बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

स्पैशल शुद्ध देशी घी की टिक्की-समालखा(हरयाणा)


 विक्की टिक्की वाला-इन जनाब की स्टॉल पर जब देशी घी की टिक्की लिखा देखा तो समझने में देर नहीं लगी कि इन्होंने गांव की दबंग जातियों को अपने मोहजाल में आखिर फंसाने का दांव चल ही दिया.वैसे गांव के लोग तला-फला खाने का परहेज करते है,पर जब वह वस्तु देशी घी से बनाई गई हो तो उसमें ताकत वाला भाव जुड़ जाने के कारण अपने दुर्गुण त्याग देती है.इस विज्ञापन का फर्क पहलवानी करने वाले जैसे ग्राहकों पर ही अधिक पड़ेगा.महिला और शहर के ग्राहकों पर इस विज्ञापन से कोई फर्क नहीं पड़ेगा.हां इस की वजह से गांव के युवा ग्राहक जरूर आकर्षित होंगे.स्पैशल का तात्पर्य-वह ग्रामीण युवा ग्राहक ही है.जो नया-नया अपने शरीर और ताकत पर अधिक ध्यान देता है.वह भी इस में शामिल कर लिया गया है.अब इस स्टॉल मालिक की बाजार पर पकड़ बनाने की ललक और मौके पहचाने-बनाने की महारत को सलाम बनता है.
देशी घी और हरयाणा का चोली दामन जैसा साथ माना जाता है.खासकर के ग्रामीण परिवेश में.ग्रामीण में भी तथाकथित दबंग(?) जातियों में.यह फिकरा-देशी घी खाने से शरीर में मजबूती आती है ,बहुत से लोगों के मुंह से अक्सर सुना जाता है.पता नहीं कितनी मजबूती आती है.अगर सही में आती है तो.लगता है यह घी है,जो अन्य जातियों पर इनके हिंसात्मक रवैये को बढ़ाने में मदद करता है.हाल के कुछ सालों में हरयाणा के गांवों में Heart attack से मरने वालों की संख्या में खूब इजाफा हुआ है.परंतु घी के प्रति अप्रोच में कुछ फर्क नहीं पडा.देसां मै देस हरयाणा,जडै दूध-दही का खाणा.दूध और दही की अंतिम परिणति घी है और वो भी स्पैशल और शुद्ध.
क्या इन जातियों की सामाजिक-मानसिक सरंचना में इस स्पैशल और शुद्धता का आग्रह ही इन्हें हिसंक बनने में मदद करता है और अपने को सर्वोपरि मानने के भ्रम को पालता-पोसता है.कुछ तो स्पैशल है इसमें ? पर यह स्पैशल समाज के लिए नुकसानदायक अधिक है.भले ही सेहत के लिए लाभदायक हो.क्योंकि इसमें जो अप्रोच गहरे पैठ किए हुए है,वह समाज में गैरबराबरी को जन्म देती है.  

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