गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

पॉपुलर कल्चर को समझने का नया नज़रिया

पॉपुलर कल्चर को समझने का नया नज़रिया

जगदीश्वर चतुर्वेदी

 

हमारे समाज में जिस तरह पापुलर कल्चर के प्रति अनालोचनात्मक प्रचार चल रहा है और प्रगतिशीलों के द्वारा जिस तरह पापुलर कल्चर की उपेक्षा की जा रही है वह चिन्ता की चीज है। पापुलर कल्चर को लेकर प्रगतिशीलों में दो तरह का नजरिया रहा है,पहला नजरिया यह मानकर चलता है कि पापुलर कल्चर के अंदर जाकर काम करो,उसके विधा और मीडिया रुपों का इस्तेमाल करो और समाज में अच्छे विचारों और मूल्यों का प्रचार करो। यानी पापुलर कल्चर को प्रचार से ज्यादा वे महत्व नहीं देते।


 

दूसरा नजरिया पापुलर कल्चर को आए दिन धिक्कारता रहता है। धिक्कार और पूजा के परे जाकर आलोचनात्मक नजरिए से पापुलर कल्चर के तमाम पहलुओं पर गंभीरता के साथ विचार किया जाना चाहिए। बोर्द्रिओ का मानना है कि सांस्कृतिक अभ्यासों और सांस्कृतिक परंपरा के ज्ञान का गहरा संबंध शिक्षा और सांस्कृतिक अभिरुचि के स्तर के साथ है। इसमें शिक्षा की निर्णायक भूमिका है। शिक्षा के द्वारा ही सांस्कृतिक अभ्यास और आदतें निर्मित की जाती हैं। इसके अलावा सांस्कृतिक आकांक्षाएं और इच्छाएं भी शिक्षा के कारण पैदा होती हैं। किसी व्यक्ति में किस तरह की सांस्कृतिक इच्छा और आकांक्षाएं हैं ,यह इस बात से तय होगा कि उसकी किस तरह की शिक्षा हुई है और किस तरह के सांस्कृतिक अभ्यासों से गुजरा है। संस्कृति लोगों को प्रेरणा प्रदान करे इसके लिए जरुरी है कि उन्हें शिक्षा प्रदान की जाय। इसके अलावा दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है परिवार। व्यक्ति किस तरह की पारिवारिक पृष्ठभूमि से आता है और परिवार उसके अंदर किस तरह का सांस्कृतिकबोध निर्मित करता है।


 

संस्कृति के निर्माण में शिक्षा के बाद दूसरा सबसे बड़ा संस्थान है परिवार। शिक्षा और परिवार ये दो तत्व ऐसे हैं जो व्यक्ति के लिए सांस्कृतिक संपदा पैदा करते हैं। मसलन् एक व्यक्ति है जो बेहतरीन सांस्कृतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि से आता है,बेहतर शिक्षा पाता है,दूसरा व्यक्ति भी उसी आर्थिक स्तर के परिवार से आया है और समान रुप से बेहतर शिक्षा पाता है,किंतु उसके पास पारिवारिक-सांस्कृतिक संपदा नहीं है ,ऐसे में दोनों का सांस्कृतिकबोध एक ही स्तर का नहीं होगा। क्योंकि पहले वाले व्यक्ति के पास सांस्कृतिक पृष्ठभूमि है जबकि दूसरे के पास इसका अभाव है। परिवार की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का व्यक्ति के सांस्कृतिक परिवेश के निर्माण में गहरी भूमिका होती है। मजदूरवर्ग के परिवारों से आने वाले लोगों के पास किसी भी किस्म की सांस्कृतिक संपदा( कल्चर कैपीटल) नहीं होती। यही वजह है कि वे अपने बच्चों को किसी भी किस्म की संस्कृति नहीं सौंपते। वे किसी भी किस्म की वैध सांस्कृतिक गतिविधियों में भी सक्रिय नहीं होते। वे वैध सांस्कृतिक रुपों को भी समझने या उनक प्रशंसा करने में असमर्थ होते हैं। वे सांस्कृतिक तौर पर धमकाए जाते हैं अथवा अपमानित किए जाते हैं। अथवा वे संस्कृति के प्रति उदासीन रहते हैं।


 

संस्कृति के सम्मुखीन होने का अर्थ है अपनी चेतना के सम्मुखीन होना। यही वजह है कि मजदूरवर्ग के लोग संस्कृति से वंचित ही नहीं होते बल्कि वे जानते ही नहीं हैं कि वे वंचित हैं। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि मजदूरवर्ग के लोग संस्कृति की आकांक्षा तक से वंचित होते हैं। वे उसका मूल्य नहीं समझते, इस चीज को पहचान नहीं पाते कि उनका प्रेरक मूल्य कौन सा है। यही वह बुनियादी बिंदु है जिसके आधार पर पियरे बोर्दिओ ने '' सांस्कृतिक आवश्यकता'' (कल्चरल नीड्स)की धारणा पर जमकर हमला किया है। बोर्दिओ का मानना है कि ''सांस्कृतिक आवश्यकता'' हमारी स्कूली शिक्षा व्यवस्था पैदा करती है। इसी बुनियादी तत्व को केन्द्र में रखकर बोर्द्रिओ ने कहा है कि स्कूली शिक्षा व्यवस्था मजदूरवर्ग के हितों के खिलाफ काम कर रही है। स्कूली व्यवस्था हमारे समाज में व्याप्त असमानता को रेखांकित करने,उसे दूर करने में असमर्थ रही है। सामाजिक असमानता के जनतांत्रिक रेहटोरिक का हमने प्रचार ज्यादा किया है किंतु हमारी स्कूली व्यवस्था मूलत: मजदूरवर्ग विरोधी रही है। यही बात भारत के संदर्भ में भी लागू होती है। हमने अपनी स्कूली शिक्षा प्रणाली में धर्मनिरपेक्ष संस्कृति का जितना प्रचार किया है और उसका कोर्स बनाया है,बुनियादी तौर पर यह सारा प्रयास मजदूरवर्ग विरोधी है। मजदूरवर्ग के नजरिए से हमने स्कूल व्यवस्था को कभी देखने का प्रयास ही नहीं किया। जब एक बार हमने स्कूल व्यवस्था को सामाजिक असमानता के सामने बलि चढ़ा दिया तब बाकी सांस्कृतिक वैषम्य को दूर करना संभव ही नहीं होगा। ऐसे में संस्कृति को लेकर कमजोर समझ और सही समझ का भेद बना रहेगा।


 

सामाजिक सांस्कृतिक वैषम्य को दूर करने के पहले जरुरी है कि स्कूली शिक्षा को दुरुस्त किया जाय। उसे मजदूरवर्ग के नजरिए के अनुरुप तैयार किया जाय। तब ही सांस्कृतिक अंतरों को चुनौती दी जा सकती है,सांस्कृतिक बढ़त और पिछडेपन को समझा जा सकता है,उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। जो लोग पापुलर कल्चर के पक्ष में विभिन्न माध्यमों में आए दिन चालाकी और दिशाहीन ढ़ंग से हिमायत करते रहते हैं, वे ''संस्कृति पाने के लोकतांत्रिक अधिकार' से वंचित करने की प्रक्रियाओं की अनदेखी करते हैं। पापुलर कल्चर के पक्षधर यह तर्क देते हैं कि 'वे संस्कृति का जनतांत्रिकीकरण' कर रहे हैं। इस तर्क की बोर्द्रिओ ने तीखी आलोचना की है। बोर्द्रिओ ने सवाल किया है कि हमें सांस्कृतिक अभ्यासों की वैज्ञानिक अवधारणा का निर्माण करना चाहिए। जिससे उन परिस्थितियों को जान सकें कि आखिरकार किन परिस्थितियों में संस्कृति निर्मित होती है। इसके आधार पर ही संस्कृति के लोकतांत्रिकीकरण की यथार्थवादी और प्रभावशाली नीति निर्मित की जा सकती है। हमारे ज्यादातर संस्थानों की नीतियां मजदूरवर्ग विरोधी रही हैं। वे मजदूरवर्ग पर हमले करती रही हैं। हमारी कलादीर्घाओं, संग्रहालयों, सांस्कृतिक केन्द्रों में किस तरह के लोग आते हैं,ये वे लोग है जो पहले से ही सांस्कृतिक समर्थ हैं,ये मध्यवर्ग के लोग हैं। ये वे लोग हैं जो हमारी स्कूली व्यवस्था से आ रहे हैं,ये वे लोग हैं जो अलग से किसी खास सांस्कृतिक शिक्षा में तपकर नहीं आए हैं बल्कि सामान्य स्कूली शिक्षा ने ही इनके अंदर सांस्कृतिकबोध पैदा किया है। इसका अर्थ यह है कि स्कूली शिक्षा दीर्घकालिक सांस्कृतिकबोध निर्मित करती है। इससे एक बात सिध्द होती है कि स्कूली शिक्षा व्यवस्था की गतिविधियां हाशिए की गतिविधि नहीं है बल्कि केन्द्रीय गतिविधि है।
बोर्द्रिओ ने संस्कृति हासिल करने की प्रक्रिया के लोकतांत्रिकीकरण के सवालों ,आदर्श संस्कृति के सवालों आदि को उठाया है। यह वह संस्कृति है जो लोगों को आकर्षित करती रहती है। शिक्षा और राज्य के संस्थान संस्कृति के कल्ट को पैदा करने के केन्द्र बनकर रह गए हैं। ये उन्हीं लोगों को तैयार करते हैं जो संस्कृति में डूबे हुए हैं। संस्कृति के प्रति आस्थावान हैं। किंतु जिन लोगों के पास अब तक शिक्षा नहीं पहुँच पायी है और जिन्हें अब तक संस्कृति से वंचित रखा गया उन्हें कैसे शिक्षा और संस्कृति के करीब लाया जाय,इस ओर हमने अभी तक कोई प्रयास नहीं किया। किसी व्यक्ति को शिक्षित करने अर्थ यह नहीं है कि वह सांस्कृतिक तौर पर समर्थ बन गया है। शिक्षा स्वयं में सांस्कृतिक मूल्य पैदा नहीं करती। इससे सिर्फ इतना पता चलता है कि व्यक्ति शिक्षा में सफल रहा है।
वे ही लोग शिक्षा की सीमाओं का अतिक्रमण कर पाते हैं जो अकादमिक संस्कृति को आत्मसात् कर लेते हैं,जो अकादमिक संस्कृति के मुक्तिकामी संस्कारों को अपने अंदर समाहित कर लेते हैं। क्योंकि शिक्षा व्यवस्था में यही वह तत्व है जो गहराई में जाकर प्रभुत्वशाली वर्ग के मूल्यों को सहज ही आत्मसात करने के लिए तैयार करता है। आज अकादमिक जगत में अकादमिक अभ्यास और अकादमिक प्रतिवाद के बीच विवाद फैशन के रुप में दिखाई देता है। दूसरी ओर प्रामाणिक संस्कृति है जिसने अपने को स्कूल विमर्श से मुक्त कर लिया है। इसकी चंद सांस्कृतिक लोगों के लिए ही प्रासंगिकता रह गयी है। क्योंकि अकादमिक संस्कृति पर पूर्ण अधिकार ही स्कूल संस्कृति के परे जाने और पूरी तरह मुक्त संस्कृति को पाने की शर्त है।इसका अर्थ है कि संस्कृति को अकादमिक क्षेत्र के बाहर फेंक दिया गया है जबकि पहले संस्कृति को बुर्जुआजी और शिक्षा जगत सबसे ज्यादा मूल्यवान मानता था,उसे सम्मान देता था।
प्रामाणिक संस्कृति वह है जिसे हम संस्कृति का मुक्त क्षेत्र कहते हैं। जो स्कूल व्यवस्था में भी है और उसके परे भी जाती है। मसलन् ज्यों ही कोई नया सांस्कृतिक माल बाजार में आता है तो बुर्जुआजी उसे आत्मसात करने के लिए कहता है। यह वह माल है जो स्कूल व्यवस्था के बाहर है। मसलन् जॉज या सिनेमा है,ये शिक्षा के बाहर है और वैध सांस्कृतिक माल भी हैं। यह एक तरह की सांस्कृतिक वैधता भी प्रदान करता है। इन्हें वे लोग आत्मसात करते हैं जो वैध संस्कृति को आत्मसात करने की स्थिति में होते हैं। बोर्द्रिओ का मानना है कि सांस्कृतिक विषयों की प्रस्तुति और समाधान मूलत: व्यक्ति के निजी एटीट्यूट पर निर्भर करती है। इसे '' सांस्कृतिक अभ्यासों की चमत्कारिक विचारधारा'' की सैध्दान्तिकी के आधार पर ही हल किया जाता है। अभिजन का संस्कृति के साथ जिस तरह का रिश्ता होता है वही व्यवहार में फ्रांस में वर्चस्व बनाए हुए है। अभिजन का संस्कृति के प्रति नजरिया स्वाभाविक, अनारोपित, सांस्कृतिक रुपों का सहजजात प्रशंसक का दिखाई देता है। बोर्द्रिओ का मानना है कि अभिजन का नजरिया जिस तरह स्वाभाविक और सहजजात प्रशंसक का नजर आता है,वह वस्तुत: उसकी विशिष्ट सामाजिक अवस्था के कारण है। उच्चवर्गीय पारिवारिक जीवनशैली के कारण श्रेष्ठ संस्कृति को वह सहज ही आत्मसात कर लेता है। संस्कृति की अभिजन इसलिए प्रशंसा नहीं करता कि वह उसके लिए स्वाभाविक है,समझ में आती है। बल्कि उसका संस्कृति के साथ लंबा आंतरिक परिचय रहा है।


 

कलादीर्घाएं एक तरह से धार्मिक मंदिर के रुप में देखी जाती हैं। इनमें साइलेंस या चुप्पी को काफी महत्व दिया जाता है। वस्तुओं को स्पर्श न करने की हिदायत रहती है। ये परंपरागत कलादीर्घाएं संस्कृति की अभिजनवादी समझ को अभिव्यंजित करती हैं। अभिजन के अनुसार सौन्दर्यबोधीय अनुभव रहस्योद्धाटन के करीब होता है।इसे सच्ची प्रशंसा और समझ के आधार पर चंद लोग ही पा सकते हैं। संस्कृति को पाने वाले चंद अभिजन ही हो सकते हैं। बाकी सब इसके भक्त अथवा संस्कृतिधर्म के भक्त हो सकते हैं। सभी इस पवित्र संस्कृति के स्पर्श से रुपान्तरित कर सकते हैं,मुक्त कर सकते हैं।सभी राज्य के द्वारा चलायी जा रही सांस्कृतिक मुक्ति का आशीर्वाद पा सकते हैं।
इसके विपरीत बोर्द्रिओ ने नयी लोकतांत्रिक मुक्त कलादीर्घाओं की परिकल्पना पेश की। ये कलादीर्घाएं ज्यादा खुली ,स्वागत करने वाली और सहिष्णु हैं। साथ ही ये कला की शिक्षा देती हैं ,समझ बनाती हैं, और प्रशंसाभाव पैदा करने वाली हैं। क्योंकि परंपरागत कला दीर्घाएं सिध्दान्तत: कला की शिक्षा और समझ प्रदान नहीं करतीं।बल्कि ऐसा करने से इंकार करती हैं।



बुधवार, 8 अप्रैल 2015

पॉप म्यूज़िक

                                                पॉप म्यूजिक

पॉप म्यूज़िक या पॉप संगीत (यह शब्द मूलतः 'पॉप्यूलर' यानी "लोकप्रिय" शब्द से निकला है) को आमतौर पर युवाओं के बाजार के अनुकूल और व्यावसायिक तौर पर रिकॉर्ड किये गए संगीत के रूप में समझा जाता है; इसमें अपेक्षाकृत छोटे और साधारण गाने शामिल होते हैं और नवीन तकनीक का इस्तेमाल कर मौजूदा धुनों को नए तरीके से पेश किया जाता है। पॉप म्यूज़िक में लोकप्रिय संगीत के अधिकांश रूपों के प्रभाव को देखा जा सकता है, लेकिन एक शैली के तौर पर ये विशेष रूप से रॉक एंड रोल और रॉक स्टाइल के बाद के रूपों से संबंधित है।

हैच और मिलवर्ड ने पॉप म्यूज़िक को "एक ऐसे संगीत के तौर पर परिभाषित किया है जो लोकप्रिय, जैज़ और लोक संगीतों से भिन्न है।"[1] 
हालांकि पॉप म्यूज़िक को अक्सर सिंगल्स चार्ट्स की ओर अधिक झुका हुआ माना जाता रहा है, चार्ट संगीत में केवल पॉप म्यूज़िक ही नहीं बल्कि हमेशा से ही शास्त्रीय, जैज़, रॉक और नए गानों सहित विभिन्न स्रोतों के गाने भी समाहित होते रहे हैं जबकि एक शैली के तौर पर पॉप म्यूज़िक की उपस्थिति तथा विकास आमतौर पर अलग से ही होता रहा है।[2] 
इसलिए "पॉप म्यूज़िक" को एक अलग शैली के संगीत के तौर पर वर्णित किया जा सकता है जिसका केंद्र युवा बाजार होता है और जिसे अक्सर रॉक एंड रोल के एक सौम्य विकल्प के तौर पर देखा जाता है।[3]

पॉप म्यूज़िक की उत्पत्ति

"पॉप म्यूज़िक" शब्द को पहली बार 1926 में "लोकप्रिय अपील" वाले एक संगीत के तौर पर इस्तेमाल किया गया था।[4] हैच और मिलवर्ड के मुताबिक 1920 के दशक के रिकॉर्डिंग इतिहास में कंट्री, ब्लूज और हिलिबिली संगीत सहित ऐसी कई घटनाएं हैं जिन्हें आधुनिक पॉप म्यूज़िक उद्योग के जन्म के तौर पर देखा जाता है।[5]

ग्रोव म्यूज़िक ऑनलाइन के अनुसार "पॉप म्यूज़िक" शब्द की "उत्पत्ति 1950 के दशक के मध्य में रॉक एंड रोल और उससे प्रभावित होने वाली युवाओं की नई संगीत शैली के एक वर्णन के रूप में हुई थी। ..".[6] वहीं ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ऑफ म्यूज़िक में पॉप म्यूज़िक के बारे में लिखा गया है कि पहले इसे बड़ी संख्या में श्रोताओं को प्रभावित करने वाले कनसर्ट्स (संगीत समारोह) के तौर पर समझा जाता था। हालांकि 1950 के दशक के आखिर से पॉप को एक खास प्रकार के गैर-शास्त्रीय संगीत के रूप में जाना जाने लगा, आमतौर पर बीटल्स, द रोलिंग स्टोंस, आब्बा (ABBA) आदि जैसे कलाकारों द्वारा गाये गए गानों के रूप में."[7] ग्रोव म्यूज़िक ऑनलाइन ने यह भी लिखा है कि "1960 के दशक की शुरुआत में शाब्दिक तौर पर पॉप म्यूज़िक शब्द की तुलना इंग्लैंड के बीट संगीत से की जाती थी, जबकि अमेरिका में इसको 'रॉक एंड रोल'के समान समझा जाता था (जैसा कि अभी भी होता है)."[6]चैंबर्स डिक्शनरी में "पॉप आर्ट" शब्द के समकालीन इस्तेमाल का वर्णन किया गया है।[8] ग्रोव म्यूज़िक ऑनलाइन के अनुसार "ऐसा प्रतीत होता है कि पॉप म्यूज़िक शब्द की उत्पत्ति पॉप आर्ट तथा पॉप कल्चर शब्दों से हुई है और यह एक पूर्णतया नए और अक्सर अमेरिकी, मी़डिया-संस्कृति संबंधित उत्पादों को इंगित करता है।[6]


लगभग 1967 के बाद से रॉक संगीत की बजाय इस शब्द का अधिकाधिक उपयोग किया जाने लगा; इस विभाजन से दोनों ही शब्दों को सामान्य महत्व मिलने लगा.[9] जहां रॉक लोकप्रिय संगीत[9] की प्रमाणिकता और विस्तार की संभावनाओं की आकांक्षा करने लगा, वहीं पॉप ज्यादा व्यापारिक, सुलभ और सामयिक था।[10] साइमन फ्रिथ के मुताबिक पॉप म्यूज़िक को कला के तौर पर नहीं बल्कि एक उद्यम के तौर पर तैयार किया गया है, जिसे सभी को आकर्षित करने के लिए डिजाइन किया गया है और ये न तो किसी विशेष जगह से आता है या न ही ये किसी विशेष पसंद की पहचान बना. "कमाई और व्यावसायिक सफलता को छोड़कर इसकी कोई अन्य महत्वपूर्ण महत्वाकांक्षा नहीं है।.. और संगीतमय अर्थ में यह मूलतः रूढ़िवादी है". पॉप म्यूज़िक को काफी उन्नत तरीके से (इसे रिकॉर्ड कंपनियों, रेडियो प्रोग्रामर्स और कनसर्ट प्रोमोटर तैयार करते हैं) तैयार किया जाता है।.. पॉप म्यूज़िक खुद से बनाया जाने वाला संगीत नहीं है, बल्कि यह पेशेवरों द्वारा बनाया और तैयार किया गया संगीत है".[11]

पॉप म्यूज़िक का प्रभाव और विकास


अपने पूरे विकास के दौरान पॉप म्यूज़िक लोकप्रिय संगीत की अन्य अधिकांश शैलियों से प्रभावित होता रहा है। शुरुआती पॉप म्यूज़िक की शैली भावनात्मक बैले से प्रभावित रही है, इसमें स्वर मधुरता का जो इस्तेमाल होता है वो ईसाई कहानियों और सोल संगीत से लिया गया है, वाद्यसंगीत का इस्तेमाल जैज, कंट्री और रॉक संगीत से, वाद्यवृंदकरण शास्त्रीय संगीत से, ताल नृत्य संगीत से, इलेक्ट्रॉनिक संगीत से समर्थन, हिप-हॉप से संगीत लय और हाल ही में रैप शैली से शब्दों को ग्रहण किया है।

इसमें नवीन तकनीकों का भी इस्तेमाल किया गया है। 1940 के दशक में उन्नत डिजाइन के माइक्रोफोन से गाने की शैली और ज्यादा आत्मीय[12] हुई और फिर दस या बीस साल बाद सिंगल्स के रिकॉर्ड के लिए सस्ते और टिकाऊ 45 आरपीएम ने पॉप म्यूज़िक के विस्तार के तरीके में क्रांति ला दी और इससे पॉप म्यूज़िक को 'एक रिकॉर्ड/रेडियो/फिल्मस्टार सिस्टम' में तब्दील होने में मदद मिली.[12] 1950 के दशक के दौरान एक और बड़ा तकनीकी बदलाव बड़े पैमाने पर टेलीविजन की मौजूदगी थी जहां कार्यक्रमों के प्रसारण से पॉप कलाकार लोगों की नजर में आने लगे.[12] 1960 के दशक में सस्ते और छोटे ट्रांजिस्टर रेडियो के आने से युवाओं को घर के बाहर भी पॉप म्यूज़िक सुनने का मौका मिलने लगा.[12] 1960 के दशक से मल्टी-ट्रैक रिकॉर्डिंग और 1980 के दशक से डिजिटल सैंपलिंग को भी पॉप म्यूज़िक को सृजित करने और उसके विस्तार के तरीके के तौर पर इस्तेमाल किया गया।[3] 1980 के दशक की शुरुआत में एमटीवी (MTV) जैसे संगीत टीवी चैनलों के आने से पॉप म्यूज़िक का प्रचार संभव हुआ। इन चैनलों ने माइकल जैक्सन, मैडोना और प्रिंस जैसे अति प्रसिद्ध कलाकारों को काफी बढ़ावा दिया.[12]

पॉप म्यूज़िक पर अमेरिकी और (1960 के दशक के मध्य से) ब्रिटिश संगीत उद्योग का ही प्रभाव रहा है, इन्ही का असर रहा है कि पॉप म्यूज़िक एक अंतर्राष्ट्रीय मोनोकल्चर की तरह बन गया, लेकिन ज्यादातर क्षेत्रों और देशों में पॉप म्यूज़िक की अपनी शैली है, कई बार स्थानीय विशेषताओं के साथ भी उसे पेश किया जाता है।[13] इनमें से कुछ ट्रेंड्स (उदाहरण के लिए यूरोपॉप) ने इस शैली के विकास में काफी अहम भूमिका भी निभाई है।[3]

ग्रोव म्यूज़िक ऑनलाइन के मुताबिक "पश्चिम से प्राप्त पॉप शैली दुनिया भर में फैली, जिससे वैश्विक व्यापारिक संगीत संस्कृति में एक समानता बनी, चाहे वो स्थानीय शैलियों के साथ मिल गए हों या फिर कुछ हटकर अलग पहचान बनाई हो.[14] जापान जैसे कुछ गैर-पश्चिमी देशों में पश्चिमी स्टाइल को समर्पित फलते-फूलते पॉप म्यूज़िक उद्योग का विकास हुआ और इसने अमेरिका को छोड़कर हर जगह कई सालों तक बड़ी संख्या में संगीत तैयार किया।[14] पश्चिमी स्टाइल के पॉप म्यूज़िक का जो विस्तार हुआ है उसे मोटे तौर पर अमेरिकीकरण, सजातिकरण, आधुनिकीकरण, क्रियात्मक चोरी, सांस्कृतिक औपनिवेश और/या वैश्वीकरण की सामान्य प्रक्रिया की तरह परिभाषित किया जाने लगा.[14]


पॉप म्यूज़िक की विशेषताएं


संगीत-शास्त्री पॉप म्यूज़िक शैली की जिन विशेषताओं का उल्लेख करते हैं वे निम्न हैं :

पॉप म्यूज़िक का मकसद किसी विशेष उप-संस्कृति या आदर्शवादी श्रोता के बजाय सामान्य श्रोताओं को आकर्षित करना होता है[3]
औपचारिक आर्टिस्टिक गुणों से ज्यादा शिल्प कौशल पर जोर दिया जाता है[3]
लाइव परफॉर्मेंस की तुलना में रिकॉर्डिंग, प्रोडक्शन और तकनीकी पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है[10]
प्रगतिशील विकास से ज्यादा मौजूदा चलन को दिखाने की कोशिश होती है[10]
ज्यादातर पॉप म्यूज़िक नृत्य को प्रोत्साहित करने के लिए होता है, या इसमें ऐसे ताल और लय का इस्तेमाल होता है जो नृत्य को प्रोत्साहित करते हैं[10]
पॉप म्यूज़िक का मुख्य माध्यम गीत है, जो अक्सर दो से ढाई और तीन से साढ़े तीन मिनट लंबे होते हैं, जिसमें आमतौर पर समानरूप से और आकर्षित करने वाले लय, एक मुख्यधारा की शैली और एक सामान्य पारंपरिक संरचना होती हैं।[15] इस शैली के सामान्य प्रकारों की बात करें तो उनमें वर्स-कोरस फॉर्म और थर्टी-टू-बार फॉर्म शामिल है, जहां मधुर सुर और आकर्षित करने वाले हुक्स के साथ ही ऐसा कोरस भी होता है जो गाने की लय और ताल के साथ चल सके.[16] सीमित हार्मोनिक संगत के साथ ताल और मेलोडी साधारण ही होते हैं।[17] आमतौर पर आधुनिक पॉप म्यूज़िक के गाने सामान्य विषयवस्तु पर केंद्रित होते हैं, जो अक्सर प्यार और रोमानी रिश्ते हो सकते हैं, लेकिन इनके उल्लेखनीय अपवाद भी होते हैं।[3]

पॉप म्यूज़िक में जो सुरीलापन है वो अक्सर "शास्त्रीय यूरोपीय शैली की वजह से है, हालांकि वह और अधिक साधारण होता है।"[18] इसमें सामान्यतः बार्बरशॉप हार्मनी (अर्थात, सेकंडरी डॉमिनेंट हार्मनी से डॉमिनेंट हार्मनी तक जाना और उसके बाद टॉनिक तक जाना) तथा ब्लूज स्केल-प्रभावित हार्मनी शामिल होती हैं।[19] "1950 के दशक के बाद से सर्किल-ऑफ-फिफ्थ्स पैराडाइम के प्रभाव में कमी आई है। रॉक एंड सोल की लयबद्ध भाषायें सबसे प्रभावी क्रिया के संपूर्ण प्रभाव से दूर जाने लगी है।.. कुछ अन्य चलन भी हैं (जिन्हें संभवतः एक कम्पोजिंग उपकरण के रूप में गिटार के इस्तेमाल में देखा जा सकता है) -- जैसे पेडल-पॉइंट हार्मनी, डाईटोनिक स्टेप द्वारा रूट मोशन, मोडल हार्मोनिक तथा मेलोडिक ऑर्गनाइजेशन - जो फंक्शनल टोनेलिटी से परे एक ऐसे टोनल भाव को इंगित करते हैं जो कम दिशापरक तथा मुक्त रूप से प्रवाहित होता प्रतीत होता है।[20]
टिप्पणियां---
1.      डी. हैच और एस. मिल्वार्डफ्रॉम ब्लूज़ टू रॉक: एन एनलिटिकल हिस्ट्री ऑफ पॉप म्यूज़िक, मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी प्रेस, 1987), आईएसबीएन 0719014891, पी. 1.
2.      आर. सर्ज डेनिसोफ़ और विलियम एल. स्चुर्कटार्निश्ड गोल्ड: दी रिकार्ड इंडस्ट्री रिविजिटेड (नई ब्राउनश्विक, न्यूजर्सी: ट्रांसैक्शन प्रकाशक, तीसरा संस्करण, 1986), आईएसबीएन 0887386180, पीपी. 2-3.
3.      "स्टार प्रोफाइल" इन एस. फ्रिथ, डब्ल्यू स्ट्रे और जे. स्ट्रीटदी कैम्ब्रिज कम्पेनियन टू पॉप एंड रॉक (कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय प्रेस, 2001), आईएसबीएन 0-521-55660-0, पीपी. 199-200.
4.      जे. सिम्पसन और ई. वेनरऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी (ऑक्सफोर्ड: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1989), आईएसबीएन 0198611862, सीएफ पॉप.
5.      डी. हैच और एस. मिल्वार्डफ्रॉम ब्लूज़ टू रॉक: एन एनलिटिकल हिस्ट्री ऑफ पॉप म्यूज़िक, आईएसबीएन 0719014891, पी. 49.
6.      आर. मिड्लटन, एट ऑल"पॉप"ग्रोव म्यूज़िक ऑनलाइन, 14 मार्च 2010 को प्राप्त किया गया। 
7.      "पॉप"[1] दी ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ऑफ म्यूज़िक, 9 मार्च 2010 को प्राप्त किया गया।
8.      ए.एम. मैकडोनाल्ड, एड., चेम्बर्स ट्वेंटीएथ सेंचुरी डिक्शनरी (एडिनबर्ग: चेम्बर्स हेरेप, 1977), आईएसबीएन 0550102310, सीएफ. पॉप.
9.      दी ऑक्सफोर्ड कम्पेनियन टू म्यूज़िक में केनेथ ग्लोएग, (ऑक्सफोर्ड: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2001), आईएसबीएन 0198662122, पी. 983.
10.   टी. वार्नरपॉप म्यूज़िक: टेक्नोलॉजी एंड क्रिएटिविटी: ट्रेवर हॉर्न एंड दी डिजिटल रिवल्यूशन(एल्डरशोट: एश्गेट, 2003), आईएसबीएन 075463132X, पीपी. 3-4.
11.   एस. फ्रिथ, "पॉप म्यूज़िक", इन एस. फ्रिथ, डब्ल्यू. स्ट्रॉ और जे. स्ट्रीट, एड्सदी कैम्ब्रिज कम्पेनियन टू पॉप एंड रॉक (कैम्ब्रिज: कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस), आईएसबीएन 0-521-55660-0, पीपी. 95-6.
12.   डी. बकले, "पॉप" "II. इम्पलीकेशन्स ऑफ टेक्नोलॉजी"ग्रोव म्यूज़िक ऑनलाइन, 15 मार्च 2010 को प्राप्त किया गया।
13.   जे. कुनऑडियोटोपिया: म्यूज़िक, रेस, एंड अमेरिका (बर्कली, सीए: कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय प्रेस, 2005), आईएसबीएन 0520244249, पी. 201.
14.   पी. मैनुअल, "पॉप. नॉन-वेस्टर्न कल्चर्स 1. ग्लोबल डिसेमनैशन"ग्रोव म्यूज़िक ऑनलाइन, 14 मार्च 2010 को प्राप्त किया गया।
15.   डब्ल्यू एवरेटएक्सप्रेशन इन पॉप-रॉक म्यूज़िक: ए कलेक्शन ऑफ क्रिटिकल एंड एनलिटिकल एसेज़, (लंदन: टेलर एंड फ्रांसिस, 2000), पी. 272.1.   
16  जे. शेफर्डकन्टिन्युअम एन्सिक्लोपीडिया ऑफ पॉपुलर म्यूज़िक ऑफ दी वर्ल्ड" परफोर्मेंस एंड प्रोडक्शन(कन्टिन्युअम, 2003), पी. 508.
17      वी. क्रामर्ज़दी पॉप फॉर्मूलाज़: हार्मोनिक टूल्स ऑफ दी हिट मेकर्स (मेल बे प्रकाशन, 2007), पी. 61.
18.      विनक्लर, पीटर (1978). "टूवार्ड ए थ्योरी ऑफ पॉप हार्मोनी"इन थ्योरी ओन्ली, 4, पीपी. 3-26.
19      सर्गेंट, पी. 198. विनक्लर में उद्धृत (1978), पी. 4.
20     विनक्लर (1978), पी. 22.




संदर्भग्रन्थ[संपादित करें]
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