शनिवार, 28 जून 2014

सैक्स-शिक्षा और हर्षवर्धन

ब्लॉगर एवं स्वास्थ मंत्री हर्षवर्धन जी,

सैक्स का मतलब संभोग नहीं होता ।सैक्स-शिक्षा का मतलब संभोग प्रक्रिया भी कतई नहीं होती ।सैक्स-शिक्षा इसलिए भी जरूरी है,क्योंकि भारत में आपके समतुल्य-अतुल्य डॉ. रोज सैक्स-शिक्षा के अभाव के कारण जनता को लूट रहे हैं ।अगर देश में सैक्स-शिक्षा कायदे से पढ़ाई जाती तो हाशिम दवा खाने और सैक्स-वर्धक दवाइयों का इतना बड़ा बाजार नहीं फलता-फूलता ।इसलिए शालीनता के नाम पर आने वाली पीढियों को इन दुकानों पर मत पहुंचाइये ।आपकी अति कृपया होगी ।

यूपीएससी में हिन्दी विवाद

मोदी जी
आप भीष्म पितामह वाले मोड़ में क्यों आ गये । हमारी हिंदी की द्रोपदी वाली स्थिति हो गयी है ।दिल्ली में सरे राह चीर हरन हो रहा है और आप किस सिंघासन पर जमे बैठे है ।आपकी गर्जना और धहाड़ का वक्त आ गया है ।साबित कर दीजिये कि आप गरजने वालों से अलग बरसने वाले बादल की तरह है ।बादलों से ध्यान आया इस बार मानसून कमजोर रहेगा ।आपके अंदर का मानसून तो उमीद करते है सूखा नहीं होगा ।हमें द्रोपदी के वस्त्र समझना ।अंदर या बाहर के ये आप की श्रद्धा है ।पर लाज रख लीजियेगा ।कृष्ण के भरोसे मत छोड़ देना ।वो आम आदमी पार्टी का आदमी हो गया है ।सो यू बैटर अंडर स्टैंड मी ।जस्ट जल्दी करना ।गुड डे का हिंदी अनुवाद कर दीजिए ।

गुरुवार, 19 जून 2014

सोनाली सिंह--क्यूटीपाई (कहानी-संग्रह)

अलसाई,ऊंघती और जागती कहानियां

सोनाली सिंह के कहानी संग्रह क्यूटीपाई की कहानियों के जरिए हम स्त्री-जीवन के उन छोटे-छोटे पहलुओं के आगोश में उंगली पकड़कर सहजता से भ्रमण कर सकते हैं और उन मासूम उंगलियों से लिखी डायरी के पन्नों को पलटते हुए मर्म से गुजरते हुए स्त्री के ब्लॉग(अपनी दुनिया) की दुनिया तक पहुंच जाते हैं.इस संग्रह में चिट्ठी,डायरी और ब्लॉग सबसे महत्वपूर्ण संवाद-संदेश के स्पेस हैं.इस संग्रह में कुल पंद्रह कहानियां हैं-क्यूटीपाई,पिन कोड 193123, सपने,जादूगरनी,सात फेरे,दस शंख और ग्यारह सीपियां,लीला की डायरी,लेकिन...,कुकुरमुत्ते,नीलू नीलम नीलोफर,रूसिया-भवन,एक पंथ तीन काज,पल-पल,उन्होंने कहा था,शब का आखिरी परिन्दा.ये कहानियां अपने रूप-रंग में थोड़ी अलसाई,ऊंघती और जगाती हुई कहानियां हैं,जो जीवन के बीच पसरे कठोर सच और अलसाएं जीवन से रू-ब-रू कराती हैं,तो दूसरी तरफ रूमानी ख्यालों के बीच जादुई दुनिया की सैर कराती हुई नींद से जगाने का काम भी करती हैं.
शब का आखिरी परिन्दा कहानी पढ़ते-पढ़ते दिल्ली की निर्भया बलात्कार वाली घटना अनायास ही दीमाग में कौंधने लगती है और कहानी एक कदम आगे बढ़ते हुए उजागर करती है कि रेप के लावे के बीच जिंदगी किस तरह बदत्तर बना दी जाती है और इस लावे का असर कितना खतरनाक एवं पीड़ादायक होता है,इसकी पड़ताल शब्द-दर-शब्द अपर्णा,मां सुवर्णा और दादी के हलफिया बयानों में दर्ज होती हुई समाज की पुरुषवादी सोच को नंगा कर देती है.गिद्ध की तरह झपट्टा मारते सवाल हर बार उसे नोंच डालते हैं और एक लड़की को गुनहगार की तरह देखती नज़रे उसकी पीड़ा को कैसे असहनीय बना देती है,इस पूरी प्रक्रिया को कहानीकार ने शिद्दत से दर्ज किया है.
पल-पल कहानी में पुरुष के बदलते व्यवहार को दर्ज किया गया है.एक पुरुष जो दफ्तर में सहनशील और सहभागी की तरह बरताव करता है,वही पुरुष घर आने पर कितना अहिंसक हो जाता है.एक पंथ तीन काज कहानी के जरिए यह दर्शाया गया है कि किसी के जीवन एक घटना आपके सोचने-समझने व व्यवहार करने के तरीके में कैसे बदलाव ला देती है.
लड़की बहन,बेटी और पत्नी के रिश्तों के बीच कैसे घुटती-पीटती जिंदगी जीती है और इन बदलते संबंधों के साथ उसके साथ होने बरताव (व्यवहार नहीं) में फरक पड़ता है.इसकी पड़ताल नीलू,नीलम और नीलोफर कहानी में साफ झलकता है. लड़की के जीवन में तीन बदलती परिस्थितियों के बीच कैसे उसकी पूरी पहचान और नाम बदलने की प्रक्रिया आपसी संबंधों के मकड़जाल फंसती चली जाती है,इसको स्पष्ट करती है.भाई की लाड़ली नीलू,उपेक्षा की शिकार नीलम और पति के लिए नीलोफर.अपनी इन तीन पहचानों में उसका अपना जीवन कहीं नहीं है,जो है वह दूसरों द्वारा संचालित है. लेकिन... कहानी में  कनक नामक लड़की जो अपनी बनी-बनाई या गढ़ी गई छवि के  अपनी जिदंगी नहीं जी पाईं. जिंदगी के अधूरेपन का अहसास हमेशा कुढ़ने के विवश करता रहा.छवि निर्माण के दौर में पुरुषवादी सोच और बाजार ने भी स्त्री को सौंदर्य के बाजार के बीच खपने के लिए मजबूर कर दिया.दूसरी तरफ इसकी  कीमत तथाकथित कम सुंदर लड़कियों को जीवन से मिलने वाली उपेक्षा और अवहेलना से चुकानी पड़ती हैं.ये सारे दर्द दर्ज है लीला की डायरी नामक कहानी में.मोटापा बीमारी के कारण है,परंतु मानसिक रूप से बीमारू समाज ने लड़की पर कटाक्ष करके उसे पीड़ादायक जीवन जीने पर मजबूर कर दिया.जादूगरनी कहानी लड़की के जीवन में अपनी इच्छाओं से जीवन जीने की लालसा किसी जादूई जीवन से कम नहीं.इसी ओर इशारा करती है. क्यूटीपाई कहानी शगुन मिश्रा के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती कहानी है.एक आजाद ख्याल की लड़की किस तरह हमारे समाज की घटिया सोच उसके जीवन को नरक बनाने और अपनी सुविधानुसार उसे अपने खांचों में ढालकर बयान करती है और उसका जीवन जीना दुभर कर देती है.-सर्वविदित है कि लड़के देह की भाषा पढ़ते हैं और लड़कियां आंखों की जुबां पढ़कर दिल के राज खंगालती हैं. शी इज लूज करेक्टर
भारत-पाकिस्तान सरहद पर होने वाले हमलों से आम जन-जीवन पर पड़ने प्रभाव के ताने-बाने में बुनी गईं सपने और पिन कोड 193123 कहानियां हैं,बाढ़ के कारण बंबई के समय पनपते कुकुरमुत्ते टाइप रिश्तों की पड़ताल करती कहानी कुकुरमुत्ते है. सपने कहानी के माध्यम से कहानीकार ने सरहदों पर जीवन जीने वालों के सपने को मार्मिक ढंग से पिरोया हैं.उनके सपनों को किस तरह दोनों तरफ के होने वाले जवाबी हमलो ने कुचल दिया और उनके जीवन की सारी खुशियों को लील दिया.सारे सपने पलभर में बिखर गए.पिन कोड193123 कहानी में डाकिये जीवन की त्रासदी के साथ-साथ उसके जीवन में नीले अंतर्देशीय पत्र में लिखे लफ्ज़ों में धड़कते जीवन के रंगों को उकेरा है, दूसरी तरफ बाढ़ के कारण जिंदगी के बदलते समीकरणों को कहानी की स्लेट पर उकेरती कहानी कुकुरमुत्ते है.बाढ़ के बाद जिंदगी पुराने ढर्रे पर लौट चुकी थी.सब बारिशी रिश्तों की करामात थी,जो बारिश में यहां-वहां,हर जगह उग आए  कुकुरमुत्तों की तरह मुंह बाए खड़े हुए थे. वहीं सात फेरे बंबई में हुए बम विस्फोट के समय पति के मारे जाने की आशंका पत्नी में जीवन जीने की नई लालसा और ऊर्जा का संचार करती है तथा जो उसकी कठोरता से ज्यादा उसके जीवन के दर्द और दंश को ज्यादा बखूबी से उजागर करती है.
कहानियों के प्रौढ आलोचकों को कईं कहानियां बचकानी लग सकती हैं,क्योंकि उनके लिए उनका प्रौढ होना ही सबसे बड़ी दिक्कत पैदा करने लग जाता हैं.अन्यथा कईं कहानियां भोली-भाली बच्चियों के मिजाज़ की हैं.हालांकि कहानियां भाषाई तेवर में अरबी-फारसी शब्दों की बहुलता के बावजूद अर्थबाधक नहीं है,बल्कि कहीं –कहीं संवेदनाओं के कमजोर पक्ष को उजागर होने से भी बचाती है.कहानियों के बीच कविताओं का चलन इन दिनों बढ़ गया है.कारण या तो फैशन बन गया है या जीवन से कविता का लोप.अरबी-फारसी और अंग्रेजी शब्दों के बीच हिन्दी में तत्सम शब्द अखरते है,जैसे ब्लैक एंड व्हाइट के लिए श्वेत –श्याम शब्द बाधक अधिक लगता है.अपनी विषय-वस्तु और बनावट के स्तर पर कहानियां कच्ची-पक्की होने के साथ-साथ अलग प्यारे (क्यूटीपाई) मिज़ाज़ के साथ उभरती है.जैसे कहानियों में बचपन है,युवा अवस्था है,बुढ़ापा है,प्रौढ-अवस्था है,वैसा ही तेवर कहानियां का भी है.कहानियां आम पाठक के लिए सुपाच्चय है,जो कि इस संग्रह की सबसे बड़ी खासियत हैं.

क्यूटीपाई-सोनाली सिंह
सामयिक बुक्स,3320-21,जटवाड़ा,दरियागंज,एन.एस.मार्ग,नई दिल्ली-110002
संस्करण-प्रथम,2013,मूल्य-250


क्या राज्यपाल को सत्ता परिवर्तन के बाद हटाना उचित है ?


क्या राज्यपाल को सत्ता परिवर्तन के बाद हटाना उचित है ? संवैधानिक और कानूनी तौर पर भले ही राज्यपाल को बदला जा सकता हो,परंतु नैतिक आधार पर इस तरह की कार्यवाही गलत ही मानी जाएगी ।क्योंकि राज्यपाल उस राज्य का प्रथम नागरिक होता है,इसलिए उसकी गरिमा को आप इस तरह के कदम उठा कर ठेस पहुंचाएंगे । जबकि हटाये जाने का कोई ठोस कारण न हो तो यह कार्यवाही बिल्कुल ठोस नकारात्मक एवं प्रतिक्रियावादी ही मानी जानी जाएगी । या उन पर दबाव बना कर इस्तीफा दिलवाना ताकि अपने चहेते को उस पद पर बैठाया जा सकें । इस बदले की कार्यवाही के पीछे का सीधा-साधा गणित समझ से परे है,क्योंकि राज्यपाल का पद न तो तथाकथित राजनीति के अनुसार मलाईदार है और न ही शक्ति-सम्पन्न ही ।

राज्यपाल की नियुक्ति से पहले सम्बन्धित राज्य के मुख्यमंत्री से विचार विमर्श किया जाता था । यह प्रथा 1950 से 1967 तक अपनायी गयी, लेकिन 1967 के चुनावों में जब कुछ राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन हुआ, तब इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया और मुख्यमंत्री से विचार विमर्श किए बिना राज्यपाल की नियुक्ति की जाने लगी। इस तरह के प्रयास नकारात्मक राजनीति के उदाहरण ही बन सकते है ।बहरहाल सत्ता और राजनीति का कॉरपोरेट के साथ गलबहियां करने से नैतिकता को तो कब का तांक पर रख दिया गया है,इस तरह के नकारात्मक कदम किसी भी दल के लिए उसकी नकारात्मक और प्रतिक्रियावादी सोच के नमूने के अलावा कुछ ओर नहीं हो सकते । इस तरह के कदमों की जितनी निंदा की जाएं कम है ।