वो चमक
जो समय के थपेड़ों ने
कर दी है पैदा
उसके चेहरे की झुर्रियों में
बेबस करती है सोचने को
चुंधयाती नहीं.
वो दुर्गंध
जो पैदा की है समाज-व्यवस्था ने
उसकी सांसो में.
विरोध दर्ज कराती है
प्रकृति की स्लेट पर
हर साँस के साथ.
वो पैर
जो कुचले जा चुके हैं
आगे बढ़ने वालों के पैरों
तले,
जिन्होंने साट दिया
सड़क के गढ़्ढों को.
वो हाथ,
जो कट चुके हैं,जिन्होंने
माँगे थे अपने अधिकार.
कहानी यहां खत्म नहीं होती,
शुरू होती है यहाँ से.
आज भी...
जो समय के थपेड़ों ने
कर दी है पैदा
उसके चेहरे की झुर्रियों में
बेबस करती है सोचने को
चुंधयाती नहीं.
वो दुर्गंध
जो पैदा की है समाज-व्यवस्था ने
उसकी सांसो में.
विरोध दर्ज कराती है
प्रकृति की स्लेट पर
हर साँस के साथ.
वो पैर
जो कुचले जा चुके हैं
आगे बढ़ने वालों के पैरों
तले,
जिन्होंने साट दिया
सड़क के गढ़्ढों को.
वो हाथ,
जो कट चुके हैं,जिन्होंने
माँगे थे अपने अधिकार.
कहानी यहां खत्म नहीं होती,
शुरू होती है यहाँ से.
आज भी...
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