सोमवार, 28 अप्रैल 2014

सिनेमा और मनोरंजन

                                                    

आमजन अपने जीवन संघर्षों और परिश्रम के बीच किस तरह अपना मनोरंजन करता हैं और उसके मनोरंजन में सिनेमा की क्या भूमिका और योगदान है.यह जानना  काफी दिलचस्प और रोमांचकारी प्रक्रिया है.जिसका आकलन करना करना कठिन है.

पीएच.डी.--कार्य प्रगति पर है


कविता पर शोध करने की जिज्ञासा और लालसा से आरंभ हुई कहानी अंततः जाकर सिनेमा पर शोध करने के निर्णय तक पहुंची.शोध विषय को लेकर चंचल मन हर बार की तरह दुविधा में रहा.मनचेता काम किया जाएं या जगचेता(पॉपुलर).इसी कसमकस में अंतिम निर्णय फिल्मों तक पहुंचा.जो कि मनचेता और जगचेता दोनों में फिट बैठता था.किसने सोचा था कि जिस सिनेमा को देखते और बात करते बड़े हुए उसी पर पी-एच.डी. भी करूंगा.सिनेमा से लगाव तो बचपन से ही बहुत गहरा रहा है,पर शोधपरक ढंग से न तो कभी सोचा था और न ही विश्लेषण किया था.हां,इतना जरूर था कि बचपन से ही सिनेमा की आड़ में मैं घर से निकल जाता था घूमने के लिए.कहां तो मेरे साथी फिल्में छिपछिपाकर देखते थे और कहां मैं सिनेमा को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हुए घूमने में मस्त रहता था.गाँधी और चंद्रावल फिल्म से मैंने अपना फिल्मी सफर(देखने का) शुरू किया था. जो अब भी जारी है...