#पेपर_पुराण
स्कूल से लेकर कॉलेज। कॉलेज से नौकरी तक। सब ने पेपर दिए। सब के पास पेपर को लेकर अनेक अनुभव हैं। आपके पास भी होंगे। पहले मैं पेपर को लेकर डर जाया करता था। पर अब मुझे पेपर देना और जमकर लिखने वाले पेपर देने का खूब मन करता है। जब पेपर में मिली सीट रँगने का समय था तब सीट खाली रह जाती थी। अब लगता है गहरे में कहीं वही कुंठा या भड़ास रह गयी है। जिसे पेपर पर पेपर देकर मिटा देना चाहता हूँ। टिक्के मारने वाले पेपर में मन नहीं रमता। उसमें लिखने के लिए बस रोल नम्बर,नाम आदि होते हैं।
पेपर और नकल
शायद दामन और चोली जैसा सम्बन्ध है। वैसे तो मुझे यह प्रतीक या बिम्ब टाइप तुलना ठीक नहीं लगती। कभी-कभी दामन और चोली दोनों एक साथ अच्छी लगती है तो कभी-कभी दोनों अलग-अलग। एकदम आजाद। चोली एकदम आजाद। चोली को ब्रा ही समझिये। खुला दामन भी खुले आकाश की तरह। बांहे एकदम से खुली। काख में हल्के-हल्के बाल। सीने पर पसीने की बुँदे। वाह!टाइप फिलिंग। एकदम किलिंग।
नकल बिन पेपर सब सुन। नकल में भी कितने टाइप होते हैं। और लोग कहते है कि नकल नकल होती है। कुछ ज्ञानी लोग ज्ञान देते है कि नकल के लिए भी अक्ल चाहिए। मुझे लगता है नकल के लिए बस हौसला चाहिए।
बचपन से एक किस्सा सुनता आया हूँ। अक्ल-नकल वाले गुणा गणित को लेकर। कोई पेपर में जवाब लिखते-लिखते वो इम्पोर्टेन्ट वाला हाथ का निशान भी बना आता है। मुझे उस भोले शख्स से मिलने का मन करता रहा है। पर वह इंसान आजतक नहीं मिला। यह सच से ज्यादा किसी कवि या लेखक या किवदन्ती गढ़ने वाले समाज का हिस्सा लगता हैं।
जिंदगी जब पेपर पर पेपर लेने में लगी हो तो ऐसे में मैं शिक्षण संस्थाओं के पेपर देने का निर्णय लेता हूँ तो लगता है कि मैं एक दर्द को दूसरे दर्द से दूर करने का अथक प्रयास करता हुआ जान पड़ता हूँ।