जितनी उम्मीद और तुज़रबे से
मैंने उसकी पतली कमर में डाला था हाथ
मेरे तुज़रबे और उम्मीद से उलट
निकली थी उसकी कमर
उसकी कमर में लोच नहीं थी
बल्कि वह हद से ज्यादा सख्त थी
बाकी शरीर से
इतनी सख्त तो किसी की रीढ़ भी नहीं होती होगी
मैंने झट से अपना हाथ हटा लिया
इतनी कठोरता की मुझे भी आदत नहीं थी
उसके नर्म चेहरे पर बाल यूं ही उड़ रहे थे
और सुर्ख होठ अधखुले थे
मैंने धूप में जब अपनी शक्ल देखी तो
मेरे चेहरे के होश उड़े हुए थे
मेरा हाथ उस कठोरता से भारी हो गया था
और शरीर सुन्न पड़ता जा रहा था
मेरे कदम ऐसा लगा
लड़खड़ाने लगे थे
मुझे यही बताया भी गया था कि
लड़कियों की कमर में होती है
गज़ब की लोच
वो सारा पुराना ज्ञान
और मेरा अनुभव
दोनों ढूंढने पर भी नहीं मिल रहे थे
यह सब अज़ीब लग रहा था
लग नहीं रहा था
बल्कि ऐसा हो रहा था
उसके दोनों झूलते हाथ
मेरी ज्ञान और अनुभव की धरती को धकेल रहे थे
उसके हाथों को कोमल और नरम होना चाहिए
यह भ्रम भी धराशाई हो रहा था
ऐसा लगा इतिहास का यह पहला दिन है जब
कुछ टूट रहा है बिखर रहा है
अनुभव और ज्ञान के चिथड़े जगह-जगह
छितराए हुए हैं
मैं दुआ करने लगा अपने जिंदा बच जाने की
भूल गया मैं उस क्षण अपने नास्तिक होने की बात
यह कोई स्वपन्न नहीं था
न ही कोई फैंटेसी थी
बस मेरी फटी पड़ी थी।।
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