हरियाणवी लोक से उठती हर आवाज का एक खास संदर्भ और मकसद हैं । इसलिए सब तरह की आवाजों पर बात होनी चाहिए । लोकगीत,रागिणी और पॉपुलर के भेदभाव से अलग हटकर उनके कटेंट पर बात होनी चाहिए ।
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गुरुवार, 7 जनवरी 2016
शब्द और पीड़ा
कोई इस गलत फ़हमी में ना रहे कि मैं ज्यादा पढ़ा लिखा हूँ । जिंदगी की थपेड़ खाते-खाते हलक से शब्द निकलने लगे है । जख़्म से कुलबुलाते शब्द रिसने लगे है।
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