बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

पेपर पुराण

#पेपर_पुराण

स्कूल से लेकर कॉलेज। कॉलेज से नौकरी तक। सब ने पेपर दिए। सब के पास पेपर को लेकर अनेक अनुभव हैं। आपके पास भी होंगे। पहले मैं पेपर को लेकर डर जाया करता था। पर अब मुझे पेपर देना और जमकर लिखने वाले पेपर देने का खूब मन करता है। जब पेपर में मिली सीट रँगने का समय था तब सीट खाली रह जाती थी। अब लगता है गहरे में कहीं वही कुंठा या भड़ास रह गयी है। जिसे पेपर पर पेपर देकर मिटा देना चाहता हूँ। टिक्के मारने वाले पेपर में मन नहीं रमता। उसमें लिखने के लिए बस रोल नम्बर,नाम आदि होते हैं।

पेपर और नकल

शायद दामन और चोली जैसा सम्बन्ध है। वैसे तो मुझे यह प्रतीक या बिम्ब टाइप तुलना ठीक नहीं लगती। कभी-कभी दामन और चोली दोनों एक साथ अच्छी लगती है तो कभी-कभी दोनों अलग-अलग। एकदम आजाद। चोली एकदम आजाद। चोली को ब्रा ही समझिये। खुला दामन भी खुले आकाश की तरह। बांहे एकदम से खुली। काख में हल्के-हल्के बाल। सीने पर पसीने की बुँदे। वाह!टाइप फिलिंग। एकदम किलिंग।

नकल बिन पेपर सब सुन। नकल में भी कितने टाइप होते हैं। और लोग कहते है कि नकल नकल होती है। कुछ ज्ञानी लोग ज्ञान देते है कि नकल के लिए भी अक्ल चाहिए। मुझे लगता है नकल के लिए बस हौसला चाहिए।

बचपन से एक किस्सा सुनता आया हूँ। अक्ल-नकल वाले गुणा गणित को लेकर। कोई पेपर में जवाब लिखते-लिखते वो इम्पोर्टेन्ट वाला हाथ का निशान भी बना आता है। मुझे उस भोले शख्स से मिलने का मन करता रहा है। पर वह इंसान आजतक नहीं मिला। यह सच से ज्यादा किसी कवि या लेखक या किवदन्ती गढ़ने वाले समाज का हिस्सा लगता हैं।

जिंदगी जब पेपर पर पेपर लेने में लगी हो तो ऐसे में मैं शिक्षण संस्थाओं के पेपर देने का निर्णय लेता हूँ तो लगता है कि मैं एक दर्द को दूसरे दर्द से दूर करने का अथक प्रयास करता हुआ जान पड़ता हूँ।

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

वेद प्रकाश शास्त्री

समालखा के वैश्य हाई स्कूल में हमें आठवीं,नौंवी और दसवी में हिंदी पढ़ाने वाले मस्तमौला मासटर वेद प्रकाश शास्त्री नहीं रहे। कई दिन पहले उनकी बाइक का एक्सीडेंट हो गया। जिसमें उनकी और उनके बेटे की मृत्यु हो गई। जैसे ही यह खबर पता चली शरीर का पुर्जा-पुर्जा हिल गया। कई साल पहले समालखा में ही उनके बेटे की हत्या कर दी गई थी। सरेआम चाकुओं से गोद कर। दबंगों के दबाव और नरम व्यक्तित्व के कारण उन्होंने उस केस में समझौता कर लिया था। आज उनकी दो लड़कियां और पत्नी अकेली रह गई है इस संसार में। कोई सांत्वना उन्हें नहीं दी जा सकती।

वैश्य स्कूल में पढ़ाते-पढ़ाते ही उनकी सरकारी नौकरी हो गई थी। हमारे बाद भी उन्होंने कई बैच पढ़ाए होंगे।

उन जितना हंसमुख टीचर शायद ही कोई ओर रहा होगा स्कूल में। एक जानदार-शानदार शख्सीयत का यूं जाना बहुत अखर रहा हैं। उनका एक डायलॉग हमेशा याद रहता हैं। जब पेपर चल रहे होते थे और उन्हें जिस पर शक होता था कि उसके पास नकल होगी। उसके पास जाकर कहते थे कि- तेरे में से सडांध आ रही है। निकाल दे अपने आप। अगर अपने आप निकाल कर दे देता तो कुछ नहीं कहते थे। पकड़े जाने पर खूब पीटते थे।

आप हमेशा यादों में यूं ही बने रहेंगे सर। नमन।

पेपर से पहले का ज्ञान

होशियार कभी नहीं रहा। खासकर पढ़ने में। तो होशियार बच्चों के माँ-बाप कैसे टिप्स देते होंगे इसका मुझे अनुभव नहीं। पर कमजोर को दिए जाने वाला ज्ञान जरूर याद है।

बेटा। सबसे पहले पेपर को शुरू से लेकर आखिर तक दो बार पढ़ना। ये मत करना कि पहले सवाल को पढ़कर उसका जवाब लिखने मत बैठ जाना।

पहले सारे सवाल पढ़ो। फिर जो सबसे अच्छे से आता हो उसका जवाब दो। घर वालों को भी पता होता था कि सभी सवालों के जवाब इसको बढ़िया से नहीं आते होंगे।

मैं तो दो क्या तीन बार पढ़कर भी यह तय नहीं कर पाता था कि सबसे बढ़िया जवाब किसका आता है मुझे। हारकर जिस भी सवाल को उत्साह और जोश के साथ शुरू करता। एक पेज खत्म होते-होते सारा उत्साह सिमट जाता और जोश पेन के अंदर कहीं घुस जाता। तब लगता यार गलत सवाल पर हाथ डाल दिया। किसी बाकि बचो में से किसी एक सवाल को उठाता।

घर वालों की इस हिदायत को अमलीजामा पहनाने के लिए सवाल को पूरा पेपर पर लिख देता था ताकि सवाल को ठीक से समझ सकूँ। सवाल तो ठीक समझ आ जाता पर जवाब आस पास भी नहीं फटकता था।

वो मेरे सभी साथी जो उन दिनों के कलमघीस थे अब पता नहीं क्या कर रहे होंगे? मैं आजकल उन दिनों नहीं लिख पाये शब्दों और सवालों के जवाब लिखने में लगा हूँ। ऑउट डेटेड होना मेरी फिदरत रही है। समय से दो कदम पीछे चलना अब मेरा हुनर बन गया है। हारना मेरे जीवन का अंग। हताशा और निराशा जब मन करता है मेरे गले आ लगती है।

मैं अपना अनलिखा लिख रहा हूँ।