धरती की सारी बोली जो बची सै तो आपणी संस्कृति अर आपणी ज़बान के कारण बची
सै। बची के सै आगे बढ़ी सै तो जबे बढ़ी सै जब उस बोली में जीणा-खाणा, मरणा, ओढ़णा-पहरणा
बचया रहया हो। जुणसे माणसा नै आपणी बोली छोड्डी सै, उनकी बोली बी मरगी सै। अर
जुणसे माणस आपणी बोली तै प्यार नी करते वै तै सबतै पहल्या आपणी मादरी ज़बान नै
मारै सै। अर आपणा मां-भासा नै मारण तै भूंडा ओर के हो सकै सै।
अर या बात बी किसे नै सही कही सै अक सीखण नै तो कितना-ए सीख ल्यो, अर
कितनी-ए भासा सीख ल्यो। पर आपणी धरती तै दूर नहीं जाणा चहिए माणस नै। घणे माणसा कै
तो यो बी बहम रै सै अक हरयाणवी मैं राग-रागिणी अर बोलण-चालण तक तो ठीक सै पर इस
मैं भविष्य कोनी बण सकता, अर ना हरयाणवी बोलण आळे माणस की कदर सै। जब माणस आपणी
नज़र मैं, आपणी बोली की कदर नी करता हो, तो दूसरे नै के पड़ी सै। या बात तो सही सै
अक किसे बी बोली की इस तै बढ़िया बात नी हो सकती, जो माणस नै उसमैं दो टैम की रोटी
बी मिलण लाग ज्या या आपणी बोली मैं वो इंजीनियर बण ज्यां डाक्टर बण ज्यां। यो टैम
बी आवैगा। अर जरूर आवैगा। टैम लाग सकै सै। वा-ए बात सै अक देर सै अंधेर कोनी।
पहल्या मन्नै सोची थी अक यो पेपर मैं हिंदी मैं लिखूं। पर जब लिखण लाग ग्या
तो भीत्तर तै आवाज़ आई अक हरयाणवी मैं क्यूं नी लिखता। जब हाम इसे पेपर बी लिखण
लाग्गैंगे जबे तो कुछ बात बणैगी। बात तो बणते-बणते बण्या करै। इब ताही हाम आपणी
बोली नै बस बोलते आए थे। इब तही हाम नै ना तो समार कै लिखण की आदत पड़ी सै अर ना
लिखी होई हरयाणवी नै पढ़ण की आदत पड़ी सै। पर शुरूवात तो होए गई। या तो बात होगी
बोली अर उसके भविष्य की। इब बात करै सै काम की।
जमाना सै तकनीक का अर तकनीक तै मुंह फेरे कै किसे का काम नहीं चाल्या आज
तही अर ना चालै। अर जिसनै हाम संस्कृति कहवै सै। वैं कदे भी कोरी भूंडी अर सुथरी
नी होया करदी। उसमैं दोनूं बात सदा तै होती आई सै अर सदा रहवैंगी। अर धरती की सारी
संस्कृतियां अर बोलियां आपस मैं बाहण की तरिया हो सै। कदे आपस मैं मिलैंगी बी अर
कदे लड़ैंगी बी। इब यो माणस-माणस पै सै अक वो के सीखै सै। आच्छा सीखै सै अक भूंडा
सीखै सै। दूसरी बात या सै अक यो बी नी करणा चहिए अक आपणा तै सब कुछ बढ़िया अर
दूसरे का सब कुछ घटिया। ऊं बी हरयाणे मैं कहावत सै अक आपणी लास्सी नै कोए नी खांटी
बताता। बस या आदत छोड्डे पाछै देखोगे तो सीखण नै बहोत कुछ मिलैगा। सीखण आले माणस
नै सारी जगाह तै सीखण नै मिलै सै।
किसे बी संस्कृति की आत्मा हो सै उसकी ज़बान जिसनै हाम भासा या बोली कहवै।
भासा या बोली जितनी बढ़ैगी संस्कृति उसकी गेल बढ़ती चली जागी। हरयाणा सरकारों नै
बोली खात्तर जितना काम करै उसतै फालतू काम लोग आपणे आप करण लाग रे सै। यो हो सै
असली प्यार आपणी मां-बोली तै। अर यो काम माणस बिदेसी धरती पै जाकै करै तो इस तै
कसूत्ती बात कोए नी हो सकती। इसे काम करण आळी टीम अर माणसा तै आपनै मिलवाऊंगा।
जुणसे बिदेसी धरती पै हरयाणवी के दूत बणकै काम करण लाग रे सै। वा टीम सै-रोडियो
कसूत। बिदेसी धरती का नाम सै आस्ट्रेलिया। जड़े तै चाल्लै सै रडियो कसूत। इबै तो
एप पै चालण लाग रहया सै। इसका स्टूडियो सै मेलबर्न अर ब्रिसबेन(आस्ट्रेलिया),
यूके(इंग्लैड), हिसार(भारत) अर न्यूजीलैंड मैं।
टीम सै- अरूण मलिक, मनु पराशर, जोगिंद्र बराक, भगत, रितु, सुशील, रवी, पवन
दहिया, पवन टोकस, विनय सेहरावत, सोनिया दहिया, नीतू मलिक, राहुल और मनीष।
जब यै इतना बढ़िया काम करते हो अर कोए अख़बार आळा जब न्यू लिखै अक 'आस्ट्रेलिया से हरियाणवी संस्कृति को
बचाने की मुहिम' इसका मतलब यो होवै अक म्हारी संस्कृति मरण
लाग री हो। जो भासा अर संस्कृति माणस-माणस के भीतर हो वा न्यूए मर ज्यागी के। यो
खामखां का डर सै अक मर ज्यागी। उस दन मर ज्यागी जब हाम बोलणा-रोणा, खाणा-पीणा आपणा
बाणा छोड़ देंगे। पर इसा कदे होता नी लागता मन्नै। बचाने की मुहिम तै बढ़िया तो
न्यू कहणा चहिए अक आपणी संस्कृति नै फैलाण लाग रे। हरयाणवी इब हरयाणा के गाम-राम
मैं तै आग्गै लिकड़ कै इंटरनेट के जरिए सारे देसा मैं फैलण-पसरण लाग री सै। यो
इंटरनेट ही सै जो म्हारी भासा नै दुनिया तै मिलवावैगा अर मिलवाण लाग रया सै।
पाकिस्तान आळे तो घणे राजी होकै म्हारी भासा गेल जुड़न लाग रे सै। नेता बेसक तै
हामनै तोड़ते हो म्हारी बोली/भासा तो जोड़न का काम करण लाग
री सै। देखण मैं ये छोटे-छोटे काम लागते हो पर सारे काम मिल कै बड़ा काम करैंगे।
रेडियो कसूत[i] अर उनकी
टीम नै या धारणा बी तोड़ दी कर बिदेस मैं जाका माणस बदल ज्या सै। धरती तै जुड़े
होए माणस कदे नी बदल्या करते। बदलण आळे तो थोथे माणस हो सै। एक रेडियो कसुत नै
सारे देसा मैं बैठे हरयाणवी अर हरियाणवी नै पसंद करण आले सब एक जगाह जोड़ दिए। अर
जब इतने माणस एक जगह जुड़ रे हो तो इस बरगी के ठाढ हो सै। या ठाढ बणाई सै हरयाणे
के छोरे अर छोरियो नै। जुणसे आपस मैं जाणै नहीं थे। सबकी सांझली बस एक बात थी वा
थी हरयाणवी। बस फेर के था जुड़ते चले गए। खुद जुड़ते गए अब जोड़ते जाण लाग रे सै।
सारे मिलकै मनोरंजन बी करैंगे अर ज्ञान की बात बी करैंगे। ज्यूकर बड़े-बूढया धोरै
बैठ कै सदा तै सीखते आए सै। बड़े-बूडया का ज्ञान एक जगाह तै सब धौरै जाया करैगा।
जुकर पहल्या रामफल दिया करता रोहतक रेडियो पै। यै आज के टैम के रामफल सै।मनोरंजन
अर ज्ञान दोनूं कट्ठे हो तो इस बढ़िया बात नी हो सकती।अर
ज्ञान किसे भासा का मोहताज नी होया करता अर सीखण-बतलाण आळी भासा दूसरी भाषा
तै बी सीखती रही सै। इब अंगरेजी का टोरा जिननै लाग्गै सै। उनका तै कुछ नी हो सकता।
ज्ञान के मामले में फूको का घणा बड़ा नाम सै। अर दुनिया भर मैं नाम सै। उसनै एक
बात कही अक ज्ञान सत्ता और पावर का खेल सै। याए बात हाम बचपन तै सुणते आए सै अक
हांगे अर ठाढ का सारा रोळा सै। पर इसे बात नै अंगरेजी में कहोगे तो ज्ञानी कहवैंगे
अर हरयाणवी मैं कहवैंगे तो इसनै कहावत कहवैंगे। बात दोनू बराबर सै।
रेडियो कसूत और उसकी टीम
रेडियो कसूत-" रेडियो कसूत हरियाणवी सभ्यता, हरियाणवी संगीत, हरियाणवी
बोली के साथ साथ हरियाणवी कला, इंटरव्यूज, सामान्य ज्ञान और संस्कृति का मंच है जो इन सबनै एक साथ जोडकै सबनै एक साथ
लेकै चाल सकै है ! सम्भावना बहोत घणी है ! एक बै सुण कै तो देखो !"[ii]
गूगल प्ले एप पै तै यो
डाउनलोड करया जा सकै सै।[iii]
जै फोन एंडरायड सै तो। अर जै एप्पल के ले रे सो तो[iv]
और जो यू-टयूब पै इसके वीडियो देखणे हो तो[v]
सोशल मीडिया पर फेसबुक पेज[vi]
से लेकर वेबसाइट, ई-मेल आई डी[vii]
लाइव चैट आदि सभी माध्यमों पर रेडियो कसुत की टीम अपनी दस्तक दे रही है और
हरियाणवी के विकास में निर्णायक भूमिका निभा रही है।
रेडियो कसूत की टीम ने मेल के माध्यम से अपने विचार साझा किए-"हरियाणा के कल्चर को सिर्फ
एग्रीकल्चर तक सीमित समझने वाले लोग शायद अब सोचने पर मजबूर हो जाएंगे क्योंकि
आधुनिक काल के कंधे से कन्धा मिला के चलते हुए हरियाणा के कुछ साथी कड़ी मेहनत से हरयाणवी
सभ्यता और संस्कृति को बचाने की मुहीम में लगे हुए है। जिसके चलते उमरा गाव के अरुण मालिक ने रेडियो
कसूत एप्प को बनाया जिसकी मदद से पूरी दुनिया में हरयाणवी बोली की गूँज सुनी जा
सकती है और दुनिया के किसी कोने में भी हरयाणा के लोग अपनी माटी की खुशबू से जुड़े
रह सकते है। अरुन पेशे से सॉफ्टवेर
इंजीनियर है और जब वह अपने गाव से ऑट्रेलिया का सफर तय करके ब्रिस्बेन पहुचे तो
उन्हें गानो की बहुत कमी खिली और बस जभी
उन्होंने ठान लिया की कुछ ऐसा करना चाहिए जिस से वह खुद और सभी हरियाणा वासी
हरयाणवी गांव व रागनी का आनंद उठा सके तो उन्होंने रेडियो कसूत की एप्प बना
डाली। दिलचस्पी की बात यह है की इस एप्प
के बनते ही जन समूह का जो प्यार और
प्रोत्साहन उमड़ा वह सराहनीय था। गौरतलब है की रेडियो कसूत के स्टूडियो अब तक चार
अलग अलग देशो में स्थित हो चुके है और रेडियो के श्रोताओ की तादाद दिन पर दिन बढ़
रही है। चार देश जहा से कार्येक्रम
प्रसारित हो रहे है वह देश है ऑस्ट्रेलिया , भारत ,
न्यूज़ीलैण्ड और यूनाइटेड किंगडम जबकि रेडियो का सर्वर ऑस्ट्रेलिया
में लगाया गया है ।"[viii]
अरूण मलिक[ix]--रेडियो कसूत एप को बनाने वाले इंजीनियर अरूण मलिक।
पेशे से इंजीनियर है। उमरा गांव के निवासी हैं।
मनु पराशर[x] -- मनु पाराशर जो कि मेलबोर्न सिटी कॉउंसिल में कार्यरत्त
है और शुरुआत से रेडियो कसूत से जुड़े हुए है ।
रेडियो कसूत में मीडिया संचालन संबंधी सभी कार्यो में अपने अनुभव से अपना
योगदान देते हुए दिशा निर्देशन का काम कर रहे है।
जोगिंद्र बराक[xi]-- जोगिन्दर बड़क जो ब्रिस्बेन के एक सफल बिजनेसमैन है वह
अपना सहयोग भी बढ़ चढ़ कर दे रहे है।
जोगिन्दर अपनी प्रेरक सोच के जरिये
रेडियो की वर्तमान व् भविष्य की कार्येप्रणाली पर काम करते हुए टीम में एक
अहम् भूमिका में नज़र आते है। जोगिन्दर सनपेड़ा गाव, जिला सोनीपत निवासी है ।
भगत-- भगत खटकड़ जो की अरुण
के साथ ब्रिस्बेन में रहते है उनका देश और
हरियाणा से प्रेम उन्हें रेडियो कसूत की तरफ खींच लाया। रेडियो में वह सहायक
कलाकार के रूप में कई वीडियो में देखे जा सकते है व् साथ ही भगत और अरुण लाइव
प्रोग्राम भी करते है।
रितु -
रेडियो कसुत टीम में आर्ट एवं क्रिएटिव सर्विस के जरिए सहयोग कर रही है।
सुशील-- सुशील कुमार जो की
मेलबोर्न में रहते है व् हर हफ्ते रेडियो पर लाइव प्रोग्राम करते है , रेडियो पर सुशिल का कार्येक्रम ख़ास तोर पर हँसी-मजाक पर होता है जो की अपने
श्रोताओ को ठहाके लगाने पर मजबूर कर देते है।
इस कार्येक्रम की शुरुआत करने वाले खुद सुशिल ही है जिनका मकसद है की आज की
भाग दौड़ वाली जिंदगी में हमें हँसने को महत्व देना चाहिए।
रवि[xii] -- रवि माथुर जो की न्यूज़ीलैण्ड में रहकर रेडियो के प्रचार
के लिए काम कर रहे है व् साथ साथ रेडियो कसूत के सोशल अकाउंट संभाल रहे है| रवि पूरी दुनिया में रेडियो कसूत के
व्हाट्सएप्प ग्रुप संभाल रहे है
पवन दहिया-- पवन
दहिया जो की दिल्ली पुलिस में कार्यरत्त है भी रेडियो में अहम भूमिका अदा कर रहे
है, भारत में फील्ड से सबंधित काम इन्ही ने
संभाला हुआ है एवं अपने व्यस्त रहने के बावजूद कड़ी मेहनत कर रहे है। इनकी हँसी भरी बातो की वजह से यह अपनी टीम के
बीच काफी चर्चित है।
पवन टोकस -- पवन
टोकस जो की दिल्ली के मुनिरका गाँव में रहते है और पेशे से सॉफ्टवेर इंजीनियर है।
मैनेजमेंट में अपने लंबे अनुभव के जरिये रेडियो के लिए तत्पर काम कर रहे है
विनय सेहरावत-- विनय
सेहरावत भी दिल्ली पुलिस में अपनी सेवा दे रहे है व् साथ ही साथ रेडियो कसूत में
सोशल मीडिया एनालिस्ट का कार्येभार संभाले हुए है और इस काम में उनका साथ देती है
उनकी धर्म पत्नी सोनिया सेहरावत। रेडियो में
विनय और सोनिया की कार्येप्रणाली व्
तालमेल देखते ही बनती है। सोनिया
पेशे से हिंदी की अध्यापिका है जो कि रेडियो के लिए काम करने के साथ साथ हमारे देश
के भविष्य को सही दिशा की और ले जाने में अपना योगदान भी दे रही है।
सोनिया दहिया- सोनिया
राणा यूके के इंग्लैंड में स्तिथ रहकर रेडियो अलग अलग कार्येक्रमो में लगातार अपना
सहयोग दे रही है। सोनिया एक लंबे समय से
हरियाणा की लोक संस्कृति से जुडी हुई है और अब अपने अनुभव से रेडियो कसूत की कार्येप्रणाली में चार चाँद लगाने का काम कर
रही है
नीतू मलिक-- नीतू सिंह मलिक सुहाग
जो ब्रिस्बेन में रहती है और ऑस्ट्रेलिया में हुए नमस्ते वर्ल्ड कार्येक्रम में
हरियाणा का प्रतिनिधित्व कर चुकी है। नीतू एक राष्ट्रीय और आल इंडिया इंटर
यूनिवर्सिटी स्पोर्ट्स लेवल खिलाडी भी रह
चुकी है और अब रेडियो कसूत के जरिये हरयाणवी बोली का प्रचार कर रही है व् रेडियो
के विभिन्न प्रकार के कार्यो में सहायक का काम बखूबी निभा रही है।
राहुल- राहुल जो हरियाणा में
स्तिथ है , इनकी जिम्मेवारी
सोशल मीडिया को संभालने की व् साथ ही रेडियो के प्रचार की है। राहुल एक छात्र है और पढाई के साथ साथ रेडियो
कसूत में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे है
हरविंदर ढांडा भी हरियाणा में रहकर रेडियो के प्रचार व् साथ ही सोशल
मीडिया संबंधी कार्यो में अपना योगदान दे रहे है।
सभी सदस्य अलग अलग क्षेत्र से है और एक साथ मिलजुलकर सिर्फ एक मकसद के लिए
काम कर रहे है जो हरयाणवी संस्कृति को संजोए रखने का है जो आज लुप्त होने की कगार पर
है।
आजकल फेसबुक पेज और रेडियो के जरए मेरी बेटी प्रोग्राम और
प्रतियोगिता शुरू की हुई है, जिसका मुख्य उद्देश्य है हरयाणा में बेटियों के प्रति
जागरूकता फैलाना और भ्रूण हत्या को खत्म करना। बेटा-बेटी के भेदभाव को मिटाकर एक
बेहतर समाज की नींव रखने में रेडियो कसूत टीम अपनी भूमिका निभा रही है।
१. रेडियो कसूत के माध्यम से हरयाणवी बोली को हरयाणा और आस पास के प्रदेशो
में घर घर तक पहुँचाना
२. जल्दी ही हरयाणा सरकार से मिलकर रेडियो की फ्रीक्वेंसी लेना
३. अगले एक साल तक लाइव रेडियो के साथ साथ पेर्सोनालिसेड रेडियो भी शुरू
करना
४. हरयाणवी संस्कृति से जुड़े प्रोग्राम रेडियो के द्वारा लाइव प्रस्तुत
करना
५. देश विदेश में जहाँ हरयाणा के लोग है, समय समय पर सांस्कृतिक प्रोग्राम करना
निष्कर्ष- अतः रेडियो कसूत की पूरी टीम हरियाणवी संस्कृति और भाषा के प्रचार-प्रसार
को देश-विदेश दोनों जगह समृद्ध करती हुई विश्वपटल पर और इंटरनेट के माध्यम से उस
स्पेस में जगह बना रही है। जहां हरियाणवी को लेकर अनेक तरह के पूर्वग्रह से ग्रस्त
लोग मौजूद है। यहां इस नए प्लेटफार्म पर हरियाणवी का विकास तो होगा ही साथ में इस
तरह की नकारात्मक धारणाओं को तोड़ने में भी सहायक होगा। इस तरह के प्रयासों से यह
कहा जा सकता है कि हरियाणवी का आने वाला भविष्य आर्थिक तौर पर भी समृद्ध होगा। कोई
भी भाषा अपने आर्थिक तंत्र के बिना ज्यादा लंबे समय तक जीवित नहीं रह पाती। उसे
बदलते समाज और तकनीक के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना पड़ता है। आज हरियाणवी भी
अपने आप को जकड़बंदियों से मुक्त करके आगे बढ़ रही है और धारणाओं को तोड़ रही है
साथ में बदल भी रही है। यह बदलाव हरियाणवी जनता और बाहर दोनों तरफ हो रहे हैं।
इसलिए हरियाणवी की भविष्य ओर बेहतर लग रहा है, क्योंकि बदलाव बाहर और भीतर दोनों
तरफ हो रहे हैं। इस बदलाव में रेडियो कसूत की भूमिका काफी निर्णायक है और होगी।
भाषा और संस्कृति के लिए यह एक अमूल्य योगदान है।