेगी पूजा ?”
मुझे एक तो दाल फ्राई खानी है और तन्दूर की रोटी।
अरे !
हाँ ! यार ! मेरे घर पर प्याज और लहसुन खाना मना है । मेरी दोस्त बताती है कि प्याज और लहसुन से दाल फ्राई मस्त बनती है । मुझे तन्दूर की रोटी भी खानी है । मैंने तुझको पहले ही बोल दिया था कि मुझे ढाबे पे खाना खाना है ।
पूजा यहां पर मसाला डोसा भी अच्छा बनता है ।
नहीं । मुझे दाल फ्राई ही खानी है । देख जिस घर में मेरा रिश्ता तय हुआ है वो भी प्याज-लहसुन नहीं खाते । मैं तेरे साथ जो-जो मेरा मन है वो खा लेना चाहती हूँ । तेरा मन है डोसे का तो तू खा लें ।
नहीं । मैं भी दाल फ्राई ही खा लूंगा।
सुनो ! एक बढ़िया सी दाल फ्राई,प्याज और लहसुन का बढ़िया सा तड़का लगाना,एक दम आलू और छः तन्दूरी रोटी मख्खन लगाकर ले आओ।
सलाद और पापड़ भी लगाने है ।
प्याज तो दोगे ही ?”
हाँ ।
फिर सलाद रहने देना और दो पापड़ भी लगा देना । थोड़ा जल्दी लाना ।
ठीक है और कुछ नहीं ?”
फ़िलहाल ये ले आओ ।
जी !
लगता अजीब ही है सुभाष यूँ बाहर आकर दाल-रोटी खाना । पर करें भी क्या ? और कोई चारा भी तो नहीं । यहां कोई जान पहचान का तो नहीं आएगा न ?”
ना । रेस्टोरेंट में तो फिर भी कोई न कोई जान पहचान का मिल जाता है । ढाबे पर कोई नहीं आता । वैसे भी ये अपने शहर (कस्बे) से तो बाहर ही है ।
तुम्हारी नौकरी का क्या हुआ सुभाष ? बनी कहीं बात ?”
लगभग हो गयी समझो । गुड़गांव में एक दोस्त ने एक कम्पनी में बात की है । सोमवार को बुलाया है । बस पहली सैलरी वो लेगा।
अच्छा ! चलो कोई नहीं । ये सोच लेना कि एक महीने बाद लगी है । आई टी आई करने से देर-सबेर नौकरी तो मिल ही जाती है । और गुड़गांव कौन-सा लन्दन में है ?”
हाँ ! ये तो है पूजा । पहले जल्दी और आसानी से मिल जाती थी । जब से ये प्राइवेट कॉलेज खुले है इंजीनिरिंग के तब से कम्पीटिसन बढ़ गया है।
ओह !
खाना खाने के बाद उन्होंने ठण्डी खीर भी आर्डर कर दी और खीर खाते हुए पूजा बोली- पता है तुम्हे मेरा जो रिश्ता तय हुआ है वो शायद टूट जाएँ ?”
क्यों ? क्या हुआ ?”
कहने को तो कुछ हुआ भी नहीं और हो भी बहुत कुछ गया । वो मुझे शुरू से ही सनकी लगता था । फोन पर एक दिन बात करते-करते पूछने लगा -तुम्हारी फेवरेट फ़िल्म कौन-सी है ? अब एकदम से कोई याद ही नहीं आ रही थी । पिछली रात को मिर्च देखी थी तो वही याद आ रही थी । अच्छी भी लगी थी । मुझे तो मिर्च फ़िल्म का नाम लेने दो उसने तो धड़ाम से फोन काट दिया । उस समय तो मुझे कुछ समझ ही नहीं आया । पर बाद में सोचा कि कितनी घटिया सोच रखता है । मैंने भी दोबारा फोन ही नहीं किया ।
अरे ! इसमें नाराज होने वाली कौन-सी बात थी ?”
चार दिन हो गए उसका फोन आए । ठीक है अगर पिंड छूट जाएँ तो । पता है मुझसे पूछने लगा कि हनीमून पर कहाँ चले ? तो मैंने झट से गोवा बोल दिया । उस दिन भी उसने मुंह फुला लिया था । कहने लगा-पूजा जी ! हम वैष्णो देवी चलेंगे । बताओ पापा के साथ भी वैष्णो देवी जाओ और अब पति के साथ भी वैष्णो देवी जाओ ।
तगड़ा भक्त लगता है माता रानी का ।
नहीं । भक्त तो सांई बाबा का है । पर शादी के बाद की जिंदगी अच्छी गुज़रे इसके लिए माता रानी का आशीर्वाद जरूरी मानता है ।
चलो पूजा तीन बज गए ।तुम्हे घर लेट हो जायेगा । बे-फालतू में लेने के देने न पड़ जाएँ ।
कोई टेंसन नहीं है आज । छः बजे तक का टाइम है ।
वो कैसे ?”
आज चार्ट बनाने के नाम की निकली हूँ । महीने दो महीने में एकाध बार ही तो मौका लगता है निकलने का । पिछली बार जब निकली थी अपनी दोस्त कमलेश के साथ तो हमने डोसा ही खाया था । अब सबके साथ तो धर्म भ्रष्ट नहीं किया जा सकता और अरेंज मैरिज के बाद तो यह सपना सपना ही रह जाएगा। वो लोग भी क्या पता हमारी तरह नहीं खाने वाले मिल गए तो?
और चार्ट ?”
वो दुकानदार से बात कर रखी है । वो बने बनाएं ही दे देता है । थोड़े ज्यादा पैसे लेता है पर कोई झंझट नहीं होता । कॉलेज वाले भी उन चार्ट पर अच्छे नम्बर देते हैं । उनका कमीसन बंधा होता है उनके साथ ।
ओह ! सब पैसा बनाने में लगे हुए हैं ।
होर क्या ? पैसे को तो भगवान बना दिया है । तुमको तो पता ही है मेरे चाचा हमारी जमीन के पैसे भी खा गए । नहीं तो अब तक मेरा भी ब्याह हो गया होता । खैर कुछ बुरा हुआ तो कुछ अच्छा भी हुआ ।
पर तुम्हारे चाचा तो शहर के जानेमाने पंचायती आदमी हैं और शहर में उनकी पूरी धाक भी हैं। भाजपा और कांग्रेस के सारे नेता उनके पास जरूर आते हैं। रूतबा तो खूब है उनका।
इसीलिए पापा कुछ कर नहीं सके। पापा बिल्कुल सीधे इंसान है। पर दिल के बहुत अच्छे हैं। पापा कहने को बड़े हैं पर सम्मान चाचा का अब भी बहुत करते हैं। उनकी किसी बात को मना नहीं करते। उनके कहने पर ही पापा शाखा में जाते हैं। वरना पापा को राजनीति बिल्कुल पसंद नहीं है। चाचा नहीं चाहते कि उनका कोई काम भाजपा के राज में रूके। उनका सभी दलों में बढ़िया रूतबा है।
हां ये तो है। पर तुमने अभी तक ये नहीं बताया कि तुमने पार्टी किस बात की दी है ? अब तो खीर भी खत्म हो गयी ।
रुको सब्र करो । भैय्या बिल ले आओ ।
बिल तुम भरोगी ?”
पार्टी मैं दे रही हूँ तो बिल भी मैं ही भरुंगी न ।
अब बता भी दो।
उसने सौंप-मिसरी खाते हुए सुभाष की तरफ इशारा करते हुए दो उँगलियों को आपस में मिलाते हुए जीरो बनाकर खाने की तारीफ की । वह पार्टी का कारण जानने के लिए बेचैन होता जा रहा था । एकबार तो उसे लगा शायद रिश्ता टूटने की पार्टी दे रही है, तभी उसे ख्याल आया कि वो बात तो उसने पहले ही बता दी थी ।
एक खुशखबरी है सुभाष ।
शादी टूट गयी।

सब्र करो और शादी अभी टूटी नहीं है ।
नहीं । SBI में मेरा सलेक्सन हो गया है । कल ही रिजल्ट आया है । मैंने सोचा ये खुशख़बरी सबसे पहले तुम्हीं को सुनाऊं । आखिर तुमने ही तो मुझे अख़बार के बीच में एक कागज दिया था,जिस पर लिखा था- न जाने कितने हुनर घरों में कैद है,और हम देश में हुनर न होने का रोना रोते हैं ।।लिखा तो तुमने और भी बहुत कुछ था, पर सबसे प्यारी मुझे ये लाइन ही लगी थी । ये पहली बार था सुभाष । जब मुझे खुद पर हद से ज्यादा यकीन हुआ था कि हाँ मैं भी बहुत कुछ कर सकती हूँ । मैं तो घर पड़े-पड़े अपना ही यकीन खो चुकी थी ।
दोनों ही भावुक हो गए और उनकी आँखें भारी-सी हो गयी । काफी देर से उन्होंने आंसुओं को सम्भाला हुआ था । पर अब सम्भले नहीं सम्भल रहा थे । दोनों का मन था कि एक-दूसरे का हाथ पकड़ लें पर कण्ट्रोल कर गए । क्योंकि उन्होंने उस जगह के होने के अहसास को बचा रखा था । इसलिए वहां से चलने में ही उन्होंने भलाई समझी ।
अब हालात बदल गए थे। अब पूजा बाइक के दोनों तरफ पैर करके बैठ गयी । ताकि इत्मिनान से अपनी बात उसके कान में कह सकें और हैलमेट की जगह अब उसने अपने दुपट्टे से मुंह ढक लिया था ताकि कोई उसे पहचान न सकें । जितनी वो अपनी पहचान छुपा रही थी,उतना ही खुद को पहचान और जान रही थी ।
नौकरी लगने की ख़ुशी ने उसके शरीर में मानो ग्लूकोस चढ़ा दिया हो ।
जैसे ही बाइक चली । उसने उसके पेट को कसकर पकड़ते हुए उसके कान में आई लव यूँ कहा । बाइक की रफ़्तार अचानक से तेज होती चली गयी । फिर उसने अपने दोनों हाथ पंछी की तरह लहरा दिए । आज उसने उड़ना सीख लिया था । अब वो अपने को आजाद महसूस कर रही थी । एक मन हुआ वो मुंह भी उघाड़ दें पर वो तुरन्त सम्भल गयी ।
दोनों बाइक पर बैठे कम थे उड़ ज्यादा रहे थे । उनका उड़ना बाहर कम भीतर ज्यादा था । इसलिए वो किसी को दिख नहीं रहा था । सुभाष ख़ुशी में ब्रेक पर ब्रेक लगाकर अपनी ख़ुशी का इजहार कर रहा था । तब एक पल के लिए लगा दोनों झूला झूल रहे हो । मौसम भी साथ में काले बादलों को लेकर आ गया ।
दोनों अपने-अपने हिस्से की ख़ुशी को दबोचे अपने-अपने घर चले गए ।
राघव अरोड़ा जो पूजा का पड़ोसी था । वो जब ढाबे पर ब्रेड सप्लाई करने लगा हुआ था तब उसकी नज़र पूजा और सुभाष दोनों पर गयी । पूजा और राघव की छत भले ही आपस में मिली हुई थी, पर पूजा उससे नफरत करती थी । जबकि राघव कई साल से कोशिशों में लगा हुआ था ।
पूजा शाम को छत पर बैठना पसन्द करती थी । पर राघव का अक्सर छत पर आ जाना उसे खटकता था । इसलिए उसने अपनी शाम और छत राघव के मुंह पर दे मारी । कुछ उसी अंदाज में कि-ले तू जी ले शाम और छत की जिंदगी ।
घर आने के बाद पूजा का मन तो था कि दिन की तरह शाम भी अच्छी गुज़रे इसके लिए छत पर जाया जाए और लीड लगाकर गाने सुने जाए । पर उसकी छत और शाम के बीच राघव फन उठाकर खड़ा हो जाता था । पर आज उसने मन बना लिया था कि उस फन को कुचल देगी । नहाने के बाद वो चाय लेकर सीधे छत पर पहुंच गयी और मोबाईल में गाना लाऊड स्पीकर पर बजा दिया-
"काँटों से खींच के ये आँचल, तोड़ के बंधन बाँधे पायल! आज फिर जीने की तमन्ना है !"
जब-जब वह खुश होती है तब-तब पुराने गाने सुनती है और जब परेशान होती है तो लाऊड गाने सुनना उसे अच्छा लगता है । चाय पीकर उसने कप मुंडेर पर रखा ही था कि उसकी नज़र राघव की छत पर गयी । राघव छत पर आ गया था ।
राघव अक्सर नजरें भिड़ाने की फ़िराक में रहता था पर आज उसने नजरें मिलाई नहीं बल्कि दूसरी तरफ मुंह फेर कर कुछ बड़बड़ाने लगा । थोड़ी देर बाद उसके मुंह से निकला- वाह भाई ! दाल और रोटी खाने का मजा ही कुछ और है । इतना मजा तो चिकन में भी नहीं आता ।
कहाँ तो पूजा मुंह तोड़ जवाब देने का मन बनाएं खड़ी थी । कहां उस पर ये नई आफ़त आन गिरी थी । ये सुनते ही उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा और घबराहट पूरे शरीर में दौड़ गयी । उसे समझ नहीं आ रहा था वो क्या करें ?
उसकी घबराहट को देखकर राघव हल्का-सा मुस्कुराया ।
पूजा घबराकर सीधे नीचे चली आई । कमरे में घुसते ही उसने विंडो ऎसी ऑन किया और उसके सामने खड़ी होकर सोचने लगी । जब से ऎसी आया है, तब से उसने परेशानी और गुस्से से बाहर निकलने के अपने पुराने तरीके को छोड़कर ये नया तरीका अपना लिया है । सर्दियों में वह इसका विकल्प चाय बनाने और पीने में खोजती है । खैर कुछ देर सोचने के बाद उसने सुभाष को फोन किया । इससे पहले उन्होंने केवल वट्सएप पर ही बात की थी । फोन करने की कभी न तो नौबत आई थी और न ही जरूरत पड़ी थी ।
फोन करके उसने सब कुछ बता दिया ।सुभाष ने तसल्ली देते हुए कहा-तू टेंसन मत लें । उसका करता हूँ मैं कुछ ।
रघु छत पर खड़ा मुस्कुरा रहा था । दरअसल रघु से पूजा को ही नहीं हर लड़की को दिक्कत होती थी । वो हर लड़की को ऐसे ही घूरता और झपट लेना चाहता था । पक्का वुमनाइजर था वो । जिसके लिए हर लड़की उसके लिए उपलब्ध देह भर थी । छत पर खड़ा है वह आगे की प्लानिंग बना रहा था यह सोचते हुए कि पूजा की अकड़ पर पहली चोट तो हो गयी है । अब अगली चोट उसको उसके पापा के डर की मारूँगा ।
सुभाष जानता था रघु जैसो का क्या ईलाज किया जाता है । वो भी सीधे जोगिंद्र उर्फ़ काले के पास पहुंचा और अपनी सारी बात बता दी । रघु काले के दम पर ही उछलता था । काले ने रघु को फोन पर गालियां देते हुए बकवास न करने की चेतावनी दे दी । एक झटके में रघु नामक खतपतवार को उसने उखाड़ फेंका जो नई उगती हुई प्रेम फसल के बीच उग आया था ।
सुभाष ने काले के घर से निकलते ही पूजा को फोन करके बताया । और कहा-देखो पूजा ! हमारे लिए कुछ भी आसान नहीं है। इन छोटी-छोटी चीजों से अगर हम इतना घबराएंगे तो आगे नहीं बढ़ा जायेगा ।
हाँ वो तो मैं भी समझती हूँ पर मैं नहीं चाहती कि मेरे ज्वाइन करने से पहले कोई प्रॉब्लम हो । बाद वालियों से तो निपट ही लूंगी । चलो अब मैं फोन रखती हूँ । मुझे खाना बनाना है । चल ओके बाय । लव यूँ ।
पूजा के घर के बाहर आकर सुभाष ने रोजाना की तरह अपनी साईकिल की तीन घण्टियाँ बजाई और अख़बार को पकड़ाने के लिए डबल कर लिया ।
पूजा की माँ ने पूजा को आवाज लगाई-पूजा अख़बार वाला आ गया है । अख़बार ले लें । पूजा ने ये देर आज जानबूझ कर की थी । क्योंकि आज उसे अजीब-सा लग रहा था और हंसी भी अपने आप उसके होठों और चेहरे पर निखर रही थी । वो नहीं चाहती थी कि उसकी आवभाव नोटिस हो । इसके लिए उसने मुंह में टूथ ब्रश डाल लिया और अख़बार लेने पहुंच गयी ।
जैसे ही उसने अख़बार पकड़ा । उसे अख़बार का वजन ज्यादा महसूस हुआ । उसने हैरानी से सुभाष की ओर देखा ।
किताब है ।
कौन-सी किताब ?”
निदा फ़ाज़ली की ।
ये कौन है ?”
अरे तुम पढ़ो तो पहले । फिर बताना कैसी लगी ?”
पूजा बिना कुछ कहे अंदर चली गयी । पूजा का मन था एक बार पलट कर देख ले पर उसने अपने ऊपर कण्ट्रोल कर लिया । सुभाष उसको देखता हुआ आगे बढ़ गया । पर जाते हुए एक मधुर घण्टी बजा गया । जिसे पूजा ने बाय और लव यूँ दोनों रूपों में अपनी तरफ लपक लिया ।
किताब अपने कमरे में रखकर पूजा अख़बार पढ़ने लगी । पर आज उसका मन अख़बार में लगा ही नहीं । वो किताब पढ़ने के लिए उत्सुक थी । सुभाष की वजह से उसने अख़बार पढ़ने जैसी बोरिंग चीज को भी उसने अपनी पसन्द बना लिया था ।
किताब के पहले ही पेज पर सुभाष ने हरे रंग से पूजा नाम लिख रखा था । पूजा करीब आधा घण्टा उस नाम पर हाथ फेरते हुए न जाने क्या-क्या सोचती रही । उसने गौर किया किताब में एक पेज मुड़ा हुआ है,उसने उसे सीधा करने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया उसकी नज़र इन लाइनों पर गयी,जिन्हें लाल पेन से अंडर लाइन किया गया था-
                                          इसी बदलते वक़्त सहरा में लेकिन
                                                 कहीं किसी घर में
                                                  इक लड़की ऐसी है
                                               बरसों पहले जैसी थी वो
                                                  अब भी बिल्कुल वैसी है ।।
किताब को सीने पर रखकर पूजा ने आँखें बन्द कर ली और किसी और दुनिया में ही उतरती चली गयी ।
रघु छत पर खड़ा मुस्कुरा रहा था । दरअसल रघु से पूजा को ही नहीं हर लड़की को दिक्कत होती थी । वो हर लड़की को ऐसे ही घूरता और झपट लेना चाहता था । पक्का वुमनाइजर था वो । जिसके लिए हर लड़की उसके लिए उपलब्ध देह भर थी । छत पर खड़ा है वह आगे की प्लानिंग बना रहा था यह सोचते हुए कि पूजा की अकड़ पर पहली चोट तो हो गयी है । अब अगली चोट उसको उसके पापा के डर की मारूँगा ।
सुभाष जानता था रघु जैसो का क्या ईलाज किया जाता है । वो भी सीधे देवेन्द्र उर्फ़ काले के पहुंचा और अपनी सारी बात बता दी । रघु काले के दम पर ही उछलता था । काले ने रघु को फोन पर गालियां देते हुए बकवास न करने की चेतावनी दे दी । एक झटके में रघु नामक खरपतवार को उसने उखाड़ फेंका जो नई उगती हुई प्रेम फसल के बीच उग आया था ।
सुभाष ने काले के घर से निकलते ही पूजा को फोन करके बताया । और कहा-देखो पूजा ! हमारे लिए कुछ भी आसान नहीं है। इन छोटी-छोटी चीजों से अगर हम इतना घबराएंगे तो आगे नहीं बढ़ा जायेगा ।
हाँ वो तो मैं भी समझती हूँ पर मैं नहीं चाहती कि मेरे ज्वाइन करने से पहले कोई प्रॉब्लम हो । बाद वालियों से तो निपट ही लूंगी । चलो अब मैं फोन रखती हूँ । मुझे खाना बनाना है । चल ओके बाय । लव यूँ ।


या । सुभाष ने तसल्ली देते हुए कहा-तू टेंसन मत ले । उसका करता हूँ मैं कुछ ।
रघु छत पर खड़ा मुस्कुरा रहा था । दरअसल रघु से पूजा को ही नहीं हर लड़की को दिक्कत होती थी । वो हर लड़की को ऐसे ही घूरता और झपट लेना चाहता था । पक्का वुमनाइजर था वो । जिसके लिए हर लड़की उसके लिए उपलब्ध देह भर थी । छत पर खड़ा है वह आगे की प्लानिंग बना रहा था यह सोचते हुए कि पूजा की अकड़ पर पहली चोट तो हो गयी है । अब अगली चोट उसको उसके पापा के डर की मारूँगा ।
सुभाष जानता था रघु जैसो का क्या ईलाज किया जाता है । वो भी सीधे देवेन्द्र उर्फ़ काले के पहुंचा और अपनी सारी बात बता दी । रघु काले के दम पर ही उछलता था । काले ने रघु को फोन पर गालियां देते हुए बकवास न करने की चेतावनी दे दी । एक झटके में रघु नामक खतपतवार को उसने उखाड़ फेंका जो नई उगती हुई प्रेम फसल के बीच उग आया था ।
सुभाष ने काले के घर से निकलते ही पूजा को फोन करके बताया । और कहा-देखो पूजा ! हमारे लिए कुछ भी आसान नहीं है। इन छोटी-छोटी चीजों से अगर हम इतना घबराएंगे तो आगे नहीं बढ़ा जायेगा ।
हाँ वो तो मैं भी समझती हूँ पर मैं नहीं चाहती कि मेरे ज्वाइन करने से पहले कोई प्रॉब्लम हो । बाद वालियों से तो निपट ही लूंगी । चलो अब मैं फोन रखती हूँ । मुझे खाना बनाना है । चल ओके बाय । लव यूँ ।

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