शनिवार, 21 मई 2016

12वीं में फेल होना

जब मैं फेल हुआ था 12वीं में

1996 का साल था। जब पहली बार किसी परीक्षा में फेल हुआ था। कोई मुझे फेल होने पर चिढ़ाता था तो मैं बालमन से यह जवाब देता था कि नॉन-मेडिकल में फेल हुआ हूँ। आर्ट होती तो फेल नहीं होता। कभी-कभी यह भी कहता था कि मैथ में तो पास हूँ बस फिजिक्स और कमेस्ट्री में थोड़े-थोड़े नम्बरों से फेल हो गया। फिजिक्स में 3 नम्बर से ही फेल हुआ था। उस समय सोचता था काश! फिजिक्स में पास हो जाता तो कमेस्ट्री में कम्पार्ट मेंट आ जाती और एक पेपर की तैयारी तो आराम से हो जाती। उस समय जिंदगी जितनी भारी और दुःखी लगती थी उतने ही काश आस पास मंडराते रहते थे। काश ऐसा हो जाये वैसा हो जाये। क्या पता रिजल्ट गलत छप गया हो। चमत्कार की उम्मीद मन ही मन छलांगे मारती रहती थी।

कितने भारी भरकम दिन थे वो। पापा की आँखों में आग दिखती थी। कितना डरने लगा था मैं अपने पापा से। मेरी माँ और बहन मेरी तरफ ऐसे देख रही थी जैसे मुझसे बेचारा शायद ही कोई होगा दुनिया में। उस दिन मेरे लिए सारी दुनिया बेगानी सी हो गयी थी। अकेले में जगह बदल-बदल कर रोया था मैं।

पास होने वालों की दुनिया में मैं एक फेल लड़का था। सबसे बड़ी बात एक मास्टर का लड़का  फेल हो गया।

कितने खुश थे मेरे पापा जब मैंने नॉन-मेडिकल में एड्मिसन लिया था। शायद उनके सपने पूरे करने के लिए ही लिया होगा। या अपने आप को सुपीरियर दिखाने के लिए। या दोनों बातें रही होंगी। क्योंकि पापा ने कभी जबरदस्ती नहीं की। जब एड्मिसन लिया था तब भी उन्होंने यही कहा था कि जो मर्जी कर मैं तो पैसे दे सकता हूँ बस।

मैं जिस समालखा के वैश्य स्कूल के a सेक्शन में था जो पढ़ने वाला का सेक्शन माना जाता था और उस सेक्शन के ज्यादातर बच्चों ने मेडिकल और नॉन मेडिकल में ही एड्मिसन लिया था। सो मैंने भी उसी फ्लो में ले लिया। मैथ और फिजिक्स तो पल्ले पड़ भी जाते थे पर कमेस्ट्री रटाने का सब्जेक्ट बना दिया गया था।

सबसे बड़ी दिक्कत मीडियम की थी। जो चीज हिंदी में पता थी उसे अंग्रेजी में लिखने का एटीएम विश्वास बन नहीं पाया और मैं फेल हो गया।

सोमवार, 9 मई 2016

डीयू पेपर सही से चैक करो

डीयू में पेपर सही से चैक नहीं होते। बताइये मोदी जी को थर्ड डिवीजन और मुझे सेकण्ड डिवीजन दिए हैं। जिन प्रोफेसरों ने मोदी जी को थर्ड डिवीजन दिया है उनकी जाँच होनी चाहिए। फर्स्ट डिवीजन दिए होते तो मोदी जी नार्थ कैम्पस से एम ए भी करते। गुजरात वापिस नहीं जाना पड़ता। और मुझे पीएचडी के लिए कुरुक्षेत्र जाना पड़ा।

मोदी जी की और मेरी पीड़ा लगभग एक जैसी है।

मोदी जी एम ए भी फर्स्ट क्लास से करते तो फिर पीएचडी भी यही से करते। और ओबीसी में उन्हें नौकरी भी जल्दी ही मिल जाती। थोड़ा बहुत गाइड के चक्कर लगाने पड़ते। उसमें मोदी जी मार नहीं खाते। चक्कर लगाने में वो तेज हैं ही। आजकल आप भाषण सुन रहे हैं तब लेक्चर सुन रहे होते। देश का भविष्य मोदी जी अपनी जुबान से गढ़ रहे होते।

डीयू ने बेहतरीन शिक्षक खो दिया। बस कुछ लापरवाह पेपर चैक करने वालों की वजह से।

अब भी सीजन चल रहा है पेपर चैक करने का। देखना किसी और का भविष्य मत खराब कर देना। किसी का भविष्य खराब करोगे आप लोग और कीमत देश चुकाएगा। प्लीज रहम करना। अपने डीयू का ही भला कर लेना।

देश की क्यों थर्ड डिग्री लगवा दी? पहले गुजरात की डिग्रियों पर डिग्रियां लगी। अब देश की बारी है। मोदी जी की थर्ड डिग्री पुलिस वालों की थर्ड डिग्री से भी भारी है।

रविवार, 8 मई 2016

कमर में लोच



जितनी उम्मीद और तुज़रबे से
मैंने उसकी पतली कमर में डाला था हाथ
मेरे तुज़रबे और उम्मीद से उलट
निकली थी उसकी कमर
उसकी कमर में लोच नहीं थी
बल्कि वह हद से ज्यादा सख्त थी
बाकी शरीर से
इतनी सख्त तो किसी की रीढ़ भी नहीं होती होगी
मैंने झट से अपना हाथ हटा लिया
इतनी कठोरता की मुझे भी आदत नहीं थी
उसके नर्म चेहरे पर बाल यूं ही उड़ रहे थे
और सुर्ख होठ अधखुले थे
मैंने धूप में जब अपनी शक्ल देखी तो
मेरे चेहरे के होश उड़े हुए थे
मेरा हाथ उस कठोरता से भारी हो गया था
और शरीर सुन्न पड़ता जा रहा था
मेरे कदम ऐसा लगा
लड़खड़ाने लगे थे
मुझे यही बताया भी गया था कि
लड़कियों की कमर में होती है
गज़ब की लोच
वो सारा पुराना ज्ञान
और मेरा अनुभव
दोनों ढूंढने पर भी नहीं मिल रहे थे
यह सब अज़ीब लग रहा था
लग नहीं रहा था
बल्कि ऐसा हो रहा था
उसके दोनों झूलते हाथ
मेरी ज्ञान और अनुभव की धरती को धकेल रहे थे
उसके हाथों को कोमल और नरम होना चाहिए
यह भ्रम भी धराशाई हो रहा था
ऐसा लगा इतिहास का यह पहला दिन है जब
कुछ टूट रहा है बिखर रहा है
अनुभव और ज्ञान के चिथड़े जगह-जगह
छितराए हुए हैं
मैं दुआ करने लगा अपने जिंदा बच जाने की
भूल गया मैं उस क्षण अपने नास्तिक होने की बात
यह कोई स्वपन्न नहीं था
न ही कोई फैंटेसी थी
बस मेरी फटी पड़ी थी।।

मां

मां ने
हर बार मेरे अपराधों को छुपाकर
मुझे अपराधी बनने के लिए प्रेरित किया। 
मैं जानता था कि यह सब करने के बाद 
एक ढाल मेरी रक्षा हमेशा करेगी।
मां ने समझाया मुझे कि जो अपराध मैं करता हूं
वो उसकी नज़र में छोटी-मोटी गलतियां भर हैं
हर बार मेरे हौसले बुलंद होते गए
और एक दिन मां ने मुझे
पक्का और सच्चा मर्द बना दिया।
उस दिन मैंने जाना कि मां ही मेरी सच्ची गुरु है
और अब इस गुरु की मुझे जरूरत नहीं है
क्योंकि सारे गुर मैं सीख गया हूं
दुनियादारी के
समझदारी के
रंगदारी के
होशियारी के
दिखावेदारी के...

हैप्पी बड्डे टू परशुराम

भगवान् परशुराम जयंती की पूरे भारतीय समाज को हार्दिक शुभकामनाएं. 
भारतीय पावन भूमि के वीर ॠषियों और मुनियों को मेरा कोटि कोटि प्रणाम.. "

आप उलझे रहिए तत्सम वाली हिंदी में। हम तो हिंग्रेजी में बधाई देंगे अपने शूरवीर और अमीर ब्राह्मण को। हैप्पी बड्डे टू परशुराम जी। वैसे यह बात आज भी उतनी ही सही है खासकर भारत के संदर्भ में कि ब्राह्मणों से सारा भारत डोलता है। अब यह आप पर है कि आप इसे इतिहास कहेंगे या पौराणिक गाथा या मिथकीय। जो भी हो जाति हमारे समाज का सबसे कड़वा सच है।

ब्राह्मण जब इकट्ठा होते हैं तो अपनी जातिगत वीरता के लिए हमेशा परशुराम को याद करते हैं और उनके उस पराक्रम का गुणगान पर सिद्दत से करते हैं कि कैसे परशुराम ने धरती को लहुलुहान कर दिया था। और जब आरक्षण को आर्थिक आधार पर केंद्रित करना हो तो उनके लिए सबसे उचित पात्र होते हैं सुदामा। तब एक गरीब ब्राह्मण की व्यथा उनकी जिह्वा पर होती है।

ये दोहरे मापदंड हैं। हर जाति अपने आप सर्वश्रेष्ठ घोषित करने पर तुली हैं और बात जब आरक्षण की होती है तो सब अपने आप को निकृष्ट घोषित करने लग जाते हैं।

सच और झूठ नहीं लिखता बस लिखता चला जाता हूं

पहले पहल जब लिखना शुरू किया तो लगा कि लिखने का पहला और अंतिम लक्ष्य सच ही होना चाहिए। सच के सिवाय कुछ नी होना चाहिए। लिखते-लिखते जाना कि सच और झूठ कुछ नहीं होता केवल भ्रम होता है या हमारा खुद का और हमारी सोच-अनुभव का दायरा होता है। यह दायरा छोटा भी हो सकता है और बड़ा भी। एकतरफा भी हो सकता है और बहुतरफा भी। लिखने और पढ़ने के बीच में बहुत कुछ घटता-बढ़ता रहता है। ठीक उसी तरह हमारे लिखे को पढ़ने वाले के साथ भी घटता-बढ़ता होगा। जिससे हम लगभग अनजान होते हैं। पर पढ़ने वाला हमें जानने का भ्रम पाले हुए होता है या कयास लगाए हुए होता है।

यह सब जितना यथार्थ में घटता-बढ़ता हुआ जान पड़ता है, उतना ही आभासीय भी होता चला जाता है।

हम अपने आसपास कुछ होते हुए देखते हैं और जो हमें उस समय दिख रहा होता है। क्या सच में उसी तरह घट रहा होता है या हम ुसे उस तरह घटता हुआ देख रहे होते हैं। अगर वह घटा हुआ निरपेक्ष होता तो मौजूद सभी को एक जैसा घटता हुआ दिख रहा होता पर होता इसका एकदम उलट है। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि उस घटना को देखने की सबकी अपनी एक खास जगह हो या देखने वाली की अपनी एक खास मानसिक स्थिति हो।

दरअसल समय के साथ अब मैं सच की दावेदारी करने से कतराने लगा हूं। वर्तमान की घटना और अतीत का अनुभव आपस में इतने गुथमगुथा हो जाते हैं कि उसमें से सच को निचोड़ पाना लगभग असंभव हो जाता है। इस असंभव को संभव बनाने की हर कोशिश मुझे व्यर्थ जान पड़ती है। इस तरह की भनक मुझे उस समय सबसे ज्यादा लगी जब ईश्वर है या नहीं है कि बहस में उलझने लगा। मैं होने का दावा भी नहीं कर सकता था और नहीं होने का भी। दोनों के लिए मेरे पास अपना व्यक्तिगत कोई अनुभव नहीं था। सच का दावा तो किस आधार पर करता? दावा ही दरअसल हमें रूढ़ बनाता चलता है। हम जितने अधिक दावे करने लगते हैं उतने अधिक जकड़ते चले जाते हैं। जबकि चेतना की तरलता ही हमें ठोस रूप प्रदान करने का आभास देती है। उसे ही हम सच मानने लगते हैं और दावेदारी करने लगते हैं।

सच और झूठ क्या है? यह ही नहीं जानता मैं। इसलिए बस लिखता चला जाता हूं। लिखना पढ़ने के लिए ही होता है। हम सब लिखते हैं ताकि उसे पढ़ा जा सके।

अख़बारवाला-1


                                                               
उनके घर वो लगभग 6:20 के आस-पास रोज अख़बार डालने से पहले अपनी साईकिल की घण्टी बजाता। उसको ये सख्त चेतावनी पूजा के पापा ने दे रखी थी कि अखबार हाथ में पकड़ा कर जाना है, जमीन पर नहीं फेंकना है, क्योंकि विद्या को ज़मीन पर फेंकना उसका अपमान करना हैं। पण्डित जी पुराने संघी होने के साथ-साथ विद्या की खूब इज्जत और पूजा करते थे। इसीलिए उन्होंने अपनी बड़ी बेटी का नाम श्रद्धा और दूसरी बेटी का नाम पूजा रखा था। तीसरे नम्बर के बेटे का नाम उज्ज्वल। बड़ी बेटी की शादी कई साल पहले हो चुकी थी।
पूजा घर पर रहकर ही बी.ए. करने के बाद बी.एड. कर रही है,क्योंकि उसके पापा को लगता है कि समय बहुत खराब है। लड़कियां न रस्ते में सुरक्षित है और न स्कूल-कॉलेज में। शिक्षक भी गिद्ध होते जा रहे हैं। इन विचारों को पुख्ता करते दस-बीस उदाहरण उनके पास कई साल से जमा है, जिनका बही खाता वो कभी भी खोलकर बैठ जाते हैं । उनको इस बात की तसल्ली है कि पैसे भले ही थोड़े ज्यादा लगते हैं पर लड़की साफ-सुथरी रहेगी तो रिश्ते में दिक्कत नहीं आएगी। साफ-सुथरी से उनका तात्पर्य बेदाग होना है। बेदाग का सामाजिक मतलब है किसी से चक्कर न चलना। मतलब शादी से पहले किसी से किसी भी प्रकार के कोई संबंध न रखना। मतलबी दुनिया में आप किसी बात के जितने चाहे मतलब निकाल सकते हैं। मतलब कभी न खत्म होने वाला शब्द है।
 रिश्ते की जब भी बात चलती वो उस वक्त भी इस बात पर खासा जोर दिया करते हैं कि लड़की की सारी पढ़ाई-लिखाई घर पर रहते ही हुई है। ताकि लड़के वाले लड़की के कैरेक्टर को लेकर अपने दिमाग का ज्यादा टरैक्टर न चलाए। बात को कई जगह चली पर न तो चल पाई और न दौड़ पाई। हर बार यह कहकर भगवान की तरफ देखने लगते कि जहां संजोग लिखा है रिश्ता वही होकर रहेगा। हम सब तो बस जरिया है। करने वाला तो परमात्मा ही है। परमात्मा की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। हम तो ठहरे आम इंसान।
इसी तरह बस जीवन बसर हो रही थी। इसी बसर में थोड़ा बदलाव तब आया। जब केंद्र के बाद हरियाणा में भी भाजपा की सरकार आई, तब से वो नियमित रूप से शाखा में भी जाने लगे हैं । बन्द पड़ी हुई शाखा खिल खिलाने लगी है । खिलखिला तो उस समय भी खूब रही थी, जब उसे बन्द करना पड़ा था । बन्द कुछ बदमिजाज़ किस्म के लड़को की वजह से करनी पड़ी थी । वो रोज चिल्ला-चिल्लाकर कहते थे कच्छाधारी आगे । जाट बहुल एरिया होने की वजह से उनका कुछ किया भी नहीं जा सकता था । सरकार और पुलिस भी हाथ खड़े कर लेती थी। कौन लड़े-झगड़े ? पर अब कानून सरकार से दो कदम आगे दौड़ने लगा है । इसलिए अब शाखा भी नियमित हो गयी है ।
सुबह का अख़बार पकड़ने की ड्यूटी पण्डित खुद निभाया करते थे पर अब शाखा में आने वालों की संख्या बढ़ गयी थी । जिसके कारण उत्साह में शाखा का समय आधे घण्टे से बढ़ाकर एक घण्टा कर दिया। जिस कारण अख़बार की जिम्मेदारी अब पूजा को सौंप दी । इसमें भी उन्हें दो फायदे नजर आएं । एक तो पूजा जल्दी उठने लगेगी और दूसरा सूर्य नमस्कार कर लिया करेगी ताकि उसका तन और मन स्वच्छ रहे ।
कुछ दिन दोनों की केवल नजरें टकराती रही। फिर हंसी भी भिड़ने लगी।
सुभाष भी अब एक नहीं तीन घण्टियाँ बजाने लगा और उसने पूजा के चक्कर में नई साईकिल खरीद ली । जो मोडर्न भी थी । अब वह सुबह नहा धोकर आने लगा । पूजा हंसी से मुस्कुराहट के दौर में प्रवेश पा चुकी थी। पूजा की मुस्कुराहट उसकी ऊपर की आमदनी हो गयी थी। जिसकी उसे लत लग गयी थी। पूजा भी उससे खुलकर हंसी मजाक भी करने लगी थी । हंसी मजाक के केंद्र में अख़बार हमेशा रहता था । सारी खींचतान अख़बार तक ही सीमित थी। सुभाष ने उसके सामने नम्बर बनाने के चक्कर में कई बार नया फोन निकाला और जेब में डाल लिया। पर पूजा की तरफ से कोई पहल नहीं हुई । वह भी डर के कारण कुछ ज्यादा बढ़ नहीं पाया ।
कुछ दिन जब वह अख़बार का बिल देने आया तो उसने हिम्मत करके बिल पर अपना फोन नम्बर भी लिख दिया।
नम्बर कागज के टुकड़े से होता हुआ सीधे वेट्सएप से जुड़ गया। उसी के जरिये सुभाष को उसका नाम पता चला। अख़बार बाँटना अब उसके लिए रोजगार और उत्साह दोनों तरह का फायदा करने लगा। कई महीने बात करने के बाद उन्होंने बाहर मिलना तय किया।
आज वो उससे मिलने आई तो सुभाष भी अपने दोस्त से बाइक मांगकर लाया था । दो हेलमेटों में ढकी बाइक कई घण्टों तक गलियों और सड़कों के फेरे लगाने में लगी रही।
क्या खायेगी पूजा ?”
मुझे एक तो दाल फ्राई खानी है और तन्दूर की रोटी।
अरे !
हाँ ! यार ! मेरे घर पर प्याज और लहसुन खाना मना है । मेरी दोस्त बताती है कि प्याज और लहसुन से दाल फ्राई मस्त बनती है । मुझे तन्दूर की रोटी भी खानी है । मैंने तुझको पहले ही बोल दिया था कि मुझे ढाबे पे खाना खाना है ।
पूजा यहां पर मसाला डोसा भी अच्छा बनता है ।
नहीं । मुझे दाल फ्राई ही खानी है । देख जिस घर में मेरा रिश्ता तय हुआ है वो भी प्याज-लहसुन नहीं खाते । मैं तेरे साथ जो-जो मेरा मन है वो खा लेना चाहती हूँ । तेरा मन है डोसे का तो तू खा लें ।
नहीं । मैं भी दाल फ्राई ही खा लूंगा।
सुनो ! एक बढ़िया सी दाल फ्राई,प्याज और लहसुन का बढ़िया सा तड़का लगाना,एक दम आलू और छः तन्दूरी रोटी मख्खन लगाकर ले आओ।
सलाद और पापड़ भी लगाने है ।
प्याज तो दोगे ही ?”
हाँ ।
फिर सलाद रहने देना और दो पापड़ भी लगा देना । थोड़ा जल्दी लाना ।
ठीक है और कुछ नहीं ?”
फ़िलहाल ये ले आओ ।
जी !
लगता अजीब ही है सुभाष यूँ बाहर आकर दाल-रोटी खाना । पर करें भी क्या ? और कोई चारा भी तो नहीं । यहां कोई जान पहचान का तो नहीं आएगा न ?”
ना । रेस्टोरेंट में तो फिर भी कोई न कोई जान पहचान का मिल जाता है । ढाबे पर कोई नहीं आता । वैसे भी ये अपने शहर (कस्बे) से तो बाहर ही है ।
तुम्हारी नौकरी का क्या हुआ सुभाष ? बनी कहीं बात ?”
लगभग हो गयी समझो । गुड़गांव में एक दोस्त ने एक कम्पनी में बात की है । सोमवार को बुलाया है । बस पहली सैलरी वो लेगा।
अच्छा ! चलो कोई नहीं । ये सोच लेना कि एक महीने बाद लगी है । आई टी आई करने से देर-सबेर नौकरी तो मिल ही जाती है । और गुड़गांव कौन-सा लन्दन में है ?”
हाँ ! ये तो है पूजा । पहले जल्दी और आसानी से मिल जाती थी । जब से ये प्राइवेट कॉलेज खुले है इंजीनिरिंग के तब से कम्पीटिसन बढ़ गया है।
ओह !
खाना खाने के बाद उन्होंने ठण्डी खीर भी आर्डर कर दी और खीर खाते हुए पूजा बोली- पता है तुम्हे मेरा जो रिश्ता तय हुआ है वो शायद टूट जाएँ ?”
क्यों ? क्या हुआ ?”
कहने को तो कुछ हुआ भी नहीं और हो भी बहुत कुछ गया । वो मुझे शुरू से ही सनकी लगता था । फोन पर एक दिन बात करते-करते पूछने लगा -तुम्हारी फेवरेट फ़िल्म कौन-सी है ? अब एकदम से कोई याद ही नहीं आ रही थी । पिछली रात को मिर्च देखी थी तो वही याद आ रही थी । अच्छी भी लगी थी । मुझे तो मिर्च फ़िल्म का नाम लेने दो उसने तो धड़ाम से फोन काट दिया । उस समय तो मुझे कुछ समझ ही नहीं आया । पर बाद में सोचा कि कितनी घटिया सोच रखता है । मैंने भी दोबारा फोन ही नहीं किया ।
अरे ! इसमें नाराज होने वाली कौन-सी बात थी ?”
चार दिन हो गए उसका फोन आए । ठीक है अगर पिंड छूट जाएँ तो । पता है मुझसे पूछने लगा कि हनीमून पर कहाँ चले ? तो मैंने झट से गोवा बोल दिया । उस दिन भी उसने मुंह फुला लिया था । कहने लगा-पूजा जी ! हम वैष्णो देवी चलेंगे । बताओ पापा के साथ भी वैष्णो देवी जाओ और अब पति के साथ भी वैष्णो देवी जाओ ।
तगड़ा भक्त लगता है माता रानी का ।
नहीं । भक्त तो सांई बाबा का है । पर शादी के बाद की जिंदगी अच्छी गुज़रे इसके लिए माता रानी का आशीर्वाद जरूरी मानता है ।
चलो पूजा तीन बज गए ।तुम्हे घर लेट हो जायेगा । बे-फालतू में लेने के देने न पड़ जाएँ ।
कोई टेंसन नहीं है आज । छः बजे तक का टाइम है ।
वो कैसे ?”
आज चार्ट बनाने के नाम की निकली हूँ । महीने दो महीने में एकाध बार ही तो मौका लगता है निकलने का । पिछली बार जब निकली थी अपनी दोस्त कमलेश के साथ तो हमने डोसा ही खाया था । अब सबके साथ तो धर्म भ्रष्ट नहीं किया जा सकता और अरेंज मैरिज के बाद तो यह सपना सपना ही रह जाएगा। वो लोग भी क्या पता हमारी तरह नहीं खाने वाले मिल गए तो?
और चार्ट ?”
वो दुकानदार से बात कर रखी है । वो बने बनाएं ही दे देता है । थोड़े ज्यादा पैसे लेता है पर कोई झंझट नहीं होता । कॉलेज वाले भी उन चार्ट पर अच्छे नम्बर देते हैं । उनका कमीसन बंधा होता है उनके साथ ।
ओह ! सब पैसा बनाने में लगे हुए हैं ।
होर क्या ? पैसे को तो भगवान बना दिया है । तुमको तो पता ही है मेरे चाचा हमारी जमीन के पैसे भी खा गए । नहीं तो अब तक मेरा भी ब्याह हो गया होता । खैर कुछ बुरा हुआ तो कुछ अच्छा भी हुआ ।
पर तुम्हारे चाचा तो शहर के जानेमाने पंचायती आदमी हैं और शहर में उनकी पूरी धाक भी हैं। भाजपा और कांग्रेस के सारे नेता उनके पास जरूर आते हैं। रूतबा तो खूब है उनका।
इसीलिए पापा कुछ कर नहीं सके। पापा बिल्कुल सीधे इंसान है। पर दिल के बहुत अच्छे हैं। पापा कहने को बड़े हैं पर सम्मान चाचा का अब भी बहुत करते हैं। उनकी किसी बात को मना नहीं करते। उनके कहने पर ही पापा शाखा में जाते हैं। वरना पापा को राजनीति बिल्कुल पसंद नहीं है। चाचा नहीं चाहते कि उनका कोई काम भाजपा के राज में रूके। उनका सभी दलों में बढ़िया रूतबा है।
हां ये तो है। पर तुमने अभी तक ये नहीं बताया कि तुमने पार्टी किस बात की दी है ? अब तो खीर भी खत्म हो गयी ।
रुको सब्र करो । भैय्या बिल ले आओ ।
बिल तुम भरोगी ?”
पार्टी मैं दे रही हूँ तो बिल भी मैं ही भरुंगी न ।
अब बता भी दो।
उसने सौंप-मिसरी खाते हुए सुभाष की तरफ इशारा करते हुए दो उँगलियों को आपस में मिलाते हुए जीरो बनाकर खाने की तारीफ की । वह पार्टी का कारण जानने के लिए बेचैन होता जा रहा था । एकबार तो उसे लगा शायद रिश्ता टूटने की पार्टी दे रही है, तभी उसे ख्याल आया कि वो बात तो उसने पहले ही बता दी थी ।
एक खुशखबरी है सुभाष ।
शादी टूट गयी।

सब्र करो और शादी अभी टूटी नहीं है ।
नहीं । SBI में मेरा सलेक्सन हो गया है । कल ही रिजल्ट आया है । मैंने सोचा ये खुशख़बरी सबसे पहले तुम्हीं को सुनाऊं । आखिर तुमने ही तो मुझे अख़बार के बीच में एक कागज दिया था,जिस पर लिखा था- न जाने कितने हुनर घरों में कैद है,और हम देश में हुनर न होने का रोना रोते हैं ।।लिखा तो तुमने और भी बहुत कुछ था, पर सबसे प्यारी मुझे ये लाइन ही लगी थी । ये पहली बार था सुभाष । जब मुझे खुद पर हद से ज्यादा यकीन हुआ था कि हाँ मैं भी बहुत कुछ कर सकती हूँ । मैं तो घर पड़े-पड़े अपना ही यकीन खो चुकी थी ।
दोनों ही भावुक हो गए और उनकी आँखें भारी-सी हो गयी । काफी देर से उन्होंने आंसुओं को सम्भाला हुआ था । पर अब सम्भले नहीं सम्भल रहा थे । दोनों का मन था कि एक-दूसरे का हाथ पकड़ लें पर कण्ट्रोल कर गए । क्योंकि उन्होंने उस जगह के होने के अहसास को बचा रखा था । इसलिए वहां से चलने में ही उन्होंने भलाई समझी ।
अब हालात बदल गए थे। अब पूजा बाइक के दोनों तरफ पैर करके बैठ गयी । ताकि इत्मिनान से अपनी बात उसके कान में कह सकें और हैलमेट की जगह अब उसने अपने दुपट्टे से मुंह ढक लिया था ताकि कोई उसे पहचान न सकें । जितनी वो अपनी पहचान छुपा रही थी,उतना ही खुद को पहचान और जान रही थी ।
नौकरी लगने की ख़ुशी ने उसके शरीर में मानो ग्लूकोस चढ़ा दिया हो ।
जैसे ही बाइक चली । उसने उसके पेट को कसकर पकड़ते हुए उसके कान में आई लव यूँ कहा । बाइक की रफ़्तार अचानक से तेज होती चली गयी । फिर उसने अपने दोनों हाथ पंछी की तरह लहरा दिए । आज उसने उड़ना सीख लिया था । अब वो अपने को आजाद महसूस कर रही थी । एक मन हुआ वो मुंह भी उघाड़ दें पर वो तुरन्त सम्भल गयी ।
दोनों बाइक पर बैठे कम थे उड़ ज्यादा रहे थे । उनका उड़ना बाहर कम भीतर ज्यादा था । इसलिए वो किसी को दिख नहीं रहा था । सुभाष ख़ुशी में ब्रेक पर ब्रेक लगाकर अपनी ख़ुशी का इजहार कर रहा था । तब एक पल के लिए लगा दोनों झूला झूल रहे हो । मौसम भी साथ में काले बादलों को लेकर आ गया ।
दोनों अपने-अपने हिस्से की ख़ुशी को दबोचे अपने-अपने घर चले गए ।
राघव अरोड़ा जो पूजा का पड़ोसी था । वो जब ढाबे पर ब्रेड सप्लाई करने लगा हुआ था तब उसकी नज़र पूजा और सुभाष दोनों पर गयी । पूजा और राघव की छत भले ही आपस में मिली हुई थी, पर पूजा उससे नफरत करती थी । जबकि राघव कई साल से कोशिशों में लगा हुआ था ।
पूजा शाम को छत पर बैठना पसन्द करती थी । पर राघव का अक्सर छत पर आ जाना उसे खटकता था । इसलिए उसने अपनी शाम और छत राघव के मुंह पर दे मारी । कुछ उसी अंदाज में कि-ले तू जी ले शाम और छत की जिंदगी ।
घर आने के बाद पूजा का मन तो था कि दिन की तरह शाम भी अच्छी गुज़रे इसके लिए छत पर जाया जाए और लीड लगाकर गाने सुने जाए । पर उसकी छत और शाम के बीच राघव फन उठाकर खड़ा हो जाता था । पर आज उसने मन बना लिया था कि उस फन को कुचल देगी । नहाने के बाद वो चाय लेकर सीधे छत पर पहुंच गयी और मोबाईल में गाना लाऊड स्पीकर पर बजा दिया-
"काँटों से खींच के ये आँचल, तोड़ के बंधन बाँधे पायल! आज फिर जीने की तमन्ना है !"
जब-जब वह खुश होती है तब-तब पुराने गाने सुनती है और जब परेशान होती है तो लाऊड गाने सुनना उसे अच्छा लगता है । चाय पीकर उसने कप मुंडेर पर रखा ही था कि उसकी नज़र राघव की छत पर गयी । राघव छत पर आ गया था ।
राघव अक्सर नजरें भिड़ाने की फ़िराक में रहता था पर आज उसने नजरें मिलाई नहीं बल्कि दूसरी तरफ मुंह फेर कर कुछ बड़बड़ाने लगा । थोड़ी देर बाद उसके मुंह से निकला- वाह भाई ! दाल और रोटी खाने का मजा ही कुछ और है । इतना मजा तो चिकन में भी नहीं आता ।
कहाँ तो पूजा मुंह तोड़ जवाब देने का मन बनाएं खड़ी थी । कहां उस पर ये नई आफ़त आन गिरी थी । ये सुनते ही उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा और घबराहट पूरे शरीर में दौड़ गयी । उसे समझ नहीं आ रहा था वो क्या करें ?
उसकी घबराहट को देखकर राघव हल्का-सा मुस्कुराया ।
पूजा घबराकर सीधे नीचे चली आई । कमरे में घुसते ही उसने विंडो ऎसी ऑन किया और उसके सामने खड़ी होकर सोचने लगी । जब से ऎसी आया है, तब से उसने परेशानी और गुस्से से बाहर निकलने के अपने पुराने तरीके को छोड़कर ये नया तरीका अपना लिया है । सर्दियों में वह इसका विकल्प चाय बनाने और पीने में खोजती है । खैर कुछ देर सोचने के बाद उसने सुभाष को फोन किया । इससे पहले उन्होंने केवल वट्सएप पर ही बात की थी । फोन करने की कभी न तो नौबत आई थी और न ही जरूरत पड़ी थी ।
फोन करके उसने सब कुछ बता दिया ।सुभाष ने तसल्ली देते हुए कहा-तू टेंसन मत लें । उसका करता हूँ मैं कुछ ।
रघु छत पर खड़ा मुस्कुरा रहा था । दरअसल रघु से पूजा को ही नहीं हर लड़की को दिक्कत होती थी । वो हर लड़की को ऐसे ही घूरता और झपट लेना चाहता था । पक्का वुमनाइजर था वो । जिसके लिए हर लड़की उसके लिए उपलब्ध देह भर थी । छत पर खड़ा है वह आगे की प्लानिंग बना रहा था यह सोचते हुए कि पूजा की अकड़ पर पहली चोट तो हो गयी है । अब अगली चोट उसको उसके पापा के डर की मारूँगा ।
सुभाष जानता था रघु जैसो का क्या ईलाज किया जाता है । वो भी सीधे जोगिंद्र उर्फ़ काले के पास पहुंचा और अपनी सारी बात बता दी । रघु काले के दम पर ही उछलता था । काले ने रघु को फोन पर गालियां देते हुए बकवास न करने की चेतावनी दे दी । एक झटके में रघु नामक खतपतवार को उसने उखाड़ फेंका जो नई उगती हुई प्रेम फसल के बीच उग आया था ।
सुभाष ने काले के घर से निकलते ही पूजा को फोन करके बताया । और कहा-देखो पूजा ! हमारे लिए कुछ भी आसान नहीं है। इन छोटी-छोटी चीजों से अगर हम इतना घबराएंगे तो आगे नहीं बढ़ा जायेगा ।
हाँ वो तो मैं भी समझती हूँ पर मैं नहीं चाहती कि मेरे ज्वाइन करने से पहले कोई प्रॉब्लम हो । बाद वालियों से तो निपट ही लूंगी । चलो अब मैं फोन रखती हूँ । मुझे खाना बनाना है । चल ओके बाय । लव यूँ ।
पूजा के घर के बाहर आकर सुभाष ने रोजाना की तरह अपनी साईकिल की तीन घण्टियाँ बजाई और अख़बार को पकड़ाने के लिए डबल कर लिया ।
पूजा की माँ ने पूजा को आवाज लगाई-पूजा अख़बार वाला आ गया है । अख़बार ले लें । पूजा ने ये देर आज जानबूझ कर की थी । क्योंकि आज उसे अजीब-सा लग रहा था और हंसी भी अपने आप उसके होठों और चेहरे पर निखर रही थी । वो नहीं चाहती थी कि उसकी आवभाव नोटिस हो । इसके लिए उसने मुंह में टूथ ब्रश डाल लिया और अख़बार लेने पहुंच गयी ।
जैसे ही उसने अख़बार पकड़ा । उसे अख़बार का वजन ज्यादा महसूस हुआ । उसने हैरानी से सुभाष की ओर देखा ।
किताब है ।
कौन-सी किताब ?”
निदा फ़ाज़ली की ।
ये कौन है ?”
अरे तुम पढ़ो तो पहले । फिर बताना कैसी लगी ?”
पूजा बिना कुछ कहे अंदर चली गयी । पूजा का मन था एक बार पलट कर देख ले पर उसने अपने ऊपर कण्ट्रोल कर लिया । सुभाष उसको देखता हुआ आगे बढ़ गया । पर जाते हुए एक मधुर घण्टी बजा गया । जिसे पूजा ने बाय और लव यूँ दोनों रूपों में अपनी तरफ लपक लिया ।
किताब अपने कमरे में रखकर पूजा अख़बार पढ़ने लगी । पर आज उसका मन अख़बार में लगा ही नहीं । वो किताब पढ़ने के लिए उत्सुक थी । सुभाष की वजह से उसने अख़बार पढ़ने जैसी बोरिंग चीज को भी उसने अपनी पसन्द बना लिया था ।
किताब के पहले ही पेज पर सुभाष ने हरे रंग से पूजा नाम लिख रखा था । पूजा करीब आधा घण्टा उस नाम पर हाथ फेरते हुए न जाने क्या-क्या सोचती रही । उसने गौर किया किताब में एक पेज मुड़ा हुआ है,उसने उसे सीधा करने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया उसकी नज़र इन लाइनों पर गयी,जिन्हें लाल पेन से अंडर लाइन किया गया था-
                                          इसी बदलते वक़्त सहरा में लेकिन
                                                 कहीं किसी घर में
                                                  इक लड़की ऐसी है
                                               बरसों पहले जैसी थी वो
                                                  अब भी बिल्कुल वैसी है ।।
किताब को सीने पर रखकर पूजा ने आँखें बन्द कर ली और किसी और दुनिया में ही उतरती चली गयी ।
रघु छत पर खड़ा मुस्कुरा रहा था । दरअसल रघु से पूजा को ही नहीं हर लड़की को दिक्कत होती थी । वो हर लड़की को ऐसे ही घूरता और झपट लेना चाहता था । पक्का वुमनाइजर था वो । जिसके लिए हर लड़की उसके लिए उपलब्ध देह भर थी । छत पर खड़ा है वह आगे की प्लानिंग बना रहा था यह सोचते हुए कि पूजा की अकड़ पर पहली चोट तो हो गयी है । अब अगली चोट उसको उसके पापा के डर की मारूँगा ।
सुभाष जानता था रघु जैसो का क्या ईलाज किया जाता है । वो भी सीधे देवेन्द्र उर्फ़ काले के पहुंचा और अपनी सारी बात बता दी । रघु काले के दम पर ही उछलता था । काले ने रघु को फोन पर गालियां देते हुए बकवास न करने की चेतावनी दे दी । एक झटके में रघु नामक खरपतवार को उसने उखाड़ फेंका जो नई उगती हुई प्रेम फसल के बीच उग आया था ।
सुभाष ने काले के घर से निकलते ही पूजा को फोन करके बताया । और कहा-देखो पूजा ! हमारे लिए कुछ भी आसान नहीं है। इन छोटी-छोटी चीजों से अगर हम इतना घबराएंगे तो आगे नहीं बढ़ा जायेगा ।
हाँ वो तो मैं भी समझती हूँ पर मैं नहीं चाहती कि मेरे ज्वाइन करने से पहले कोई प्रॉब्लम हो । बाद वालियों से तो निपट ही लूंगी । चलो अब मैं फोन रखती हूँ । मुझे खाना बनाना है । चल ओके बाय । लव यूँ ।


या । सुभाष ने तसल्ली देते हुए कहा-तू टेंसन मत ले । उसका करता हूँ मैं कुछ ।
रघु छत पर खड़ा मुस्कुरा रहा था । दरअसल रघु से पूजा को ही नहीं हर लड़की को दिक्कत होती थी । वो हर लड़की को ऐसे ही घूरता और झपट लेना चाहता था । पक्का वुमनाइजर था वो । जिसके लिए हर लड़की उसके लिए उपलब्ध देह भर थी । छत पर खड़ा है वह आगे की प्लानिंग बना रहा था यह सोचते हुए कि पूजा की अकड़ पर पहली चोट तो हो गयी है । अब अगली चोट उसको उसके पापा के डर की मारूँगा ।
सुभाष जानता था रघु जैसो का क्या ईलाज किया जाता है । वो भी सीधे देवेन्द्र उर्फ़ काले के पहुंचा और अपनी सारी बात बता दी । रघु काले के दम पर ही उछलता था । काले ने रघु को फोन पर गालियां देते हुए बकवास न करने की चेतावनी दे दी । एक झटके में रघु नामक खतपतवार को उसने उखाड़ फेंका जो नई उगती हुई प्रेम फसल के बीच उग आया था ।
सुभाष ने काले के घर से निकलते ही पूजा को फोन करके बताया । और कहा-देखो पूजा ! हमारे लिए कुछ भी आसान नहीं है। इन छोटी-छोटी चीजों से अगर हम इतना घबराएंगे तो आगे नहीं बढ़ा जायेगा ।
हाँ वो तो मैं भी समझती हूँ पर मैं नहीं चाहती कि मेरे ज्वाइन करने से पहले कोई प्रॉब्लम हो । बाद वालियों से तो निपट ही लूंगी । चलो अब मैं फोन रखती हूँ । मुझे खाना बनाना है । चल ओके बाय । लव यूँ ।