जब मैं फेल हुआ था 12वीं में
1996 का साल था। जब पहली बार किसी परीक्षा में फेल हुआ था। कोई मुझे फेल होने पर चिढ़ाता था तो मैं बालमन से यह जवाब देता था कि नॉन-मेडिकल में फेल हुआ हूँ। आर्ट होती तो फेल नहीं होता। कभी-कभी यह भी कहता था कि मैथ में तो पास हूँ बस फिजिक्स और कमेस्ट्री में थोड़े-थोड़े नम्बरों से फेल हो गया। फिजिक्स में 3 नम्बर से ही फेल हुआ था। उस समय सोचता था काश! फिजिक्स में पास हो जाता तो कमेस्ट्री में कम्पार्ट मेंट आ जाती और एक पेपर की तैयारी तो आराम से हो जाती। उस समय जिंदगी जितनी भारी और दुःखी लगती थी उतने ही काश आस पास मंडराते रहते थे। काश ऐसा हो जाये वैसा हो जाये। क्या पता रिजल्ट गलत छप गया हो। चमत्कार की उम्मीद मन ही मन छलांगे मारती रहती थी।
कितने भारी भरकम दिन थे वो। पापा की आँखों में आग दिखती थी। कितना डरने लगा था मैं अपने पापा से। मेरी माँ और बहन मेरी तरफ ऐसे देख रही थी जैसे मुझसे बेचारा शायद ही कोई होगा दुनिया में। उस दिन मेरे लिए सारी दुनिया बेगानी सी हो गयी थी। अकेले में जगह बदल-बदल कर रोया था मैं।
पास होने वालों की दुनिया में मैं एक फेल लड़का था। सबसे बड़ी बात एक मास्टर का लड़का फेल हो गया।
कितने खुश थे मेरे पापा जब मैंने नॉन-मेडिकल में एड्मिसन लिया था। शायद उनके सपने पूरे करने के लिए ही लिया होगा। या अपने आप को सुपीरियर दिखाने के लिए। या दोनों बातें रही होंगी। क्योंकि पापा ने कभी जबरदस्ती नहीं की। जब एड्मिसन लिया था तब भी उन्होंने यही कहा था कि जो मर्जी कर मैं तो पैसे दे सकता हूँ बस।
मैं जिस समालखा के वैश्य स्कूल के a सेक्शन में था जो पढ़ने वाला का सेक्शन माना जाता था और उस सेक्शन के ज्यादातर बच्चों ने मेडिकल और नॉन मेडिकल में ही एड्मिसन लिया था। सो मैंने भी उसी फ्लो में ले लिया। मैथ और फिजिक्स तो पल्ले पड़ भी जाते थे पर कमेस्ट्री रटाने का सब्जेक्ट बना दिया गया था।
सबसे बड़ी दिक्कत मीडियम की थी। जो चीज हिंदी में पता थी उसे अंग्रेजी में लिखने का एटीएम विश्वास बन नहीं पाया और मैं फेल हो गया।
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