बुधवार, 27 जुलाई 2016

रंगमंच और पारंपरिक कलाएं

भारतीय समाज में पारंपरिकता का विशेष स्‍थान है । परंपरा एक सहज प्रवाह है । निश्‍चय ही, पारंपरिक कलाएं समाज की जिजीविषा, संकल्‍पना, भावना, संवेदना तथा ऐतिहासिकता को अभिव्‍यक्‍त करती हैं । नाटक अपने आप में संपूर्ण विधा है, जिसमें अभिनय, संवाद, कविता, संगीत इत्‍यादि एक साथ उपस्थित रहते हैं । परंपरा में नाटक्‍ एक कला की तरह है । लोकजीवन में गेयता एक प्रमुख तत्‍व है । सभी पारंपरिक भारतीय नाट्यशैलियों में गायन की प्रमुखता है । यह जातीय संवेदना का प्रकटीकरण है ।

पारंपरिक रूप से लोक की भाषा में सृजनात्‍मकता सूत्रबद्ध रूप में या शास्‍त्रीय तरीके से नहीं, अपितु बिखरे, छितराये, दैनिक जीवन की आवश्‍यकताओं के अनुरूप होती है । जीवन के सघन अनुभवों से जो सहज लय उत्‍पन्‍न होती है, वही अंतत: लोकनाटक बन जाती है । उसमें दु:ख, सुख, हताशा, घृणा, प्रेम आदि मानवीय प्रसंग आते हैं ।

भारत के विभिन्‍न क्षेत्रों में तीज-त्‍यौहार, मेले, समारोह, अनुष्‍ठान, पूजा-अर्चना आदि होते रहते हैं, उन अवसरों पर ये प्रस्‍तुतियां भी होती हैं । इसलिए इनमें जनता का सामाजिक दृष्टिकोण प्रकट होता है । इस सामाजिकता में गहरी वैयक्तिकता भी     होती है ।

पारंपरिक नाट्य में लोकरुचि के अलावा क्‍लासिक तत्‍त्‍व भी उपस्थित होते हैं, लेकिन क्‍लासिक अंदाज़ अने क्षेत्रीय, स्‍थानीय एवं लोरूप में होते हैं । संस्‍कृत रंगमंच के निष्क्रिय होने पर उससे जुड़े लोग प्रदेशों में जांकर वहां के रंगकर्म से जुड़े होंगे । इस प्रकार लेन-देन की प्रक्रिया अनेक रूपों में संभव हुई । वस्‍तुत: इसके कई स्‍तर थे- लिखित, मौखिक, शास्‍त्रीय-तात्‍कालिक, राष्‍ट्रीय- स्‍थानीय ।

विभिन्‍न पारंपरिक नाट्यों में प्रवेश-नृत्‍य, कथन नृत्‍य और दृश्‍य नृत्‍य की प्रस्‍तुति किसी न किसी रूप में होती है । दृश्‍य नृत्‍य का श्रेष्‍ठ उदाहरण बिदापत नाच नामक नाट्य शैली में भी मिलता है । इसकी महत्‍ता किसी प्रकार के कलात्‍मक सौंदर्य में नहीं, अपितु नाट्य में है तथा नृत्‍य के दृश्‍य पक्ष की स्‍थापना करने में है । कथन नृत्‍य पारंपरिक नाट्य का आधार है । इसका अच्‍छा उपयोग गुजरात की भवाई में देखने को मिलता है । इसमें पदक्षेप की क्षिप्र अथवा मंथर गति से कथन की पुष्टि होती है । प्रवेश नृत्‍य का उदाहरण है- कश्‍मीर का भांडजश्‍न नृत्‍य । प्रत्‍येक पात्र की गति और चलने की भंगिमा उसके चरित्र को व्‍यक्‍त करती है । कुटियाट्टम तथा अंकिआनाट में प्रेवश नृत्‍य जटिल तथा कलात्‍मक होते हैं । दोनों ही लोकनाट्य शै‍लियों में गति व भंगिमा से स्‍वभावगत वैशिष्‍ट्य को दर्शक तक पहुँचाते हैं ।

पारंपरिक नाट्य में परंपरागत निर्देशों तथा तुरंत उत्‍पन्‍न मति को मिश्रण होता है । परंपरागत निर्देशों का पालन गंभीर प्रसंगों पर होता है, लेकिन समसामयिक प्रसंगों में अभिनेता या अभिनेत्री अपनी आवश्‍यकता से भी संवाद की सृष्टि कर लेता है । भिखारी ठाकुर के बिदेसियामें ये दोनों स्‍तर पर कार्य करते हैं ।

.पारंपरिक नाट्यों में कुछ विशिष्‍ट प्रदर्शन रुढियां होती हैं । ये रंगमंच के रूप, आकार तथा अन्‍य परिस्थितियों से जन्‍म लेती हैं । पात्रों के प्रवेश तथा प्रस्‍थान का कोई औपचारिक रूप नहीं होता । नाटकीय स्थिति के अनुसार बिना किसी भूमिका के पात्र रंगमंच पर आकर अपनी प्रस्‍तुति करते हैं । किसी प्रसंग और खास दृश्‍य के पात्रों के एक साथ रंगमंच को छोड़कर चले जाने अथवा पीछे हटकर बैठ जाने से नाटक में दृश्‍यांतर बता दिया जाता है ।
पारंपरिक नाट्यों में सुसंबद्ध दृश्‍यों के बदले नाटकीय व्‍यापार की पूर्ण इकाइयां होती हैं । इसका गठन बहुत शिथिल होता है, इसलिए नए-नए प्रसंग जोड़ते हुए कथा-विस्‍तार के लिए काफी संभावना रहती है । अभिनेताओं तथा दर्शकों के बीच संप्रेषण सीधा व सरल होता है ।

नाट्य परंपरा पर औद्योगिक सभ्‍यता, औद्यो‍गीकरण तथा नगरीकरण का असर भी पड़ा है । इसकी सामाजिक-सांस्‍कृतिक पड़ताल करनी चाहिए । कानपुर शहर नौटंकी का प्रमुख केन्‍द्र बन गया था । नर्तकों, अभिनेताओं, गायकों इत्‍यादि ने इस स्थिति का उपयोग कर स्‍थानीय रूप को प्रमुखता से उभारा ।पारंपरिक नाट्य की विशिष्‍टता उसकी सहजता है । आखिर क्‍या बात है कि शताब्दियों से पारंपरिक नाट्य जीवित रहने तथा सादगी बनाए रखने में समर्थ सिद्ध हुए हैं ? सच तो यह है कि दर्शक जितना शीघ्र, सीधा, वास्‍तविक तथा लयपूर्ण संबंध पारंपरिक नाट्य से स्‍थापित कर पाता है, उतना अन्‍य कला रूपों से नहीं । दर्शकों की ताली, वाह-वाही उनके संबंध को दर्शाती है ।

वस्‍तुत: पारंपरिक नाट्यशैलियों का विकास ऐसी स्‍थानीय या क्षेत्रीय विशिष्‍टता के आधार पर हुआ, जो सामाजिक, आर्थिक स्‍तरबद्धता की सीमाओं से बँधी हुई नहीं थीं । पारंपरिक कलाओं ने शास्‍त्रीय कलाओं को प्रभावित किया, साथ ही, शास्‍त्रीय कलाओं ने पारंपरिक कलाओं को प्रभावित किया । यह एक सांस्‍कृतिक अन्‍तर्यात्रा है ।

पारंपरिक लोकनाट्यों में स्थितियों में प्रभावोत्‍पादकता उत्‍पन्‍न करने के लिए पात्र मंच पर अपनी जगह बदलते रहते हैं । इससे एकरसता भी दूर होती है । अभिनय के दौरान अभिनेता व अभिनेत्री प्राय: उच्‍च स्‍वर में संवाद करते हैं । शायद इसकी वजह दर्शकों तक अपनी आवाज़ सुविधाजनक तरीके से पहुँचानी है । अभिनेता अपने माध्‍यम से भी कुछ न कुछ जोड़ते चलते हैं । जो आशु शैली में जोड़ा जाता है, वह दर्शकों को भाव-विभोर कर देता है, साथ ही, दर्शकों से सीधा संबंध भी बनाने में सक्षम होता है । बीच-बीच में विदूषक भी यही कार्य करते हैं । वे हल्‍के-फुल्‍के ढंग से बड़ी बात कह जाते हैं । इसी बहाने वे व्‍यवस्‍था, समाज, सत्‍ता, प‍रिस्थितियों पर गहरी टिप्‍पणी करते हैं । विदूषक को विभिन्‍न पारंपरिक नाट्यों में अलग-अलग नाम से पुकारते हैं । संवाद की शैली कुछ इस तरह होती है कि राजा ने कोई बात कही, जो जनता के हित में नही है तो विदूषक अचानक उपस्थित होकर जनता का पक्ष ले लेगा और ऐसी बात कहेगा, जिससे हँसी तो छूटे ही, राजा के जन-विरोधी होने की कलई भी खुले ।


विविध पारंपरिक नाट्य शैलियां

भांड-पाथर, कश्‍मीर का पारंपरिक नाट्य है । यह नृत्‍य, संगीत और नाट्यकला का अनूठा संगम है । व्‍यंगय मज़ाक और नकल उतारने हेतु इसमें हँसने और हँसाने को प्राथमिकता दी गयी है । संगीत के लिए सुरनाई, नगाड़ा और ढोल इत्‍यादि का प्रयोग किया जाता है । मूलत: भांड कृषक वर्ग के हैं, इसलिए इस नाट्यकला पर कृषि-संवेदना का गहरा प्रभाव है ।

 स्‍वांग, मूलत: स्‍वांग में पहले संगीत का विधान रहता था, परन्‍तु बाद में गद्य का भी समावेश हुआ । इसमें भावों की कोमलता, रससिद्धि के साथ-साथ चरित्र का विकास भी होता है । स्‍वांग को दो शैलियां (रोहतक तथा हाथरस) उल्‍लेखनीय हैं । रोहतक शैली में हरियाणवी (बांगरू) भाषा तथा हाथरसी शैली में ब्रजभाषा की प्रधानता है ।

नौटंकी प्राय: उत्‍तर प्रदेश से सम्‍बंधित है । इसकी कानपुर, लखनऊ तथा हाथरस शैलियां प्रसिद्ध हैं । इसमें प्राय: दोहा, चौबोला, छप्‍पय, बहर-ए-तबील छंदों का प्रयोग किया जाता है । पहले नौटंकी में पुरुष ही स्‍त्री पात्रों का अभिनय करते थे, अब स्त्रियां भी काफी मात्रा में इसमें भाग लेने लगी हैं । कानपुर की गुलाब बाई ने इसमें जान डाल दी । उन्‍होंने नौटंकी के क्षेत्र में नये कीर्तिमान स्‍थापित किए ।

रासलीला में कृष्‍ण की लीलाओं का अभिनय होता है । ऐसे मान्‍यता है कि रासलीला सम्‍बंधी नाटक सर्वप्रथम नंददास द्वारा रचित हुए इसमें गद्य-संवाद, गेय पद और लीला दृश्‍य का उचित योग है । इसमें तत्‍सम के बदले तद्भव शब्‍दों का अधिक प्रयोग होता है ।

भवाई, गुजरात और राजस्‍थान की पारंपरिक नाट्यशैली है । इसका विशेष स्‍थान कच्‍छ-काठियावाड़ माना जाता है । इसमें भुंगल, तबला, ढोलक, बांसुरी, पखावज, रबाब, सारंगी, मंजीरा इत्‍यादि वाद्ययंत्रों का प्रयोग होता है । भवाई में भक्ति और रूमान का उद्भुत मेल देखने को मिलता है ।



जात्रा, देवपूजा के निमित्‍त आयोजित मेलों, अनुष्‍ठानों आदि से जुड़े नाट्यगीतों को जात्राकहा जाता है । यह मूल रूप से बंगाल में पला-बढ़ा है । वस्‍तुत: श्री चैतन्‍य के प्रभाव से कृष्‍ण-जात्रा बहुत लो‍कप्रिय हो गयी थी । बाद में इसमें लौकिक प्रेम प्रसंग भी जोड़े गए । इसका प्रारंभिक रूप संगीतपरक रहा है । इसमसेंस कहीं-कहीं संवादों को भी संयोजित किया गया । दृश्‍य, स्‍थान आदि के बदलाव के बारे में पात्र स्‍वयं बता देते हैं ।

माच, मध्‍य प्रदेश का पारंपरिक नाट्य है । माचशब्‍द मंच और खेल दोनों अर्थों में इस्‍तेमाल किया जाता है । माच में पद्य की अधिकता होती है । इसके संवादों को बोल तथा छंद योजना को वणग कहते हैं । इसकी धुनों को रंगत के नाम से जाना जाता है ।

 भाओना, असम के अंकिआ नाट की प्रस्‍तुति है । इस शैली में असम, बंगाल, उड़ीसा, वृंदावन-मथुरा आदि की सांस्‍कृतिक झलक मिलती है ।  इसका सूत्रधार दो भाषाओं में अपने को प्रकट करता है- पहले संस्‍कृत, बाद में ब्रजबोली अथवा असमिया में ।

तमाशा महाराष्‍ट्र की पारंपरिक नाट्यशैली है । इसके पूर्ववर्ती रूप गोंधल, जागरण व कीर्तन रहे होंगे । तमाशा लोकनाट्य में नृत्‍य क्रिया की प्रमुख प्रतिपादिका स्‍त्री कलाकार होती है । वह मुरकीके नाम से जानी जाती है । नृत्‍य के माध्‍यम से शास्‍त्रीय संगीत, वैद्युतिक गति के पदचाप, विविध मुद्राओं द्वारा सभी भावनाएं दर्शाई जा सकती हैं ।

दशावतार कोंकण व गोवा क्षेत्र का अत्‍यंत विकसित नाट्य रूप है । प्रस्‍तोता पालन व सृजन के देवता-भगवान विष्‍णु के दस अवतारों को प्रस्‍तुत करते हैं । दस अवतार हैं- मत्‍स्‍य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्‍ण (या बलराम), बुद्ध व कल्कि । शैलीगत साजसिंगार से परे दशावतार का प्रदर्शन करने वाले लकड़ी व पेपरमेशे का मुखौटा पहनते हैं ।
केरल का लोकनाट्य कृष्‍णाट्टम 17वीं शताब्‍दी के मध्‍य कालीकट के महाराज मनवेदा के शासन के अधीन अस्तित्‍व में आया । कृष्‍णाट्टम आठ नाटकों का वृत्‍त है, जो क्रमागत रुप में आठ दिन प्रस्‍तुत किया जाता है । नाटक हैं-अवतारम्, कालियमर्दन, रासक्रीड़ा, कंसवधाम् स्‍वयंवरम्, वाणयुद्धम्, विविधविधम्, स्‍वर्गारोहण । वृत्‍तांत भगवान कृष्‍ण को थीम पर आधारित हैं- श्रीकृष्‍ण जन्‍म, बाल्‍यकाल तथा बुराई पर अच्‍छाई के विजय को चित्रित करते विविध कार्य ।

 केरल के पारंपरिक लोकनाट्य मुडियेट्टु का उत्‍सव वृश्चिकम् (नवम्‍बर-दिसम्‍बर) मास में मनाया जाता है । यह प्राय: देवी के सम्‍मान में केरल के केवल काली मंदिरों में प्रदर्शित किया जाता है । यह असुर दारिका पर देवी भद्रकाली की विजय को चित्रित करता है । गहरे साज-सिंगार के आधार पर सात चरित्रों का निरूपण होता है- शिव, नारद, दारिका, दानवेन्‍द्र, भद्रकाली, कूलि, कोइम्बिदार (नंदिकेश्‍वर) ।
 कुटियाट्टम, जो कि केरल का सर्वाधिक प्राचीन पारंपरिक लोक नाट्य रुप है, संस्‍कृत नाटकों की परंपरा पर आधारित है । इसमें ये चरित्र होते हैं- चाक्‍यार या अभिनेता, नांब्‍यार या वादक तथा नांग्‍यार या स्‍त्रीपात्र । सूत्रधार और विदूषक भभ्‍ कुटियाट्टम् के विशेष पात्र हैं । सिर्फ विदूषक को ही बोलने की स्‍वंतत्रता है । हस्‍तमुद्राओं तथा आंखों के संचलन पर बल देने के कारण यह नृत्‍य एवं नाट्य रूप विशिष्‍ट बन जाता है ।

 कर्नाटक का पारंपरिक नाट्य रूप यक्षगान मिथकीय कथाओं तथा पुराणों पर आधारित है । मुख्‍य लोकप्रिय कथानक, जो महाभारत से लिये गये हैं, इस प्रकार हैं : द्रौपदी स्‍वयंवर, सुभद्रा विवाह, अभिमन्‍युवध, कर्ण-अर्जुन युद्ध तथा रामायण के कथानक हैं : वलकुश युद्ध, बालिसुग्रीव युद्ध और पंचवटी ।
 तमिलनाडु की पारंपरिक लोकनाट्य कलाओं में तेरुक्‍कुत्‍तु अत्‍यंत जनप्रिय माना जाता है । इसका सामान्‍य शाब्दिक अर्थ है- सड़क पर किया जाने वाला नाट्य । यह मुख्‍यत: मारियम्‍मन और द्रोपदी अम्‍मा के वार्षिक मंदिर उत्‍सव के समय प्रस्‍तुत किया जाता है । इस प्रकार, तेरुक्‍कुत्‍तु के माध्‍यम से संतान की प्राप्ति और अच्‍छी फसल के लिए दोनों देवियों की आराधना की जाती है । तेरुक्‍कुत्‍तु के विस्‍तृत विषय-वस्‍तु के रुप में मूलत: द्रौपदी के जीवन-चरित्र से सम्‍बंधित आठ नाटकों का यह चक्र होता है । काट्टियकारन सूत्रधार की भूमिका निभाते हुए नाटक का परिचय देता है तथा अपने मसखरेपन से श्रोताओं का मनोरंजन करता है । 

स्रोत--http://ccrtindia.gov.in/hn/theatreforms.php





बुधवार, 20 जुलाई 2016

इब ज़ुल्म सहा नै जावैगा प्रतिकार म्हार नारा सै

ज़िंदा गां थारी सै
सारा दूध थारा सै
देबी सै मां सै
गोरक्षा का नारा सै
बाछड़ा हांडै गली गली
बछिया माल थारा सै
खुरपी थराती हाम खींचै
चिकणी खाल थारी सै
खून पसीना म्हारा सै
हल अर बैल थारे सै
दान दक्षिणा तम लूटो
कर्ज़े हाम पै सारे सैं
सीता राम थारे सैं
गंदे काम म्हारे सै
फटी बिवाई म्हारी सै
चिकने हाथ थारे सै
कोर्ट कचहरी मैं तम सो
फैक्ट्री अर मिल थारी सै
दोनूं मिल कै मारै सींटी सै
मंदर मस्ज़द पंडत सयद
सारे ठाठ थारे सै
तो ल्यो यैं लाश थारी सै
यै मरी होई मां सै
ले जाओ पूजा पाठ करो
सारी हाड्डी खाल थारी सै
हाम कलम चलावैंगे इब तो
संसद में जावैंगे इब तो
तम करो धर्म की रक्षा भाई
हाम देश बचावैंगे इब तो।
इब ज़ुल्म सहा नै जावैगा
प्रतिकार म्हार नारा सै
सन्देश भीम का ल्याए सैं
यो हिन्दुस्तान म्हारा सै।

(गुजरात के बहादुर दलित कार्यकर्ताओं को समर्पित)
अशोक पांडे की हिंदी कविता का हरियाणवी अनुवाद

रविवार, 17 जुलाई 2016

प्रधानमंत्री मोदी को किसान-हित भी याद रहते सिख शहीद बन्दा सिंह बहादुर की शहादत पर


प्रधानमंत्री मोदी ने सिख सैन्य कमांडर बंदा सिंह बहादुर को रविवार को एक महान योद्धा करार दिया और कहा कि उनके प्रयासों के कारण किसानों को पहली बार अपना हक मिला और आम आदमी ने सशक्त महसूस किया। काश! प्रधानमंत्री मोदी को यह भी याद रहता है कि हाल ही में उनकी केंद्र सरकार और हरियाणा की भाजपा सरकार ने किसान हितों की अनदेखी करते हुए स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने से मना कर दिया है।  फसलों की सही कीमत न मिलने के कारण देशभर के किसान लगातार आत्महत्याएं कर रहे हैं और दूसरी तरफ सरकार किसानों से मुंह फेर रही है, जबकि चुनाव के समय मोदी जी ने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने का वादा किया था। मोदी ने यहां सिख सैन्य कमांडर के 300वें शहीदी दिवस पर आयोजित एक समारोह में कहा कि बाबा बंदा सिंह बहादुर जी सिर्फ एक महान योद्धा नहीं थे, बल्कि आम जनता के प्रति वह काफी संवेदनशील भी थे। गुरु गोबिंद सिंह से प्रेरणा पाने के बाद उन्होंने एक योद्धा के मूल्यों को आत्मसात किया और सामाजिक विकास की एक नई यात्रा शुरू की।सिख शहीद बंदा बहादुर को असली शहादत तब मिलती जब सरकार उनके जीवन-मूल्यों पर अमल करती और संवेदनशीलता के साथ-साथ किसानों के हितों में काम करती।
बंदा बहादुर की नीयत और नीतियां किसानों और आमजन के हितों में

बाबा बन्दा सिंह बहादुर का जन्म कश्मीर स्थित पुंछ जिले के राजौरी क्षेत्र में 1670 ई. तदनुसार विक्रम संवत् 1727, कार्तिक शुक्ल 13 को हुआ था। बन्दा सिंह बहादुर एक सिख सेनानायक थे। उन्हें बन्दा बहादुर, लक्ष्मन दास और माधो दास भी कहते हैं। वे पहले ऐसे सिख सेनापति हुए, जिन्होंने मुगलों के अजेय होने के भ्रम को तोड़ा; छोटे साहबजादों की शहादत का बदला लिया और गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा संकल्पित प्रभुसत्ता सम्पन्न लोक राज्य की राजधानी लोहगढ़ की नीव रक्खी।
मरने से पूर्व बन्दा बैरागी ने अति प्राचीन ज़मींदारी प्रथा का अन्त कर दिया था तथा कृषकों को बड़े-बड़े जागीरदारों और जमींदारों की दासता से मुक्त कर दिया था। वह साम्प्रदायिकता की संकीर्ण भावनाओं से परे था। मुसलमानों को राज्य में पूर्ण धार्मिक स्वातन्त्र्य दिया गया था। पाँच हजार मुसलमान भी उसकी सेना में थे। बन्दासिंह ने पूरे राज्य में यह घोषणा कर दी थी कि वह किसी प्रकार भी मुसलमानों को क्षति नहीं पहुँचायेगा और वे सिक्ख सेना में अपनी नमाज़ और खुतवा पढ़ने में पूरी तरह स्वतन्त्र होंगे।
किसानों के खिलाफ नीतियां बनाकर और देश में सांप्रदायिकता का माहौल खड़ा करके कैसे सिख शहीद बंदा बहादुर को श्रद्धाजंलि दी जा सकती है? जबकि सरकार की नीयत और नीतियां किसानों और आम जनता के खिलाफ हैं।

सरकार और निजी विद्यालयों के बीच पीसते गरीब छात्र

साथ ही स्कूल संचालक 134 ए के तहत एडमिशन देने में भी आनाकानी करते थे। इस कारण कई बार बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ जाता था। लेकिन शनिवार को स्कूल संचालकों के साथ हुई बैठक के दौरान जिले सिंह अत्री ने स्पष्ट कर दिया कि स्कूल संचालकों को 134 ए के तहत बच्चों को दाखिला देना ही होगा।

स्कूल नहीं जमा कराते फार्म नं. 6 :हर साल की तरह निजी स्कूलों ने अभी तक फार्म नं. 6 नहीं जमा कराए हैं। पिछले वर्ष भी स्कूलों ने फार्म नं. 6 को भरने में आनाकानी दिखाई थी लेकिन जिला शिक्षा अिधकारी के सख्त रवैए के चलते अब की बार फार्म नं. 6 जमा न कराने पर गाज गिरना तय माना जा रहा है।
चयनित दुकान पर मिलता है बुक सेट
प्राइवेट स्कूल बुक्स-कापी के अलावा वर्दी की स्लिप पेरेंट्स को थमा देते हैं। निजी स्कूल संचालक शिक्षा अिधकारी के आदेशों के बावजूद स्कूलों में यूनिफार्म व बुक्स धड़ल्ले से बेच रहे हैं। हाल ही में कैंट के काॅन्वेंट ऑफ सेक्रेड हार्ट में किताबें बेचने का मामला सामने आया था। जिसे लेकर जिला शिक्षा अिधकारी जल्द ही स्कूल प्रशासन को नोटिस देने की तैयारी कर रहे हैं। इसके बाद तय माना जा रहा है कि स्कूल पर सख्त कार्रवाई हो सकती है।
10 गुणा महंगे प्राइवेट पब्लिशर्स
प्राइवेट पब्लिशर्स की बुक्स एनसीईआरटी से दस गुणा ज्यादा महंगी हैं, एनसीईआरटी का फर्स्ट व सेकंड क्लास का सेट महज 230 रुपए का है जबकि प्राइवेट पब्लिशर्स की नर्सरी, एलकेजी व फर्स्ट स्टैंडर्ड की बुक्स का सेट ही 3400 से 4000 रुपए का है।
निजीस्कूलों में अगर बच्चों को नियम 134ए के तहत नि:शुल्क पढ़ाना है तो प्रदेश सरकार को उसके बदले में स्कूलों को तय राशि देनी ही होगी। अगर ऐसा नहीं होता है तो निजी स्कूल किसी भी हालत में बच्चों को नि:शुल्क नहीं पढ़ाएंगे। चाहे इसके लिए स्कूलों को बंद ही क्यों करना पड़ जाए। हम कोर्ट में जाने को भी तैयार हैं।

यह दो टूक बात हरियाणा संयुक्त विद्यालय संघ के प्रधान विजेंद्र मान ने कही है। शुक्रवार को यहां पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि पिछले साल कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया था कि वे स्कूलों को बच्चे पढ़ाने के बदले तय राशि देगी, लेकिन दिया कुछ नहीं। जो बच्चे अभी स्कूल जा रहे हैं आगे अगर फीस नहीं दी तो उन्हें भी स्कूल छोड़ना होगा। सरकार को चाहिए कि वे हर पात्र विद्यार्थी को एजुकेशन वाउचर दे, जिससे वह अपने पसंदीदा स्कूल में दाखिला ले सके।

जिला प्रधान अजमेर सिंह ने कहा कि सरकार की लापरवाही के कारण बच्चों का भविष्य प्रभावित हो रहा है। सरकार ने एक तो ऐन मौके पर ड्रा घोषित नहीं किया। उपर से लोग गुमराह हो रहे हैं। उस पर विद्यार्थियों को परेशानी होगी, क्योंकि सरकार द्वारा मेधावी की योग्यता जानने के लिए एडीसी की अध्यक्षता में एक टैस्ट आयोजित किया जाएगा। इसमें कम से कम 55 प्रतिशत अंकों वालों को ही ड्रा में शामिल किया जाएगा।
नियम 158 : इस नियम के तहत प्रत्येक प्राइवेट स्कूल को वर्ष की शुरूआत में फॉर्म नंबर छह भरना होता है। फॉर्म नंबर छह में प्राइवेट स्कूलों को यह जानकारी शिक्षा विभाग को उपलब्ध करानी होती हैं कि वह क्या सुविधाएं उपलब्ध करा रहा है।
केंद्र सरकार के शिक्षा अधिकार कानून यानी आरटीई-२००९ के मुताबिक, हर स्कूल 25 फीसदी गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देगा और अन्य जरूरी सुविधाओं का भी ध्यान रखेगा। इसके लिए केंद्र सरकार बजट देगी। लेकिन बजट का प्रावधान केवल सरकारी स्कूलों के लिए किया गया।
हरियाणा एजुकेशन एक्ट-2003 की धारा-134ए- हरियाणा सरकार के इस नियम के अंतर्गत 25 फीसदी गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देंगे। यह हर स्कूल के लिए अनिवार्य होगा । लेकिन इस कानून में बजट का प्रावधान नहीं दिया गया इसलिए इसका निजी स्कूल संचालक विरोध कर रहे हैं।


आरके आनंद के दावों में हैं कितना दम

हुक्काबाजी


ताऊ राम-राम!
राम-राम प्रकासे! के कागज से ठा रहया सै।
कुछ नी ताऊ, बिजली का बिल भर कै आया था। साली लैट कम आवै सै अर यो बिल घणा आवै सै। या सरकार जीरी अर गेहूं के भा तो बढांदी कोनी। महंगाई रोज बढ़ण लाग री सै। न्यूए बढ़े गई तै इस गात का सारा करंट खत्म हो ज्यागा।
या बात तो ठीक कही प्रकासे तन्नै। तन्नै बेरा सै अक या बिजली इतनी महंगी क्यूं हो री सै?
ना ताऊ! बस नू सुणते आवै सै अक कोल्ला महंगा हो रहया सै ज्या तै महंगी हो री सै।
हरियाणा सरकार चाहवै तै हामनै सस्ती बिजली दे सकै सै। पर या सरकार बी पाछली सरकार की तरिया हामनै महंगी बिजली देण लाग री सै।
अच्छा! फेर महंगी क्या तै देण लाग री सै?
हरियाणा सरकार जै कोयला ब्लॉक पै आपणे प्लांट लगा ले तो पूरे हरयाणा नै सस्ती बिजली मिल सकै सै। पर सरकार इसा करैगी तो प्राइवेट कंपनियां की गोज(जेब) क्यूंकर भरैंगी। इब सरकार 81% बिजली तो खरीदण लाग री सै। जै सरकार आपणे प्लांट ला ले तो एक रपया पर यूनिट तै बणाण का खरचा पड़ै अर एक रपये पर यूनिट ट्रासमिशन मैं खरच होवै।
प्रकासे जा आपणी ताई तै कहिए दो कप चा बणा देगी। उमर होए पाछै टीकड़े बी हजम होणे बंद हो ज्या सै।
ठीक सै ताऊ! कहकै आऊ सूं।
के भाव लेवे उन पै अर म्हारे तै के भा देवै?
सरकार प्राइवेट कंपनी पै तै 3 अर 4 रपये के बीच में लेवै सै। अर म्हारे तै इस भा मैं देवै-11.27, 10.70, 8.30, 7.58, 7.41, 7.34 रपये पर यूनिट।

पिछली सरकार के टैम तै इब तही या सरकार बी बिजली खरीदण लाग री सै। वो बी इतनी महंगी अक जिसकी कोए हद नी। चाळा तै यो पाट रहया सै अक सरकार आपणे प्लांट बंद कर दे सै जब बिजली घणी हो ज्या सै।
के कोई-सी सरकार कै यो हिसाब समझ कोनी आंदा। जो इसे काम करण लाग री सै। या तै जमा कती हद हो री सै।
हद नी कहया करदे बेटा इसनै। इसनै लूट कहया करै सै। या सारी सैटिंग हुड्डा बैठा कै जा रहया सै, पर मजे या सरकार बी लेरी सै। लूट के माल मैं सब का साझा हो सै।
फेर तो ताऊ यै सरकार म्हारे महंगा करंट मारण लाग री सै?
70 के करीब प्राइवेट कंपनियां की आड़ ले कै सरकार जनता कै यो इतना महंगा करंट मारण लाग री सै। मनमोहन सिंह न्यू कहवै था अक पीसे पेड़ पै कोनी उगते। फेर यै म्हारे पीसे के पेड़ पै उगै सै जो सरकार म्हारे पै उगाही करण लाग री सै। और सुण ले इन कंपनियां नै 34600 करोड़ रपये का कर्जा बी देणा सै। आम आदमी नै चै किसान नै थोड़े से पीसे देणे हो सरकार कती लत्ते पाड़ण नै होज्या सै। पर इन कंपनियां तही कुछ नी कहंदी। क्या तै भाई?
अरै प्रकासे होक्का होर भर ले। नू कर इसका पाणी बी बदल लिए। ताजे पाणी मैं न्यारा-ए मजा आवै सै। चा पीए पाछै तो होक्का बी न्यारा-ए रंग देवै सै।
उनकै लत्ते क्य़ूंकर पाड़ैंगे ताऊ, वै तै खाण नै देरे इन तै। पर सरकार तो नू कहवै अक म्हारे धौरै भतेरी बिजली सै।
सरकार कहवै कुछ सै अर करै कुछ ओर सै। सरकार नू कहवै अक म्हारे धौरे भतेरी बिजली सै। जब भतेरी बिजली सै तो फेर खरीदण की के जरूरत सै। सरकार नै प्राइवेट बिजली खरीदण खात्तर हाटकै आवेदन(पीपीए-पॉवर परचेज़ एग्रीमैंट) क्या तै मांगे सै। इन प्राइवेट बिजली बेचण आळया पै तै सरकार बिजली खरीद के हामनै देवै। अर इन गेल इसी लिखा-पढ़ी कर राखी सै अक सरकार पै बिजली घणी हो या थोड़ी इन पै तै खरीदणी-ए पड़ैगी। मीह बरसे पाछै सरकार आपणे प्लांट बंद कर दे सै अर इन पै तै महंगी बिजली खरीद कै म्हारे तै महंगी बिजली बेच दे सै। कहण नै सरकार म्हारी सै, पर काम तै इन प्राइवेट कंपनियां के बत्ती आ री सै।
फेर तो सरकार म्हारा पागल बणा री सै ताऊ!
बणा लेण दे प्रकासे। इलैक्सन मैं इसा करंट लावैंगे हाम बी। आई री आई री नी करदे पावै तै जब कहिए। देख्या नी हुड्डा के किसे हाड लिकड़गे। इनकी तै खाल बी कोनी पावैगी गात पै।
अरै होक्का चाल रहया सै के।
आज्या मांगे चाल के रहया सै। प्रकासे नै कती इबै-ए भरया सै। इबै तै सही तरिया सुलग्या बी कोनी सै। लै मार खींच-खींच के घूंट। अर सुलगा दे। सारी गरमी हो ली दिन मैं तै लैट कतिए नी आंदी। दोपहरी मैं दो घड़ी सोण की बी कोनी सोच सकता माणस इसा काम कर राख्या सै। रात-बिरात नै तो माणस चल बाहर सो ज्या सै।


मनोहरलाल खट्टर को पत्र

मुख्यमंत्री

मनोहरलाल खट्टर जी

राम-राम!

सरकार आपकी है तो हालचाल तै जमा बढ़िया-ए होगा। शक्ल पै तै आपके बारा बजे रह सै। सरकार की शक्ल इसी सै तो नू सोच कै देखिओ अक म्हारा के हाल हो रहया होगा।
याड़ै खेत मैं बिजली की बांट देखते-देखते सोच्या आप धौरै एक लैटर लिख दयूं। टवीटर पै तो लागता नहीं कुछ पढ़ते होगे। अर जुण उड़ै बैठा राख्या सै ओ के तन्नै सारी बात बता देता होगा, मेरै तो जंचती नहीं।
मेरे तै न्यू बताओ जब सरप्लस बिजली हैं हरियाणा पै तो या बिजली जावै कित सै। ना तो गाम मैं लैट आती अर ना खेत मैं आती। तो इस बिजली नै कुण खाण लाग रहया सै। किसे रिश्तेदार धौरै फोन कर लें। सब लाइट बाबत रोंदे पावै सै। रात नै जाग कै तो फोन चार्ज करणा पड़ै। एक बरिया चार्जिंग मैं ला कै सो ग्या। तड़के उठ कै देख्या तो फोन ट्रांसफारमर की तरिया होया पाया। लाइट का पता नहीं लागता कदे तो कती डीम आवै कदे कती फुल। फोन भी के आपणी इसी-तीसी करावैगा। इस लैट के चक्कर मैं कई रिश्तेदार तै तो बात बी नहीं होती। जब देखो फोन चारज नहीं होया, याए बीन बंजादे पावै। थारी न्यारी बीन बाजती पावै। अक हरयाणा पै बिजली तो भतेरी सै। इस भतेरी नै म्हारे धौरै बी भेज दे खागड़। सारे मजे आप लेण लाग रहया सै।
हाम तो सारे कै रो-रो थक लिए। फोन मैं रोज नू लिख्या आवै अक बरसैगा। सरकार नै तो हाथ हला राखै सै यो राम थारा भी फूफा हो रहया सै। काली घटा सी उठै बरसता कुछ नी। बड़ी मुश्किल तै खेत मैं लैट आवै। थोड़ी वार पीछै भाग ज्या सै। फोन करो बिजली आळा पै तो दैड़ देनी कहदे सै परमिट ले राख्या सै। मेरी सासू के यैं बी बिजली आण की बांट देखे जा सै। किसनै बेरा सै अक परमिट ले बी राख्या सै अक नहीं। हरयाणवी पढ़णी तो आती होगी अक या बी कोनी आती।
किसे एमएलए या एमपी धौरै चले ज्यां। सारे रोंदे पावै अक म्हारी नहीं चालती। सब कहवै टवीटर की चाल री सै। तो हामनै बी सबकी देखा देखी टवीटर बी लोड कर लिया। उड़ै बी मनै इसा लाग्गै सै ओ बी कोए और चला रहया सै।  कितने लोग उड़ै इतनी भूंडी-भूंडी गाली देवै अर तू कुछ नी कहता किसे तै। ना किसे सवाल का जवाब देता। कोए बडाई मार दें तो उसनै ठा कै री-टवीट कर दे सै। चाह के रहया सै तू।

जब वो पियूष गोयल नू कहवै था ना अक टवीटर पै हरियाणा के लोग उस पै व्यंग करै सै तो आपनै बी कहणा चहिए था अक मेरे तै तो घणी भूंड़ी-भूंड़ी गाली बी देवै सै। मन्नै तो इसा लाग्गै सै जणू आप पै ना तो राजनीति होती अर ना टवीट करणा आता। तेरी गेल हांगा हो रहया सै। जनता का नहीं कख्खा बी पता तन्नै। यै म्हारे नेता नहीं बकसते तन्नै अर ना जनता। रही सही कसर यो गोयल कर गया पूरी।
यै हाईफाई ड्रामे सै टवीटर-फवीटर। तेरी गेल तो ओ काम ओ रहया सै जुकर अकल बिना ऊंट उभाणे फिरैं।
मेरे तै नू बताओ अक आगली बार वोट बी इस टवीटर पै गेरणे सै के? किते तै आपनै लाग्गै सै अक या सरकार जनता की हो इसा लाग्गै जणू टवीटर की सरकार सै। इस टवीटर की सुण ल्यो कबूतर जितनी बीट करै सै उतनी बात तो इस टवीट पै लिख सकै सै। हामनै तो देख मजा आया नी। माणस ओए हो सै जो छक कै तो खावै अर छक कै सुणै-बतावै।






हरयाणे के किसान का मुख्यमंत्री खट्टर को पत्र

जय जवान जय किसान

मुख्यमंत्री
खट्टर जी राम-राम

भोत घणा दुखी होकै नै लिखणा पड़ रहया सै। यै दिन भी देखणे पड़ सकै सै। या कदे नहीं सोची थी। म्हारी तो सीएम साब चुगरदे कै मार होरी सै। तीसरा दिन है आज खेत मैं लाइट नहीं आई। थारा मंत्री तो थोड़ी वार लैट नी आवै तो सस्पैंड कर कै चालता बणै सै। हाम किसनै सस्पैंड करै। म्हारे बरगे तो खेत मैं पड़े-पड़े थामनै गाली दे सकै सै। पर गालियां तै कै म्हारे पेट भरै सै। पेट तो बढ़िया जीरी होए पाछै भरैगा। अर जीरी बढिया लैट आए पाछै होवैगी।
मीह तो चलो आपणे टैम पै आवैगा। पर बिजली तो तम दे सको हो। आप तै हाथ जोड़ कै कहूं सूं। अक म्हारे घर मैं तड़के-सांझ नै छोड़कर चै सारा दिन-रात लैट मत दिया करो। पर म्हारे खेत की लाइट जरूर दे दिया करो।
म्हारी जीरी मरण का मतलब सै म्हारी उलाद मर जाणा। कती बाळक की तरिया खेती करणी पड़ै सै।
अखबार पढ़ण खात्तर लाया था। लैट नी आई तै गरमी बी घणी लागण लागी। अखबार बिजणे का काम कर रहया। हवा करदे-करदे शक्ल दिख गी। शक्ल के कती बारा बज रे। नू माडा-सा मुंह लिकड़ रहया कती। बता तेरी के जीरी सुखै सै। अक तन्नै के छोरी ब्याहणी सै। अक बुआ तै तीज दे कै आणी सै। ना तन्नै आढती पै रपये ठा राखे सै। ना तन्नै बाणिए की उधार देणी सै। ना तन्नै बीज-सप्रे आले के पीसे देणे। अर कुणसा तेरे खेत में बिल लिकडै सै। म्हारे बरगे थोड़े सै के टेनसन लेण आळे। बताओ सरकार के ये हाल सै। म्हारा के हाल होवैगा। फोटू तै बी भूंडी खबर लिख री सै। दिल्ली बला कै नै तू धमका दिया। बता इसा धमकाण की कुणसी बात थी। लोगा नै उस टवीटर पै आपणी शिकायत तो लिखी थी। या खबर पढ़ कै मैं बी डर गया। पहल्या तो मैं बी बिजली ना आण की शिकायत सीएम विंडो पै करण की सोच रहया था। धमकाण की खबर पढ़ कै हिम्मत टूटगी। उड़े का छौ तू म्हारे पै तार देगा।
थारी सरकार तै बच कै रहण की तो अड़ोसी-पड़ोसी बी कहया करदे। पर मन्नै तो उनकी सुणी कोनी। अर घणी उम्मीद करकै थारे तै वोट दी थी। क्यूं तम हामनै कती रूवाण पै चाल रे सो। पाछली बै बी जीरी मैं नुकसान होग्या था। नू सोच्या था अक इबकै जीरी ठीक हो ज्यागी तै भा बढ़िया मिल ज्यागा। पर बिजली ए नी आंदी भा का तो के बेरा सै। वै कहया करदे यैं किसान के कदे कोनी हो सकते। यैं तो मोटे बाणिया की सरकार सै। इब तो सब कुछ दिखण लाग रहया सै। हां ओ छोटा बाणिया तो म्हारा आज बी न्यूए  दुखी हो रहया। तेरी सरकार मैं किते नी उसकै मिल सीटी मारती। ओ हुड्डा बी सारी हाण गुडगामे मैं बडया रह था तम बी सारी हाण उड़ै ए पाओ सो। इसा के लिकड़ रहया सै गुडगामे में।
मेरे तै न्यू बताओ। जब सरप्लस बिजली सै हरियाणा पै। तो या बिजली जावै कित सै। ना तो गाम मैं लैट आती अर ना खेत मैं आती। तो इस बिजली नै कुण खाण लाग रहया सै। फैकटरी मैं तो नी बेच दयो सो। पक्का उन तै  बेचते होगे।

किसे रिश्तेदार धौरै फोन कर लें। सब लाइट बाबत रोंदे पावै सै। रात नै जाग कै तो फोन चार्ज करणा पड़ै। एक बरिया चार्जिंग मैं ला कै सो ग्या। तड़के उठ कै देख्या तो फोन ट्रांसफारमर की तरिया काला होया पाया। लाइट का पता नहीं लागता कदे तो कती डीम आवै कदे कती फुल। फोन भी के आपणी इसी-तीसी करावैगा। इस लैट के चक्कर मैं कई रिश्तेदारा तै तो बात बी नहीं होती। जब देखो फोन चारज नहीं होया, याए बीन बंजादे पावै। थारी न्यारी बीन बाजती पावै। अक हरयाणा पै बिजली तो भतेरी सै। इस भतेरी नै म्हारे धौरै बी भेज दे खागड़। सारे मजे आप लेण लाग रहया सै। जै तन्नै सारी रात बैठ कै चून पीसण बैठा दें तो बेरा लाग ज्यागा तन्नै बी।
हाम तो सारे कै रो-रो थक लिए। बड़े आले छोरे के फोन मैं रोज नू लिख्या आवै अक बरसैगा। सरकार नै तो हाथ हला राखै सै यो राम थारा भी फूफा हो रहया सै। काली घटा सी उठै बरसता कुछ नी। बड़ी मुश्किल तै खेत मैं लैट आवै। थोड़ी वार पीछै भाग ज्या सै। फोन करो बिजली आळा पै तो दैड़ देनी कहदे सै परमिट ले राख्या सै। मेरी सासू के यैं बी बिजली आण की बांट देखे जा सै। किसनै बेरा सै अक परमिट ले बी राख्या सै अक नहीं। हरयाणवी पढ़णी तो आती होगी अक या बी कोनी आती। हामनै बी आपणे मान कै कुछ कर दे म्हारा।
किसे एमएलए या एमपी धौरै चले ज्यां। सारे रोंदे पावै अक म्हारी नहीं चालती। सब कहवै टवीटर की चाल री सै। तो हामनै बी सबकी देखा देखी टवीटर  लोड करणा पड़ैगा के? खेत मैं जीरी की जगाह यो टवीटर बो दयूं के? या सरकार के शहर वालों की सरकार सै। बता दयो थम।
अर जब ओ पियूष गोयल नू कहवै था ना अक टवीटर पै हरियाणा के लोग उस पै व्यंग करै सै। करड़ा करकै क्यूं नी लिया। हरयाणा की बेजती करा दी तन्नै। ऊं हाम नू कहवै अक आड़ै दूध-दही का खाणा। बता तेरे तै आधा था ओ अर तन्नै धमका गया। ठा कै गाड दिया कर इसया नै तो। मन्नै तो इसा लाग्गै सै जणू तेरी गेल हांगा हो रहया सै। जनता का नहीं कख्खा बी पता तन्नै अर ना हरयाणा का बेरा। नीरा मलंग सै तू तो। ऊ पलंग ठा रहया सै।
अर के हो सै यो टवीटर। यै हाईफाई ड्रामे सै टवीटर-फवीटर के। तेरी गेल तो ओ काम ओ रहया सै जुकर अकल बिना ऊंट उभाणा फिरैं।
मेरे तै नू बताओ अक आगली बार वोट बी इस टवीटर पै गेरणे सै के? लखा ल्यो म्हारे कैनी बी।
ल्यो आखर मैं एक शेर सुण ल्यो। जयसिंह लंबरदार के टरक पै लिख रहया सै। याद म्हारै होरया सै। हौवैगा क्यूं नी। घर के बारणै तो म्हारे अड़ा कै खड़या करै सै। पर बात घणी सही  सै-
फलक पे तेरी हस्ती सै, जमीं पे मेरी बस्ती सै
थोड़ा-सा तू झुक, थोड़ा-सा मैं उठता हूं
मिलने की सूरत यही निकलती है।

म्हारे तो रिश्तेदार हामनै सीएम बैल्ट का माणस बतावै
थम म्हारी इसी हालत कर रे सो। शरमा ल्यो कुछ, जै आंदी हो तो।

आपके हरयाणे का घणा दुखी किसान





हरियाणा सरकार नै पुलिस भर्ती के नाम पै तीन को मौत के घाट उतारा, 250 तै ऊपर हस्पताल मैं भर्ती



हरियाणा में 15 जून तै पुलिस भर्ती शुरू होई जिसमै तक कई लाख युवा हिस्सा ले चुके हैं। भर्ती के लिए यह टेस्ट 4 जुलाई नै खत्म होग्या। अर गेल खत्म होगी तीन जवान जान। खाकी पहनने का सपना देख्या था पर खुद खाक होगे। होगे के कर दिए सरकार नै। इतनी भूंडी गरमी मैं घर तै लिकड़न नै जी नी करदा इननै या बालक भरी दोपहरी मैं भजा दिए। ना तै उड़ै कुछ खाण नै था, ना पीण नै पाणी था। भर्ती आले खुद तै टैंट में बैठे अर बालक धूप में जलते रहे। 5000 के करीब भर्ती लिकड़ी सै अर फार्म भरे सै 7 लाख के करीब। कहण में हरियाणा नंबर वन सै अर आड़ै 18 तै 25 के बीच के बेरोजगार बालक 7 लाख तै ऊपर सै। यै तै वै सै जुणसे कद-छाती तै फिट सै। कोए पूछण आला हो तो इन तै अक इतने बेरोजगारों के होते हरियाणा नंबर वन क्यूंकर बण ग्या?

सारे हरयाणा की भर्ती कुरुक्षेत्र मैं कराकै के साबित करणा चाहवै थे?

 हरियाणा पुलिस भर्ती कुरुक्षेत्र में चल रहे फिजिकल स्क्रीनिंग टेस्ट के दौरान तीन बालकां की मौत हो गी। सोनीपत के गांव कथूरा निवासी 25 वर्षीय भूपेंद्र सिंह 5 किमी. की दौड़ के दौरान ट्रैक पर बेसुध पड़ ग्या। उसे एलएनजेपी अस्पताल ले जाया गया। वहां से पीजीआई चंडीगढ़ रेफर कर दिया। जहां रात साढ़े 12 बजे उसकी मौत हो गई। 24 जून को भिवानी के 23 वर्षीय सोमवीर और हिसार के जितेंद्र की मौत ऐसी ही परिस्थितियों में हुई थी। हालांकि तीनों में से किसी की भी मौत के कारणों का पता नहीं चल पाया है, लेकिन पुलिस सूत्रों और कुरुक्षेत्र के सीएमओ सुरेंद्र नैन की मानें तो इनकी मौत का कारण नशा करके भर्ती में आना भी हो सकता है।
भर्ती होण आए छोरया नै या सरकार नसेड़ी बतावै

सरकार इसतै घणी बेशर्म कदे नी हो सकती, जो आपणी गलती तो मानती कोनी। ऊपर तै जवान छोरै जुणसे पुलिस मैं भर्ती होण गए थे, उननै नसेड़ी बतावै। या तो बात मानी बी जा सकै अक कई बालक ज्यान(क्षमता) बढ़ाण खात्तर कोए दवाई खा ली होगी पर नसेड़ी भर्ती होण की सोच बी कोनी सकता। अर जब ये हरियाणा के जवान बालका गेल हादसे होए उड़ै सरकार की तरफ तै कोए सुविधा कोनी थी। चलो यै तो नसेड़ी थे पर जुणसे हत्या के आरोपी नै पुलिस जेल मैं तो फिजीकल टेस्ट खात्तर लाई थी, ओ बी तो गस खा कै पड़ ग्या था। के ओ बी नशा कर रहया था।
भाजपा के प्रवक्ता प्रो. विरेंद्र चौहान युवाओं की मौत पै हांसण लाग ग्या

जनता टीवी नै इस मुद्दे पै बहस कराई। भाजपा के प्रवक्ता प्रो. विरेंद्र चौहान नै शर्म का घड़ा तै जमा फोड़ दिया अर जोर-जोर तै हांसण लाग ग्या। इतने बेशर्म और असंवेदनशील लोग क्यूंकर प्रवक्ता बण ज्या सै।  इसी कार्यक्रम में या बात बी लिकड़ कै आई अक सरकार की तरफ तै कोए इंतजाम नी कराए गए और सरकार पारदर्शी भर्ती का मोड़ तै आपणे सिर पै बांधै सै, अर इन बालकां की मौत का ठीकरा एसएससी पर फोड़ दिया। दूसरी बात जब इननै लाग्गै था अक बालक नशा करकै भाजै सै तो के टैस्ट कराण का फर्ज नी बणै था। और नी तो भर्ती नै थोड़ी आग्गै सरका देंदे।
हरियाणा सरकार की गलत नीतियों के चलते कुरुक्षेत्र में पुलिस भर्ती में प्रदेश के युवाओं की जान आफ़त में पड़ गई। जून के महीने में सबसे ज्यादा उमस और गर्मी पड़ै, असल में तो इस महीने में यह भर्ती होनी ही नहीं चाहिए थी। दूसरी बात इससे पहले जितनी भी भर्तियां हुई हैं, वह सब जिलेवार हुई है। जिलेवार होने के कारण बेरोजगार युवाओं पर न तो पैसे की मार पड़ती थी और न उन्हें ज्यादा दिक्कत होती थी।
पर इस भाजपा सरकार नै  न्यू नहीं देख्या अक इतनी गर्मी मैं छौरया का के हाल हो ज्यागा। छा मैं खड़े माणस के पसीने नी सुखते।
सरकार की बेशर्मी जब हद से पार हो गई, तो मानवाधिकार आयोग ने सरकार की भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठाए। वरना सरकार तो अपनी गलती मानने को तैयार ही नहीं थी। इस भर्ती नै  3 जवान छौरे मौत के घाट उतार दिए अर 250 तै ऊपर हस्पताल मैं भर्ती करवा दिए। इतना सब होए पाछै बी सरकार नै भर्ती पै रोक नी लगाई। बल्कि भर्ती वैसे ही चला राखी सै। सरकार को चाहिए अक इस भर्ती नै तीन-चार महीने आगै सरका दें। अर जब थोड़े ठंडे से दिन आज्या जब या भर्ती शुरू होवै। नहीं तै या भर्ती बेरा नी कितनी जान और ले लेगी।
पहले की भर्ती मैं सब तै पहल्या कद और छाती मापी जा थी। जिनकी पूरी हो ज्यां थी। वो सारे दौड़ मैं भाग ले सकै थे। पर इबकै तै पहल्या सारे पांच किलोमीटर इतनी करड़ी गर्मी मैं भगा दिए। फेर उनकी छाती अर कद मापै सै। सरकार नै बताओ यो उल्टा कान पकड़न की के जरूरत थी ।


हुक्काबाजी



मोल्लू- अरै पाल्ले देख ओ बिल्लू जाण लाग रहया। उसनै हांक मार ले। ओ पढया लिख्या सै।  ओ बतावैगा कितने का बिल आरया सै?

पाल्ला- सुणिए रै मासटर के। उरै नै आ।

बिल्लू- दादा राम-राम, काका राम-राम।

मोल्लू- अरै भाई यो बिल देख कै बताइये कै रपया का आरया सै।

बिल्लू- 1370 रपये का बिल सै दादा।

मोल्लू- मेरी सुसरी लैट तो आंदी नी। यो साळा बिल इतने का क्यूकर आण लाग्या। 8-10 साल पहलै तै कदे नी आए यै इतने के बिल। इब इसी के आग लाग गी। ये हुड्डा के टैम तै आण लाग्गे थे। ओ मोदी तै टीवी मैं खूब रूक्के मारया करदा। अक महंगाई नै तै जड़ तै खो दयूंगा। यो आड़ै हरयाणा मैं इसा गूगा पीर बैठा दिया। इसनै ना तै क्याहे का ज्ञान सै अर ना काम करण का बेरा। इसके तै पांच साल न्यूवै जांदे दिखै सै। भकवा तै इन पै कितना-ए ल्यो। काम के ना काज के ढाई मण नाज के-ओ हाल होरया सै इनका तै।



पाल्ला- काका मोल्लू, तू बी किसी बात करै सै। जब सब कुछ महंगा होरया सै तो के बिजली महंगी नी होवैंगी। नू सुणन मैं आवै सै अक कोल्ला महंगा हो रहया सै। ज्या ताही बिजली मंहगी हो री सै। आरै बिल्लू या बात साच्ची सै के।

बिल्लू-  सरकार चाहवै तै हामनै सस्ती बिजली दे सकै सै। नीत होणी चाहिए। पर इनकी तै नीत अर नीति दोनू-ए तै माडी सै। इब सुण ले दादा। हाम जुणसे बिल भरै सै उनमै तै-ए या सरकार उनके बी पीसे काढ ले सै जुणसे बिल कोनी भरदे। म्हारा बिल दस हजार का आग्या था। ठीक करवाण चल्या ग्या। बीस बरिया तै चक्कर कटवा दिए। हाम पढ़ै-लिख्या का पागल बणा दे सै यै बिजली आळै। कदे कीसे का नाम ले दे कदे किसे का। ढीली सरकार का योए दुःख हो सै। अफसर नेता की नी सुणते, मुख्यमंत्री नेता की नी सुणता। बेरा नी सुणै कुण किसकी सै। जनता की तै कोए नी सुणता। नेता न्यू कहदे सै म्हारी चाल कोनी रही। फेर चाल किसकी रही सै।

पाल्ला- अच्छा! फेर महंगी क्या तै देण लाग री सै? हामनै इनका(सरकार) इसा के ठा राख्या सै। जो म्हारी कड़ तोडण पै चाल रै सै।

बिल्लू- काका! यो बीज हुड्डा बो कै जा रहया सै। उस टैम उसनै ए प्राइवेट कंपनियां के सींग कढवा दिए। इब वै सींग सेध रे सै।

मोल्लू- ओ इसा के कर ग्या?

बिल्लू- दादा! ओ इन कंपनी आल्या नै म्हारा फूफा बणा ग्या। इन कंपनियां पै तै बिजली खरीद कै म्हारे तै बेच दे सै। जै सरकार आप बिजली बणावै तै कितने आदमियां नै तै काम मिल ज्या। अर बिजली बी सस्ती हो ज्या। पर नी इन नै तो म्हारी गोभी खोदण तै मतलब सै। यो खट्टर के हुड्डा के कम सै। यो हुड्डा का बी कुछ लाग्गै सै।पाछली सरकार के टैम तै इब तही या सरकार बी बिजली खरीदण लाग री सै। वो बी इतनी महंगी अक जिसकी कोए हद नी। चाळा तै यो पाट रहया सै अक सरकार आपणे प्लांट बंद कर दे सै जब बिजली घणी हो ज्या सै। कितने माणसा के पेट पै लात मार कै यै अडाणी बरगे का घर भरण लाग रे सै।

पाल्ला- अरै यौ अडाणी ओए सै के जूणसे के जहाज मैं बैठ कै मोदी भासण देण जाया करदा। वो मूंछ-सी राख रहया सै जूणसा।

बिल्लू- हां, काका ओए सै। ओ आपणे हिसाब तै हुड्डा पै काम करवावै था इब खट्टर पै कराण लाग रहया सै।

पाल्ला- के कोई-सी सरकार कै यो हिसाब समझ कोनी आंदा। जो इसे काम करण लाग री सै। या तै जमा कती हद हो री सै।

मोल्लू- हद नी कहया करदे बेटा पाल्ले इसनै। इसनै लूट कहया करै सै। या सारी सैटिंग हुड्डा बैठा कै जा रहया सै, पर मजे या सरकार बी लेरी सै। लूट के माल मैं सब का साझा हो सै।

पाल्ला- फेर तो ताऊ यै सरकार म्हारै महंगा करंट मारण लाग री सै?

बिल्लू- प्राइवेट कंपनियां की आड़ ले कै सरकार जनता कै यो इतना महंगा करंट मारण लाग री सै। मनमोहन सिंह न्यू कहवै था अक पीसे पेड़ पै कोनी उगते। फेर यै म्हारे पीसे के पेड़ पै उगै सै जो सरकार म्हारे पै उगाही करण लाग री सै। और सुण ल्यो इन कंपनियां नै  करोड़ा रपये का कर्जा बी देणा सै। आम आदमी नै चै किसान नै थोड़े से पीसे देणे हो सरकार कती लत्ते पाड़ण नै होज्या सै। पर इन कंपनियां तही कुछ नी कहंदी।

(अरै पाल्ले होक्का होर भर ले। नू कर इसका पाणी बी बदल लिए। ताजे पाणी मैं न्यारा-ए मजा आवै सै। चा पीए पाछै तो होक्का बी न्यारा-ए रंग देवै सै।)

मोल्लू- तू ठीक कहवै बिल्लू। यै आपणे फूफा आगै क्यूकर बोल सकै सै। जब उसनै ओ मोदी-ए काणा कर राख्या सै। बता उसनै के जरूत थी उसके जहाज मैं टंगण की। उनकै लत्ते क्य़ूंकर पाड़ैंगे, वै तै खाण नै देरे इन तै।

पाल्ला- पर सरकार तो नू कहवै अक म्हारे धौरै भतेरी बिजली सै।


बिल्लू- सरकार कहवै कुछ सै अर करै कुछ ओर सै। सरकार नू कहवै अक म्हारे धौरे भतेरी बिजली सै। जब भतेरी बिजली सै तो फेर खरीदण की के जरूरत सै। सरकार नै प्राइवेट बिजली खरीदण खात्तर हाटकै फारम(पीपीए-पॉवर परचेज़ एग्रीमैंट) क्या  मांगवाए सै। इन प्राइवेट बिजली बेचण आळया पै तै सरकार बिजली खरीद के हामनै देवै। अर इन गेल इसी लिखा-पढ़ी कर राखी सै अक सरकार पै बिजली घणी हो या थोड़ी इन पै तै खरीदणी-ए पड़ैगी। मीह बरसे पाछै सरकार आपणे प्लांट बंद कर दे सै अर इन पै तै महंगी बिजली खरीद कै म्हारे तै महंगी बिजली बेच दे सै। कहण नै सरकार म्हारी सै, पर काम तै इन प्राइवेट कंपनियां के बत्ती आ री सै।

पाल्ला- अछया रै! यैं बात नी बेरा थी भाई हामनै।ज्या तै फेर इब बिजली आळे कच्चे लागण लाग गे। सरकार पक्के नी लांदी इब।

मोल्लू- पाल्ले जिसका पाददे सर ज्या ओ क्यूं हगै गा। यैं बिजली आळै बी पूरे मस्ता रे थे। कती काम करकै राजी नी थे। जोर पड़ै था इनकै बी काम करदी हाणा।

बिल्लू- ना दादा! इसा कोनी सै। जब सरकार निकम्मी हो तै करमचारी तै आप्पे निकम्मे हो ज्या सै। जब सरकार करमचारी पै काम नी करवा सकती तो सरकार बणी के करण खात्तर सै। हामनै सरकार आपणे काम करवाण खात्तर बणाई सै। उस अडाणी का घर भरण खात्तर कोनी बणाई।

पाल्ला- बिल्लू एक बात बता। हाम मीटर मैं 80 रीडिंग काढै सै कती नाप कै। फेर बी आई बरिया न्यारा-न्यारा बिल क्यूं आवै।

बिल्लू- काका पहल्या बिल जै यूनिट हो थी उतने का आवै था। इब आई बरिया बदल कै आवै सै। उसनै एफएसी (ईंधन समायोजन प्रभार) या एफसीए (ईंधन लागत समायोजन) या एफपीपीसीए (ईंधन और बिजली खरीद लागत समायोजन) कहवै सै।

पाल्ला- या के नई आफत सै भाई?

बिल्लू- वा रकम सै जो  बिजली देण आळी कंपनी   ईंधन या कोल्ले की अलग-अलग कीमत के आधार पै बिल मैं जोड़ दे सै।  कोल्ले या ईंधन की कीमत कोल्ले की मांग और आपूर्ति के आधार पै हर महीने बदल ज्या सै अर इसकी गेल बिजली के उत्पादन की लागत भी बदल ज्या सै। बिजली बणाण आळी कंपनियां इस लागत को वितरण कंपनियों पै लगावै सै, सरकार म्हारै लगा दे सै।

मोल्लू- कुछ पल्लै कोनी पडया। देसी भासा मैं समझा बेटा। पढ़े लिखे होंदे तो रोळा-ए के था।

बिल्लू- इसा है दादा। जुकर काका पाल्ला शहर मैं दूध बेचण जावै सै। अर दूध का भा(भाव) सै 40 रपये। तो काका 40रपये दे आवै सै। जै काका पाल्ला नू कहण लाग ज्या अक भाई मेरी राजदूत पट्रोल तै चाल्लै सै। मैं दूध के तो 40रपये लेवूंगा पर 5 रपये ऊपर तै पटरोल के बी लेया करूंगा। इन कंपनियां नै बस योए काम कर दिया। इब इसा काम होए पाछै ग्राहक तै पाल्ले तै नाट ज्यांगे। पर हुड्डा इसा काम कर ग्या अक यै कंपनी आळै इब आपणे तेल-पाणी का खरचा बी मारपै लेवै सै।

मोल्लू- हुड्डा का करया होया नास सै यो तो। फेर इस सरकार के दीदे फूट रे सै।

पाल्ला- इननै तू कम मान रहया से के ताऊ। इननै कदे सरकार चलाई हो तो बेरा हो। बाता की इसी-तीसी तो कितनी-ए करवा ल्यो इन पै। सुक्की मूंछ पिनाए हांडै सै यैं तै।

मोल्लू- मूंछ पाड़ कै हाथ मैं देण बी जाणै सै हम। आरै पाल्ले कदे काल तै तू बी तेल के पीसे मांगण लाग ज्या। फेर हामनै पहल्या तेरी मूंछ पाड़नी पड़ैंगी।

पाल्ला- मैं के अडाणी सूं जो मेरी कही चाल्लैगी। भाई बिल्लू इसका कुछ तो तोड़ होगा। जै न्यूए बिजली के बिल बढे गए तो के राह होगा।

बिल्लू- सरकार की नीत हो तो राह आपणे आप बण ज्यागी काका। हां या बात सही सै अक बढ़े गए तै पित्तल जरूर लिकड़ ज्यागा। और देसा मैं सस्ती होंदी जा सै बिजली। अर म्हारे आड़ै महंगी होंदी जा सै। राह तै म्हारे हाथ मैं ए सै काका। इन सरकारा पै जब तही दाब नी पड़ैगी। यै नी सीधी होवै।