प्रधानमंत्री मोदी ने
सिख सैन्य कमांडर बंदा सिंह बहादुर को रविवार को एक महान योद्धा करार दिया और कहा
कि उनके प्रयासों के कारण किसानों को पहली बार अपना हक मिला और आम आदमी ने सशक्त
महसूस किया। काश! प्रधानमंत्री मोदी को यह भी याद रहता है कि हाल ही में उनकी
केंद्र सरकार और हरियाणा की भाजपा सरकार ने किसान हितों की अनदेखी करते हुए
स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने से मना कर दिया है। फसलों की सही कीमत न मिलने के कारण देशभर के
किसान लगातार आत्महत्याएं कर रहे हैं और दूसरी तरफ सरकार किसानों से मुंह फेर रही
है, जबकि चुनाव के समय मोदी जी ने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने का वादा
किया था। मोदी ने यहां सिख सैन्य कमांडर के 300वें शहीदी दिवस पर आयोजित एक समारोह में कहा कि बाबा बंदा सिंह बहादुर जी
सिर्फ एक महान योद्धा नहीं थे, बल्कि आम जनता के प्रति वह
काफी संवेदनशील भी थे। गुरु गोबिंद सिंह से प्रेरणा पाने के बाद उन्होंने एक
योद्धा के मूल्यों को आत्मसात किया और सामाजिक विकास की एक नई यात्रा शुरू की।सिख शहीद बंदा बहादुर को असली शहादत तब मिलती जब सरकार
उनके जीवन-मूल्यों पर अमल करती और संवेदनशीलता के साथ-साथ किसानों के हितों में
काम करती।
बंदा बहादुर की नीयत और नीतियां किसानों और आमजन के
हितों में
बाबा बन्दा सिंह
बहादुर का जन्म कश्मीर स्थित पुंछ जिले के राजौरी क्षेत्र में 1670
ई. तदनुसार विक्रम संवत् 1727, कार्तिक शुक्ल 13
को हुआ था। बन्दा सिंह बहादुर एक सिख सेनानायक थे। उन्हें बन्दा
बहादुर, लक्ष्मन दास और माधो दास भी कहते हैं। वे पहले ऐसे सिख सेनापति हुए,
जिन्होंने मुगलों के अजेय होने के भ्रम को तोड़ा; छोटे साहबजादों की शहादत का बदला लिया और गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा
संकल्पित प्रभुसत्ता सम्पन्न लोक राज्य की राजधानी लोहगढ़ की नीव रक्खी।
मरने से पूर्व बन्दा
बैरागी ने अति प्राचीन ज़मींदारी प्रथा का अन्त कर दिया था तथा कृषकों को
बड़े-बड़े जागीरदारों और जमींदारों की दासता से मुक्त कर दिया था। वह
साम्प्रदायिकता की संकीर्ण भावनाओं से परे था। मुसलमानों को राज्य में पूर्ण
धार्मिक स्वातन्त्र्य दिया गया था। पाँच हजार मुसलमान भी उसकी सेना में थे।
बन्दासिंह ने पूरे राज्य में यह घोषणा कर दी थी कि वह किसी प्रकार भी मुसलमानों को
क्षति नहीं पहुँचायेगा और वे सिक्ख सेना में अपनी नमाज़ और खुतवा पढ़ने में पूरी
तरह स्वतन्त्र होंगे।
किसानों के खिलाफ
नीतियां बनाकर और देश में सांप्रदायिकता का माहौल खड़ा करके कैसे सिख शहीद बंदा
बहादुर को श्रद्धाजंलि दी जा सकती है? जबकि सरकार की नीयत
और नीतियां किसानों और आम जनता के खिलाफ हैं।
सरकार
और निजी विद्यालयों के बीच पीसते गरीब छात्र
साथ ही स्कूल संचालक
134 ए के तहत एडमिशन देने में भी आनाकानी करते थे। इस कारण कई बार बच्चों का
भविष्य खतरे में पड़ जाता था। लेकिन शनिवार को स्कूल संचालकों के साथ हुई बैठक के
दौरान जिले सिंह अत्री ने स्पष्ट कर दिया कि स्कूल संचालकों को 134 ए के तहत
बच्चों को दाखिला देना ही होगा।
स्कूल नहीं जमा कराते
फार्म नं. 6 :हर साल की तरह निजी स्कूलों ने अभी तक फार्म नं. 6 नहीं जमा कराए
हैं। पिछले वर्ष भी स्कूलों ने फार्म नं. 6 को भरने में आनाकानी दिखाई थी लेकिन
जिला शिक्षा अिधकारी के सख्त रवैए के चलते अब की बार फार्म नं. 6 जमा न कराने पर
गाज गिरना तय माना जा रहा है।
चयनित दुकान पर मिलता
है बुक सेट
प्राइवेट स्कूल
बुक्स-कापी के अलावा वर्दी की स्लिप पेरेंट्स को थमा देते हैं। निजी स्कूल संचालक
शिक्षा अिधकारी के आदेशों के बावजूद स्कूलों में यूनिफार्म व बुक्स धड़ल्ले से बेच
रहे हैं। हाल ही में कैंट के काॅन्वेंट ऑफ सेक्रेड हार्ट में किताबें बेचने का
मामला सामने आया था। जिसे लेकर जिला शिक्षा अिधकारी जल्द ही स्कूल प्रशासन को
नोटिस देने की तैयारी कर रहे हैं। इसके बाद तय माना जा रहा है कि स्कूल पर सख्त
कार्रवाई हो सकती है।
10 गुणा महंगे
प्राइवेट पब्लिशर्स
प्राइवेट पब्लिशर्स
की बुक्स एनसीईआरटी से दस गुणा ज्यादा महंगी हैं, एनसीईआरटी
का फर्स्ट व सेकंड क्लास का सेट महज 230 रुपए का है जबकि प्राइवेट पब्लिशर्स की
नर्सरी, एलकेजी व फर्स्ट स्टैंडर्ड की बुक्स का सेट ही 3400
से 4000 रुपए का है।
निजीस्कूलों में अगर
बच्चों को नियम 134ए के तहत नि:शुल्क पढ़ाना है तो प्रदेश सरकार को उसके बदले में
स्कूलों को तय राशि देनी ही होगी। अगर ऐसा नहीं होता है तो निजी स्कूल किसी भी
हालत में बच्चों को नि:शुल्क नहीं पढ़ाएंगे। चाहे इसके लिए स्कूलों को बंद ही
क्यों करना पड़ जाए। हम कोर्ट में जाने को भी तैयार हैं।
यह दो टूक बात हरियाणा
संयुक्त विद्यालय संघ के प्रधान विजेंद्र मान ने कही है। शुक्रवार को यहां
पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि पिछले साल कोर्ट ने सरकार को आदेश
दिया था कि वे स्कूलों को बच्चे पढ़ाने के बदले तय राशि देगी, लेकिन दिया कुछ नहीं। जो बच्चे अभी स्कूल जा रहे हैं आगे अगर फीस नहीं दी
तो उन्हें भी स्कूल छोड़ना होगा। सरकार को चाहिए कि वे हर पात्र विद्यार्थी को
एजुकेशन वाउचर दे, जिससे वह अपने पसंदीदा स्कूल में दाखिला
ले सके।
जिला प्रधान अजमेर
सिंह ने कहा कि सरकार की लापरवाही के कारण बच्चों का भविष्य प्रभावित हो रहा है।
सरकार ने एक तो ऐन मौके पर ड्रा घोषित नहीं किया। उपर से लोग गुमराह हो रहे हैं।
उस पर विद्यार्थियों को परेशानी होगी, क्योंकि
सरकार द्वारा मेधावी की योग्यता जानने के लिए एडीसी की अध्यक्षता में एक टैस्ट
आयोजित किया जाएगा। इसमें कम से कम 55 प्रतिशत अंकों वालों को ही ड्रा में शामिल
किया जाएगा।
नियम
158 : इस नियम के तहत प्रत्येक प्राइवेट स्कूल को
वर्ष की शुरूआत में फॉर्म नंबर छह भरना होता है। फॉर्म नंबर छह में प्राइवेट
स्कूलों को यह जानकारी शिक्षा विभाग को उपलब्ध करानी होती हैं कि वह क्या सुविधाएं
उपलब्ध करा रहा है।
केंद्र सरकार के
शिक्षा अधिकार कानून यानी आरटीई-२००९ के मुताबिक, हर
स्कूल 25 फीसदी गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देगा और अन्य जरूरी सुविधाओं का भी
ध्यान रखेगा। इसके लिए केंद्र सरकार बजट देगी। लेकिन बजट का प्रावधान केवल सरकारी
स्कूलों के लिए किया गया।
हरियाणा एजुकेशन
एक्ट-2003 की धारा-134ए- हरियाणा सरकार के इस नियम के अंतर्गत 25 फीसदी गरीब
बच्चों को मुफ्त शिक्षा देंगे। यह हर स्कूल के लिए अनिवार्य होगा । लेकिन इस कानून
में बजट का प्रावधान नहीं दिया गया इसलिए इसका निजी स्कूल संचालक विरोध कर रहे
हैं।
आरके आनंद के दावों में हैं कितना दम
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